-वीर विनोद छाबड़ा
बेहतरीन तकनीक
से
खेलने
वाले
दुनिया
के
बेहतरीन
बल्लेबाज़ों
का
जब
ज़िक्र
होता
है
तो
डेनिस
कॉम्पटन
को
ज़रूर
याद
किया
जाता
है।
दायें
हाथ
के
इस
इंग्लिश
बल्लेबाज़
ने
५०.०७
की
औसत
से
७८
टेस्टों
में
५८०७
रन
बनाये
थे।
काउंटी
में
भी
उन्होंने
ढेरों
रन
बनाये।
उनके
बल्ले
का
कमाल देखने दूर-दूर
से
लोग
आते
थे।
रिटायर होने
के
बाद
भी
कॉम्पटन
ने
बल्ला
कभी
नहीं
छोड़ा।
जब
कभी
मौका
मिला,
दो
चार
हाथ
ज़रूर
दिखाए।
लेकिन
उन्होंने
ने
कभी
सपने
में
भी
नहीं
सोचा
होगा
कि
बल्ले
का
इस्तेमाल
मैदान
से
बाहर
भी
करना
पड़
सकता
है।
ये बात
१९८५
की
है।
हुआ
ये
था
कि
एक
बार
कॉम्पटन
एक
पार्टी
से देर रात लौट
रहे
थे।
एक सुनसान
जगह
पर
कॉम्पटन
की
कार
को
कुछ
लुटेरों
ने
घेर
लिया।
लुटरों
ने
उनकी
जामातलाशी
ली।
कुछ
भी
नहीं
मिला।
लुटेरों को
घोर
निराशा
हुई।
इतनी
बेशकीमती
कार
में
चलेंगे,
सलीकेदार
सूट
पहनेंगे
और
औकात
ज़ीरो।
लुटेरों को
यकीन
नहीं
हुआ
कि
ये
अमीर
दिखता
शख्स
मुफ़लिस
है।
ज़रूर
दाल
में
कुछ
काला
है।
कार
में
कुछ
न
कुछ
बेशकीमती
होगा।
उन्होंने
कॉम्पटन
की
कनपटी
पर
पिस्तौल
की
नली
लगा
दी
- कार
में
जहां
पैसा
छुपा
रखा
है,
निकाल
दो।
वरना
जान
से
हाथ
धो
बैठोगे।
एकबारगी कॉम्पटन
के
हाथ-पांव
फूल
गए।
लेकिन
अगले
पल
वो
सब
कुछ
समझ
गए।
लुटेरे
का
हाथ
कांप
रहा
था।
इसका
अहसास
सर
पर
रखी
पिस्तौल
की
नली
करा
रही
थी।
ये
लुटेरे
अभी
अधकच्चे
हैं।
इन्होंने
कभी
चींटी
भी
नहीं
मारी
होगी।
आखिर
खौफ़नाक
गेंदबाजों
के
मन
को
पढ़ने
में
माहिर
जो
थे
वो।
कॉम्पटन ने
कहा
- हां
बेइंतिहा
दौलत
है
कार
में।
मैं
देने
के
लिए
तैयार
भी
हूं।
मगर
एक
शर्त
है
कि
सब
एक
किनारे
खड़े
हो
जाएं।
सबको
बराबर
हिस्सा
मिलेगा।
लुटेरे उनकी
बातों
में
आ
गए।
तब
६७
वर्षीय
कॉम्पटन
ने
कार
से
अपना
बल्ला
निकाला
और
ज़ोर-ज़ोर
से
घुमाते
हुए
बोले
- ये
है
मेरी
दौलत।
इसने
आज
तक
सैकड़ों
गेंदों
का
कचूमर
निकाला
है
और
हज़ारों
रन
उगले
हैं।
लेकिन
आज
इसकी
आज़माईश
तुम
लोगों
पर
होगी।
लुटेरे ये
सुनते
ही
डर
गए
कि
ये
कोई
पुराना
खुर्राट
बल्लेबाज़
है।
इसकी
मार
बड़ी
महंगी
पड़ेगी।
निकल
लो
पतली
गली
से।
सारे
लुटेरे
पल
भर
में
नौ-दो-ग्यारह
हो
गए।
जिन लोगों
की
क्रिकेट
में
दिलचस्पी
नहीं
है
उन्हें
कॉम्पटन
का
दूसरा
परिचय
दे
दूं।
यकीनन
उन्हें
पसंद
करेंगे।
वो क्लास
वन
फुटबॉलर
भी
थे।
फुटबॉल
खेलते
खेलते
क्रिकेटर
बन
गए।
अलावा इसके
वो
बेहद
खूबसूरत
शख्सियत
के
ही
नही,
बल्कि
बड़े
दिल
के
भी
मालिक
थे।
सलीकेदार
पोशाक
पहनते
थे।
कातिलाना
मुस्कान
थी।
यही वज़ह
रही
कि
ऑस्ट्रेलियाई
कीथ
मिलर
के
बाद
डेनिस
चार्ल्स
स्कॉट
कॉम्पटन
ब्रिलक्रीम
के
विज्ञापन
के
लिए
चुने
गए।
साठ
और
सत्तर
के
दशक
में
आला
दरजे
के
शौक़ीन
और
फ़ैशनबाज़
मिज़ाज़
के
दीवाने
बालों
पर
तेल
नहीं
ब्रिलक्रीम
लगाते
थे।
मुझे याद
है
कि
१९६५
में
इसकी
कीमत
ढाई
रुपए
थी।
मैंने
पाई-पाई
जोड़
कर
ढाई
रूपए
जमा
किये।
ब्रिलक्रीम
की
चौड़े
मुंह
वाली
दवातनुमा
शीशी
खरीदी।
बरसों
सर
पर
सरसों
का
तेल
लगाने
की
जगह
ब्रिलक्रीम
लगाई
थी।
शुरू
शुरू
में
घर
में
मां
और
स्कूल
में
मास्टरजी
बहुत
बिगड़े
थे-
हीरो
बनते
हैं,
पढाई-लिखाई
में
जीरो
पाते
हैं।
बाद में
ब्रिलक्रीम
के
विज्ञापन
में
भारत
के
विकेट-कीपर
बल्लेबाज़
फारूख
इंजीनियर
भी
कई
बरस
तक
नज़र
आये।
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-वीर विनोद छाबड़ा ०१.११.२०१४
मो
७५०५६६३६२६
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