Monday, April 7, 2014

वीनू मांकड़ - एक हैरतअंगेज़ हरफ़नमौला !

-वीर विनोद छाबड़ा

अच्छा-भला खिलाड़ी जब घरेलू क्रिकेट में धड़ाधड़ रन बना रहा हो। क्रिकेट के तमाम विद्वान समीक्षक उसकी प्रशंसा करते अघाते हों। मगर ऐन चयन के वक़्त सारी उम्मीदों का सत्यानाश करते हुए राष्ट्रीय टीम में उसका नाम हो! बड़ा अजीबो-गरीब और तकलीफ़देह लगता है ये सब देख-सुन कर। पर भारतीय क्रिकेट में ऐसी घटना को होना कोई अजूबा नहीं है। बेहद हैरान-परेशान होने वाली बात है यह कि आज से तकरीबन 53 साल पहले एक ऐसे खिलाड़ी को नहीं चुना गया था, जिसने सिर्फ़ पिछला टेस्ट जिताया था बल्कि साथ ही अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट में पहली-पहली जीत का मीठा-मीठा स्वाद भी चखाया था।

इस खिलाड़ी का नाम था मूलवंतराय हिम्मतलाल मांकड़ उर्फ़ वीनू मांकड़। इस महान हरफ़नमौला को भारत का कीथ मिलर कहा जाता है। वीनू ने 1951-52 की श्रंखला के आखिरी टेस्ट (मद्रास का चेपक मैदान) में भारत को इंग्लैंड पर अपनी स्पिन गेंदबाज़ी की बदौलत शानदार जीत दिलायी थी। उनका
प्रदर्शन था पहली पारी में 8 विकेट पर 55 रन और दूसरी पारी में 53 रन देकर 4 विकेट। मगर हैरत की बात यह थी कि अंग्रेज़ों के विरुद्ध इस हैरतअंगेज़ प्रदर्शन के बावजूद वीनू मांकड़ का नाम कुछ महीनों बाद इंग्लैंड के सफ़र के लिये कूच करने वाली भारतीय टीम में शामिल नहीं था। क्यों नहीं था? इस क्यों का जवाब इतना भौंडा था कि जिसने भी सुना उसने दीवार पर माथा पटक दिया।


दरअसल हुआ यों था कि वीनू मांकड़ को इंग्लैंड का लंकाशायर काउंटी का हैसलिंग्डन क्लब 1952 के इंग्लिश सीज़न के लिये अनुबंधित करना चाहता था। उन दिनों इंग्लिश सीज़न में काउंटी या उसके क्लब के लिये खेलना बड़े गौरव को विषय होता था। मोटी रकम भी मिलती थी। अपना क्रिकेट बोर्ड फ़कीर था। खिलाड़ी रिक्शे-तांगे पर बैठ कर होटल से स्टेडियम आते-जाते थे। मगर इसके बावजूद वीनू मुल्क के लिये खेलना चाहते थे। यों उनका चुना जाना तो यकीनी होना चाहिये था। मगर वीनू  ‘पहुंचवाले नहीं थे। इसलिये उन्हें शक था कि कहीं ऐसा हो कि हैसलिंग्डन का कीमती आफ़र वह ठुकरा दें और उधर राष्ट्रीय टीम में भी जगह मिले। उन्होंने चयन समिति के अध्यक्ष सी0के0 नायडू से गुजारिश की कि उन्हें राष्ट्रीय टीम में चुने जाने की गारंटी दी जाये। होना तो यह चाहिये था कि उन्हें कहा जाता कि इत्मीनान रखें, उनका चयन तो हो चुका है। मगर उलटे नायडू ने सपाट जवाब दे दिया कि यह मुमकिन नहीं है। ठीक है। उन दिनों गारंटी देने का तो कोई नियम था और ही कोई रिवाज़। मगर सर्वेसर्वा नायडू मुंह जुबानी तो आश्वासन तो दे ही सकते थे।

