Wednesday, September 16, 2015

तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को याद आये थे उस दिन।

-वीर विनोद छाबड़ा 
मित्र ड्राइव कर रहे थे। मैं उनकी बगल में बैठा था। हज़रतगंज का चौराहा। लाल बत्ती। कार रुक गयी।
मित्र ने मेरी और देखा। कुछ कहना चाह रहे हैं शायद। अगले ही क्षण
उन्होंने आवाज़ दी - सुनिये।
मैं चौंका। देखा, तो मित्र  इलाहाबाद बैंक के फुटपाथ पर खड़ी एक भद्र महिला से मुख़ातिब हैं।
कार और उस महिला के दरम्यान चार-पांच फुट का फ़ासला है। महिला के कानों तक उनकी आवाज़ पहुंच गयी लेकिन वो समझ नहीं पाई कि यह आवाज़ किधर से आ रही है। उसने इधर-उधर देखा। एक क्षण के लिए कार पर भी नज़र ठहरी। लेकिन मित्र दायीं तरफ थे। देख नहीं पायी।
मित्र ने एक बार फिर आवाज़ दी - सुनिये। 
उसने सुना तो लेकिन देख न पायी।
मैं कभी मित्र को तो कभी उस महिला को देख रहा था। अमां, कौन है यह? क्यों आवाज़ पे आवाज़ दे रहे हो।
तभी मित्र ने मेरा कंधा हिलाया - बुलाओ, जल्दी से उसको।
मैं उस महिला को और वो महिला मुझे ठीक-ठीक देख पा रही थी। मैडम, सुनिये
मेरा वाक्य पूरा न होने पाया था कि उसने भद्दी-भद्दी पांच-छह गालियां वहीं से दे मारीं। ज्वालामुखी धधक उठा है। कुछ लोग रुक गए।
मैं अवाक् उसे देखता रह गया। किसी ग़लत महिला को आवाज़ लगा दी है! मैं मदद के लिए मित्र की ओर मुड़ा ही था कि महिला बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ी। ज्वालामुखी का लावा अपनी ओर तेजी से बढ़ता दिखा।
अब वो मेरे बहुत क़रीब आ चुकी थी। घर में मां-बहनें नहीं हैं क्या हरामी, कुत्ते, बदज़ातयह कहते हुए उसका हाथ उठा.
मेरी आंखें स्वतः बंद हों गयीं। खुद को बचाव की मुद्रा में कर लिया। बोलती बंद। कंटाप अब पड़ा कि अब पड़ा.
यह सब कुछ पलों में हुआ। इस बीच कई बार तीनों लोक घूमे। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को याद किया.
कुछ क्षण बीत गए। लेकिन कुछ न हुआ। हैरानी हुई। आंखें खोली।
महिला मेरे मित्र से बतिया रही थी। इससे पहले कि कुछ समझता कि हरी बत्ती हो गयी। उस महिला ने मित्र को थैंक्यू बोला। एक पल के लिए मुझे भी देखा। व्यंग्य से मुस्कुराई। 
झटके से कार चल दी।
मैं कतई सहज नहीं था। धक-धक करता दिल और चेहरे पर उड़ती हवाईयां। दुनिया का सबसे बड़ा चूतिया। और मेरा मित्र  सबसे सुखी इंसान।
मैं फ़नफ़नाया। यह सब है क्या? तुम दोनों के बीच मैं क्यों पिसा? कौन है वो? क्या नाम है उसका? दर्जनों सवाल दाग दिए।
धैर्यवान मित्र बोला  - शांत वत्स। यार, उस महिला का नाम तो मुझे भी नहीं पता। स्टाफ नर्स है। मेरी वाईफ़ की कलीग। अस्पताल में तो सभी को सिस्टर बोलते हैं। लिफ्ट के लिए पूछा था। इसमें कहीं कोई अपराध हुआ क्या? जो कुछ हुआ, ग़लतफ़हमी के कारण।
 
मेरा गुस्सा कतई ठंडा नहीं हुआ। ऑफिस में हम एक ही रूम शेयर करते थे। कई दिन तक मैंने उससे से बात नहीं की। यद्यपि उसने बहुतेरी कोशिश की।
बाद में एक दिन मित्र की पत्नी और वो स्टाफ नर्स महिला ऑफिस आयीं। उसने मुझे नमस्कार किया और साथ में सॉरी भी।
अब कोई महिला सॉरी बोले तो तीनों लोक सुधर ही जाने थे। और फिर चाय-पानी तो मेरी और से बनती ही थी न।
लेकिन कान पकड़े। बिना जान-पहचान किसी महिला की ओर तकना तक नहीं, आवाज़ तो दूर की बात।
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16-09-2015 mob 7505663626
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Lucknow - 226016

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