Saturday, June 7, 2014

मुलायम सिंह यादव जी ऐसे भी !

-वीर विनोद छाबड़ा

लगभग २१ साल पहले की बात है। मेरे पिता जी किडनी कैंसर से पीड़ित होने के कारण लखनऊ के एसजीपीजीआई में भर्ती थे। उनको ठीक से अटेंड नहीं किया जा रहा था। कतिपय डॉक्टर बाहर से जाँच कराने पर जोर देते थे। मेरे पास चार पहिये की गाड़ी नहीं थी। फिर ऊपर से मई का तपता
महीना। अस्वस्थ पिताजी को टेम्पो में लिटा कर इधर-उधर कई बार भटका। मैंने लगभग सभी डॉक्टरों से विनती की कृपया बाहर दौड़ाएं। आपके संस्थान में सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। जवाब मिलता - तो फिर दो महीने तक इंतज़ार करें।

चूँकि पिता जी (राम लाल) उर्दू के मशहूर अफसानानिगार थे इसलिए उनसे मिलने वाले भी बहुत आते थे। मैंने सभी को यह व्यथा बताई।

किसी ने तमाम अख़बारों में भी ये खबर दे दी कि पीजीआई में उनका ठीक से ध्यान नहीं रखा जा रहा है। उनके तमाम शुभचिंतकों के फ़ोन आने लगे। अनेक लेखको के गुस्से से भरे बयान भी छपे। लेकिन तब भी हॉस्पिटल प्रशासन पर कोई असर नहीं हुआ। उनकी उपेक्षा वाला नज़रिया जारी रहा।

पिता जी के सपा पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह जी बहुत अच्छे संबंध थे। उन दिनों वो सत्ता में नहीं थे। फिर भी आशा की नन्ही आस लेकर  मैं उनके बंगले पर गया। लखनऊ में मेयर बनाने के संबंध एक ज़रूरी मीटिंग चल रही थी। उनके पीआरओ त्रिलोक सिंह मेहता ने बताया कि वो मिल नहीं सकते।

निराश मन से मैंने उन्हें अपनी विपदा सुनाई और एक अर्ज़ी दी। त्रिलोक सिंह मेहता बड़े भले व्यक्ति थे। यह बात मुझे पहले से नहीं मालूम थी।  लेकिन जिस तन्मयता से उन्हों मेरी बात सुनी तो मुझे लगा कि इस व्यक्ति में कोई 'बात है। अगर नेता का पीआरओ बढ़िया हो तो नेता के सम्मान में भी चार चांद लग जाते हैं। और सचमुच मेरी उम्मीद के अनुसार ही मेहता जी कहा - आप बैठो मैं अभी आया।

पांच मिनट बाद उन्होंने बताया कि नेताजी ने मीटिंग में बेहद व्यस्त होने के बावजूद आपकी अर्ज़ी पढ़ ली  है। अब आप जाएँ। इत्मीनान रखें। आपका काम हो जायेगा।

दूसरे ही दिन सुबह-सुबह पीजीआई यूरोलॉजी में ज़बरदस्त हलचल शुरू हो गयी। फर्श पर जम कर झाड़ू -पोंछा लगने लगा। पिता जी को जनरल वार्ड से आइसोलेशन रूम में शिफ्ट कर दिया गया।
डिपार्टमेंट के तमाम डॉक्टर भागे-भागे आये और मेरे पिताजी को घेर कर खड़े हो गए। उनकी खैरियत पूछने लगे। कोई तकलीफ़ हो तो बताएं।  मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा अचानक क्यों हो रहा है? क्या मुलायम सिंह यादव जी का फ़ोन आया है? यदि आया भी होगा तो क्या सत्ता से बाहर होने के बावजूद उनकी इतनी हनक है कि पीजीआई संस्थान के डाक्टर इतनी त्वजो दें? मैं अभी यह सब सोच ही रहा था कि फ़िज़ा में एक हाई अलर्ट टाइप की गूँज सुनाई दी। एक डाक्टर ने मुझसे पुछा कि आपके मुलायम सिंह से क्या रिश्ता है। मैं समझ गया कि वास्तव में काम हो गया है।

तभी ज़बरदस्त हलचल मची। तीमारदारों और फालतू लोगों को बाहर कर दिया गया। मुझे लगा कि मैं भी अभी बाहर कर दिया जाऊंगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मैं सोचने लगा कि आखिर ये हो क्या रहा है। तभी देखा मुलायम सिंह जी स्वयंम रहे हैं। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि कि सचमुच यह मुलायम सिंह ही हैं। इतनी मसरूफ़ियत के बावज़ूद खुद गए। मैं तो महज़ इतनी उम्मीद कर रहा था कि यदि मुलायम सिंह जी एक फ़ोन कर देंगे तो इनायत होगी। इससे शायद अच्छा ईलाज हो पायेगा। लेकिन यह तो स्वयं ही हाज़िर हो गए। बड़ी ज़बरदस्त हनक थी उनकी। बहरहाल मुलायम सिंह जी पिता जी के पास पंद्रह-बीस मिनट बैठे। उनसे बहुत सी बातें की। उन्हें ढांढस बंधाया कि जल्दी अच्छे हो जायेंगे। आपकी उर्दू जगत को बहुत ज़रुरत हैं और मुझे भी। फिर मुझसे बोले- बेटा किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो निसंकोच जाना या फ़ोन कर देना। मैं शहर में नहीं भी होऊंगा तो मेहताजी तो हैं ही। वो सब ठीक कर देंगे।

डॉक्टरों ने उन्हें आश्वासन दिया कि अबसे पूरा-पूरा ध्यान रखा जायेगा। और मेरे पिताजी जब तक पीजीआई में रहे उनका पूरा ध्यान रखा गया।
 
ये घटना बताने का मक़सद ये है कि मुलायम सिंह यादव जी दोस्ती निभाने में हमेशा नंबर वन रहे हैं। चाहे वो सत्ता में रहे हो या नहीं। लेखकों, पत्रकारों, विद्वानो का जितना ध्यान उन्होंने रखा है और किसी नेता ने नहीं। दोस्तियां निभाने में उनका कोई जवाब नहीं है।तन-मन-धन से। विपक्षी नेताओं की भी मदद कर देते हैं। चाहे खुद का बड़ा नुकसान क्यों हो जाये। कई विपक्षियों को हार से बचाया है। अपनी पार्टी के प्रत्याशी को हटा दिया या कोई कमजोर खड़ा कर दिया ताकि विपक्ष के बड़े नेता को हार का अपमान सहना पड़े।
 
कृपया इसे राजनीती से जोड़ें। मैं सपा का सदस्य नहीं हूँ। परंतु मुलायम सिंह यादव जी नाम के मंझे हुए राजनीतिज्ञ के व्यक्तित्व के इस दूसरे पक्ष को सलाम करता हूँ।  हमेशा उनका अहसानमंद रहूँगा।
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-वीर विनोद छाबड़ा
डी० २२९०
इंदिरा नगर
लखनऊ - २२६०१६
मोबाइल ७५०५६६३६२६

दिनांक ०८/०५ /२०१४

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