निराश वीनू ने हैसलिंग्डन क्लब का न्यौता कबूल कर लिया। 1952 की गर्मियों में जब भारत ने क्रिकेट के जनक इंग्लैंड की सरज़मीं पर कदम रखा तो उन्हें इसका अंदाज़ा कतई नहीं था कि पिछले भारतीय
सीज़न में मद्रास की शर्मनाक हार से तिलमिलाये अंग्रेज़ उनकी खाल में भूसा भरने के मंसूबे बना के बैठे हैं। इसका नमूना पहले ही लीड्स टेस्ट में मिल गया। तब भारतीयों को अंदाज़ा हुआ कि आगे का सफ़र बेहद ख़तरनाक़ साबित होने जा रहा है। सही-सलामत वापसी के लाले पड़ते हुए भी साफ़ दिख रहे थे। यों भी वीनू को चुने जाने पर तमाम इंग्लिश प्रेस भारतीय चयन समिति की खासी खिल्ली उड़ा चुका था। लीड्स की हार ने उन्हें कीचड़ उछालने का एक और मौका दे दिया। तब शर्मिन्दा होकर भारतीय क्रिकेट के मठाधीशों ने हैसलिंग्डन क्लब और इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड से बीच दौरे में वीनू को टीम में शामिल करने की इजाज़त मांगी।

अंगे्रज़ों ने यह सोच का इजाज़त दे दी कि सीरीज़ एकतरफा हो और उन पर इल्ज़ाम भी आये कि बचाव का मौका दिये बिना मेमनों को बेदर्दी से मार दिया। और फिर उन्हें पूरा इत्मीनान था कि लीड्स फतेह से उनकी टीम के हौंसले इतने बुलंद हैं कि दस वीनू भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। यों भी उन दिनों इंग्लैंड की टीम शेरों की टीम कहलाती थी। उन्हें खूंटी से बंधे मेमनों के शिकार में मज़ा नहीं आता था। शिकार को दौड़ा-दौड़ा कर मारने का मज़ा तो कुछ और ही होता है। उन्हें यकीन था कि सामने वीनू होंगे तो शिकार में कुछ तो जान पड़ जायेगी। तब उसे मारने में दूना मज़ा आयेगा। यों भी उन दिनों अंग्रेजों को उनके घर में हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी था।

अंग्रेजों की सोच सही निकली। मगर वे यह नहीं जानते थे कि मुकाबला कुछ ज्यादा ही सख्त साबित होगा। उनका सामना असली शेर से होगा। जीत के बाद भी यश उनके नसीब में नहीं बदा होगा। उन्हें
और स्वंय भारतीयों क्रिकेट प्रमियों और मठाधीशों को भी नहीं मालूम था कि वीनू अपने क्रिकेट जीवन का सबसे अहम मैच खेलेंगे। इस मैच की अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि मैच के बाद महान समीक्षक जिम स्वांटन ने लिखा था- वीनू के खेल की तारीफ़ लफ़्ज़ों के बस की बात नहीं है। क्रोफोर्ड व्हाईट ने कहा-इनक्रिडिबल! यानि अद्भुत यानि विलक्षण इंसान! वीनू मांकड़ दुनिया का सर्वश्रेष्ट बायें हाथ का स्पिनर और दायें हाथ का बल्लेबाज़ है। जान आरलोट ने कहा- वीनू ने जेंकिन्स की गेंदों को ही नहीं जेंकिन्स को ही उठा कर मैदान से बाहर फेंक दिया। ज्ञातव्य हो कि यह जेंकिन्स का आखिरी टेस्ट साबित हुआ। एक और समीक्षक ने अपने विचार यों प्रकट किये- वीनू इंग्लैंड को क्लब टीम समझ कर भूसा भर रहे थे। बताते चलें कि इस टेस्ट से पहले वीनू इंग्लैंड में क्लब क्रिकेट ही तो खेल रहे थे। क्रिकेट के डॅान कहे गये डॅान ब्रेडमैन ने उन्हें दुनिया का महान स्पिनर बताते हुए कहा था- भारत को हमेशा वीनू पर गर्व रहेगा।

सुधी पाठक हैरान होंगे कि आखिर वीनू ने ऐसा क्या कर दिया था कि यह मैच मांकड बनाम इंग्लैंड कहलाया। हक़ीक़त में इस मैच का हरेक पल तफ़सील से ज़िक्र के काबिल है। मगर फिलहाल अल्फाज़ों
की कमी तो है ही और जगह भी कम है। लिहाज़ा मुख्तसर ब्यौरा यों है कि वीनू मांकड़ ने भारत की 235 रन की पहली पारी में धूंआधार 72 रन बनाये। जवाब में इंग्लैंड ने 537 का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया। अंग्रेज़ विद्वानों के साथ-साथ भारतीय प्रेस ने भी वीनू मांकड़ की आसमान से तारे तोड़ कर लाने जैसी तारीफ़ करने के साथ-साथ भारत की हार की कहानी भी मोटे मोटे हरफों में दीवार पर लिख दी। इंग्लैंड की इस पारी में वीनू ने 73 ओवर डाले थे, जिसमें 196 रन के खर्च पर उनकी झोली में 5 विकेट गिरे थे। अहमियत यहां इस बात की है कि वीनू पूरे मैच में अकेले ही अंग्रेजों की मुख़ालफ़त करते रहे।

अब भारत को हारना तो था ही। मगर चर्चा इस बात की ज्यादा थी कि क्या भारत पारी की हार से बच पायेगा? भारत की टीम का कोई भी खिलाड़ी इस चुनौती को कबूल करने की मनास्थिति में नहीं दिख रहा था। बस औपचारिकता पूरी करने वाली मनोदशा थी। मगर वीनू का इरादा कुछ और ही था। धराशाही होने से पहले अंग्रेज़ों को छटी का दूध याद दिलाना चाहते थे। उन्होंने 302 रन बनाकर पारी की हार से भारत को बचाने की चुनौती दिल से मंजूर कर ली थी। और
सचमुच उन्होंने ऐसा कर दिखाया। क्रिकेट के मक्का लार्डस के मैदान में उस दिन ऐसी धूंआधार बल्लेबाजी की कि इंग्लिश टीम का हर हथियार नाकाम हो गया। अंग्रेजों ने मान लिया कि उन्हें अकेले दम पर शिकस्त देने वाला क्रिकेट की दुनिया में कोई है तो वो वीनू मांकड़ ही है, सिर्फ वीनू। भारत की दूसरी पारी में 378 रन बने, जिसमें वीनू का स्कोर था 184 रन। कितनी हैरतअंगेज़ रही होगी ये पारी इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जब वीनू आऊट हुए थे तो भारत का स्कोर था 3 विकेट पर 270 रन। मैच का लुत्फ़ उठा रहे विद्वानों ने किताबों में लिखा है कि उनके आऊट होते से ऐसा लगा था मानो प्रलय थम गयी है। मगर अफसोस बाकी के बल्लेबाजों ने वीनू से कोई सबक हासिल नहीं किया और महज़ 108 रन ही और जोड़ पाये।

आखिरकार इंग्लैंड ने ज़रूरी 79 रन बना कर 8 विकेट से मैच जीत लिया। लेकिन कहानी का दि एंड इतना सिंपल नहीं था जितना स्कोर कार्ड दिखाता है। इंग्लैंड को दूसरी पारी में भी वीनू ने अपनी जादुई
स्पिन से खूब परेशान किया। उन्होंने 24 ओवर डाले। अगरचे उन्हें विकेट नहीं मिला, लेकिन लेन हट्टन और डेनिस काम्पटन जैसे वल्र्ड क्लास बल्लेबाजों को कई दफे़ पसीना पोंछने पर मजबूर किया। कुल 24 घंटेs, 35 मिनट चले इस मैच में 18 घंटे, 45 मिनट तक वीनू मैदान में रह कर बेहद मजबूत इंग्लिश टीम से अकेले ही लोहा लेते रहे। इसीलिये तो ब्रिटिश प्रेस ने दिल खोल कर तारीफ़ों के पुल बांधे। एक अखबार ने लिखा- मेराथन मनकड दि मैग्नीफीसेंट। दूसरे ने कहा- इंग्लैंड बनाम मनकड टेस्ट। एक अन्य ने तो वीनू की तुलना उस ज़माने के महान हरफ़नमौला किलर आस्ट्रेलिया के कीथ मिलर से कर दी। उन्हें कीथ मिलर का भारतीय जवाब बताया गया। यह जानकर और भी हैरानी होती है कि वीनू ने यह अजूबा युवावस्था में नहीं अंजाम दिया था। उस वक्त उनकी उम्र 35 साल से भी ज्यादा थी और जिस्म भी भारी भरकम था।

वीनू ने 44 टेस्टों में कई रेकार्ड बनाये। जिनमें ज्यादातर टूट चुके हैं, मगर एक अनोखा विश्व रेकार्ड अभी तक कायम है। उन्होंने एक से ग्यारह तक सभी क्रमों पर बल्लेबाजी की। न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध मद्रास टेस्ट में 11 जनवरी, 1956 को पंकज राय के साथ वीनू ने पहली विकेट की साझेदारी में 413 रन जोड़े थे। यह टेस्ट रेकार्ड 52 साल तक लौह स्तंभ बना रहा। इस रेकार्ड भागीदारी में वीनू का निजी स्कोर था 231 रन। उच्चतम निजी टेस्ट पारी का यह भारतीय रेकार्ड 1983 में सुनील गावसकर ने 236 रन बना कर पीछे छोड़ा था।


वीनू मांकड़ को दुनिया इस वजह से भी याद करती है कि क्रिकेट खेलने के नियमों में एक नियम को उनसे जुड़ी एक घटना की वजह से मानकडेड बोला जाता है। हुआ यों था कि 1947-48 में आस्ट्रेलिया भ्रमण के दौरान टेस्ट में बल्लेबाज़ बिल ब्राऊन को वीनू ने उस वक्त रन आऊट कर दिया जब वह नान-स्ट्राईकिंग एंड पर खड़े थे और उनके द्वारा स्ट्राईकिंग एंड पर खड़े बल्लेबाज़ को गेंद डालने से पहले ही
पापिंग क्रीज़ से बाहर जाते थे। क्रिकेट की किताबों में इसे नियम का उल्लंघन माना गया है और रन आऊट करने की अपील करने पर आऊट दिये जाने का प्राविधान भी है। मगर इतने ऊंचे दरजे की क्रिकेट में आज तक ऐसा वाक्या तब तक नहीं हुआ था। वीनू ने ब्राऊन को आऊट करने से पहले दो बार ख़बरदार भी किया था। मगर इसके बावजूद जब ब्राऊन नहीं माने तो वीनू ने उनके क्रीज़ से बाहर निकलते ही नान-स्ट्राईकिंग एंड की स्टंप पर गेंद मार कर बेल्स गिरा दीं और रन आऊट की अपील की, जिसे अंपायर ने मान लिया। इस पर बड़ा हो-हल्ला मचा। तमाम जाने-माने विद्वानों ने वीनू की कस कर आलोचना की कि भद्र पुरुषों के खेल क्रिकेट में इस तरीके से किसी को आऊट किया जाना महान अभद्रता है, क्रिकेट का अपमान है। मगर बल्लेबाज़ी के डॅान कहलाये गये डॅान ब्रेडमैन ने वीनू के इस एक्शन को सही बताया था। अपनी आत्मकथा- फेयरवेल टू क्रिकेट- में बे्रडमैन ने लिखा है कि जब नियमों में प्राविधान है कि नान-स्ट्राईकिंग एंड पर खड़ा बल्लेबाज़ नियम विरूद्ध आचरण कर रहा है तो गेंदबाज़ को पूरा अख्तियार है कि नियम तोड़ने पर उसे रन आऊट करे। इसलिये वीनू मांकड़ ने कुछ भी अभद्र या ग़लत नहीं किया। उस दिन से जब भी कोई बल्लेबाज़ इस किस्म से आऊट होता है तो उसे मानकेडड कहा जाता है। मगर इस तरह से आऊट करने वाले की विद्वानों द्वारा जमकर ख़बर ज़रूर ली जाती है। अभी हाल ही में रणजी ट्राॅफी के एक मैच में रेलवे के मुरली कार्तिक ने बंगाल के एक बल्लेबाज़ को इसी तरह रन आऊट कराया था तो बंगाल के खिलाड़ी मुरली की इस हरकत को भद्रता के बीच अभद्रता करार देते हुए इतने सख्त नाराज़ हुए थे कि मैच खत्म होने पर रेलवे के खिलाड़ियों से रस्म अदायगी के तौर पर हाथ तक नहीं मिलाया था। विद्वानों ने भी मुरली कार्तिक की छीछालेदर करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। 


टेस्ट क्रिकेट में विलंब से पदार्पण की वजह से वीनू को कुल 44 टेस्ट में हिस्सा लेने का ही मौका मिल पाया, जिसमें 5 शतकों के साथ 31.47 की औसत से 2109 रन बनाये और 32.32 की औसत पर 162 विकेट हासिल किये। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में भी उनका रेकार्ड काबिले तारीफ़ और काबिले ग़ौर रहा। वीनू ने 233 मैचों की 362 पारियों में 26 शतकों के साथ 34.66 की औसत से 11593 रन ठोंके और 24.53 की औसत से 782 विकेट झटके। अलावा इसके 189 कैच भी लपके थे।

कपिल देव भारतीय क्रिकेट के ही नहीं, विश्व के बेहतरीन आलराडंरों में एक हैं। दो राय नही कि आंकडों में वीनू उनसे बहुत पीछे हैं। वीनू के दौर में टेस्ट क्रिकेट कम खेली जाती थी। यों तो वीनू का प्रथम श्रेणी में पदार्पण महज़ 20 साल की उम्र में 1937/38 में लार्ड टेनीसन एकादश के विरुद्ध हो चुका था, जिसमें उनके बेहतरीन प्रदर्शन की जमकर तारीफ हुई थी। उस सीरीज़ में उनकी औसत बल्लेबाज़ी में 62.66 और
गेंदबाज़ी में 14.53 थी। मगर द्वितीय विश्व युद्ध के कारण टेस्ट क्रिकेट स्थगित रहा। वीनू के टेस्ट का आग़ाज़ 1946 में इंग्लैंड के विरुद्ध हुआ। उस वक़्त उनकी उम्र 29 साल थी। आंकड़ेबाज़ों की अगर मानें तो अगर द्वितीय विश्व युद्ध आड़े आया होता तो यकीनन वीनू का टेस्ट में आग़ाज़ कम उम्र हो जाता और अगर कपिल जितने 131 टेस्ट खेलने का मौका मिला होता तो कपिल के 5248 रन तथा 434 विकेट के मुकाबले वीनू के झोले में तकरीबन 6300 रन तथा 483 विकेट होते। हरफ़नमौला वीनू के अंतर्राष्ट्रीय कद को दृष्टिगत करते हुए भारत सरकार ने वीनू की याद में एक डाक टिकट जारी किया है और उनके जन्म स्थान जामनगर में एक बुत भी बनाया गया है।


वीनू के तमाम रेकार्ड हालांकि टूट चुके हैं मगर एक रेकार्ड अभी तक कायम है। जब 1946 में उनके अंतर्राष्ट्रीय कैरीयर का इंग्लैंड में आगाज़ हुआ था तो उस इंग्लिश सीज़न में उन्होंने 1120 रन बटोरने के साथ-साथ 129 विकेट भी झोली में डाले। आगाज़ पर ये शानदार प्रदर्शन आज भी अछूता रेकार्ड है। दुनिया के तमाम आला हरफ़नमौलाओं की फेहरिस्त जब भी बनायी जाती है तो उसमें वीनू मांकड़ का नाम
ज़रूर शामिल होता है। उनका जन्म 12 अप्रेल 1917 को गुजरात के जामनगर में हुआ था और  मुंबई में 21 अगस्त, 1978 को महज़ 61 साल की उम्र में इंतक़ाल फ़रमा गये थे। भारतीय क्रिकेट बोर्ड उनकी याद में सालाना वीनू मांकड़ ट्राफी का आयोजन करता है जिसके अंतर्गत आल इंडिया अंडर-19 टूर्नामेंट खेला जाता है। वीनू मांकड़ की उपलब्धियां और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनका बड़ा कद और मुकाम देखते हुए उनके नाम पर कोई बड़ा टूर्नामेंट रखे जाने की सख्त ज़रूरत है जिसमें तमाम सीनीयर खिलाड़ी हिस्सा लें। दो मुल्कों के दरम्यान खेली जाने वाली श्रंखला भी उनके नाम पर रखी जा सकती है।
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-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290 इंदिरा नगर
लखनऊ 226016
मोबाईल 7503626
दिनांक 06 04 2014

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