Friday, July 18, 2014

बरखा रानी ज़रा संभल के बरसो !

-वीर विनोद छाबड़ा

बिजली कड़की। बादल गरजे। तेज हवाओं के साथ मोटी-मोटी बूंदों के साथ बारिश शुरू हो गयी। बंदे का छाता नाकाफ़ी पड़ गया। वो बेतरह भीग गया। तभी एक तेज रफ्तार बड़ी कार उसके बगल के गुज़री। कीचड़ भरे पानी से बंदा सरोबर हो गया। उसके मुंह से चुनींदा गालियों की बेतरह बौछार होती है। बारिश का लुत्फ उठाते हुए स्कूल से लौट रहे बच्चे ये दृश्य देख कर जोर-जोर से हंसने लगे। बंदा अपनी लाचारी पर झेंप गया। मां-बाप ने तमीज़ नहीं सिखायी है अपने बच्चों को कि किसी की लाचारी पर हंसना अच्छा
बात नहीं। सहसा उसे अपना बचपन याद आ गया....

....पचास साल पहले वो भी इन्हीं की तरह बच्चा था। बड़ा मजा आता था भीगने में। उन दिनों वाटरप्रूफ बस्ते नहीं थे। कापी-किताबें बुरी तरह भीग जाती थीं। बाज़ वक़्त भीगने से थोड़ा जुकाम और कभी-कभी हल्का बुखार भी चढ़ता था। दो-तीन दिन तक स्कूल जाने से भी निजात। लखनऊ के आलमबाग इलाके की चंदर नगर मार्किट में घर था। सामने खूब बड़ा मैदान था। बारिश से वहां तलैया बन जाती थी। कागज़ की नाव तैराने की होड़ लगती थी। उन दिनों राजकपूर पर फिल्माया ‘छलिया’ फ़िल्म का ये गाना बड़ा मशहूर था - ‘डम डम डीगा डीगा, मौसम भीगा भीगा सा, बिन पिये मैं तो गिरा, मै तो गिरा, हाय अल्लाह, सूरत आपकी सुभान अल्लाह...।  इस गाने में भरपूर मस्ती थी, तरंग थी जिसका नशा बिन पिये ही चढ़ जाता था। वो मस्ती, तरंग और वो नशा आज भी बरकरार है। तभी तो जब बारिश आती है तो झूम-झूम कर यही गाने के लिये मन उतावला हो उठता है...

...बंदा वर्तमान में वापस आता है। उसे अपने गौरवशाली अतीत पर गर्व होता है। तब विकास के नाम पर जेसीबी मशीनों द्वारा खोदे गये बड़े-बड़े गहरे गड्डे नहीं होते थे। अब तो यह भी पता नहीं कि किस सड़क या गली में बारिश के पानी में डूबे मल-निकासी हेतु भूमिगत नाले का खुला मेनहोल बारास्ता पाताललोक से परलोकवासी बना दे। तभी तो बंदे का मन बारिश होते ही घबड़ाने लगता है। उसके ज़माने  में गोमती मैया में दो बार भयंकर बाड़ आयी थी। पहली बार 1960 में और दूसरी बार 1971 में। सुना था कि हज़रतगंज के मेफे़यर तिराहे तक नाव चली थी।


अब तो गोमती के दोनों तरफ दूर तक ऊंचे मजबूत बांध हैं। इससे शहर के दोनों ओर के तमाम इलाके महफ़़ूज़ हैं। लेकिन अब कुकरैल नाले में बाढ़ आती है। आस-पास के कई मोहल्ले डूब जाते हैं। सन 1986 में इसी कुकरैल नाले की बाढ़ ने इंदिरा नगर और नये बस रहे गोमती नगर के कुछ हिस्सों को डूबो दिया था जिसके कारण रातों-रात वहां ज़मीन के दाम गिर गये थे। अब खुले मैदान नहीं रहे तो हर छोटी-बड़ी सड़क तलैया बनती है। कई जगह तो घुटनों के ऊपर तक पानी रहता है।


बंदा धीरे-धीरे मुंशी पुलिया चौराहा पहंचा। फिर किसी तरह सड़क पार करके सर्विस लेन में आ गया। सर्विस लेन पानी में डूबी पड़ी है। साथ में बना चौड़ा नाला भी दिख नहीं रहा है। तभी दहशतज़दा बंदे का पैर एक गड्डे में पड़ा। वो लड़खड़ा कर गिर गया। छाता भी हाथ से छूट गया। कही से हंसने की आवाजें
सुनाई दी। मगर भलमनसाहत भी जिंदा है। जाने कहां से दो लड़के उसे सहारा देने आ पहुंचे। कुशल-क्षेम पूछी। शुक्र है कि चोट नहीं आयी। एक दुकानदार शरण देने की पेशकश करता है। वो धन्यवाद देकर मना कर देता है। दरअसल बंदे को घर पहुंचने की जल्दी है। जहां इस वक़्त उसकी सख़्त ज़रूरत है।

जैसे-तैसे घर पहुंचा बंदा। आशंका सच निकली। बारिश का पानी सड़क लीलने के बाद घर में बहुत भीतर तक घुस आया था। सीवर भी बैक-फ्लो कर गया था। पत्नी-बच्चे परेशान थे। उनसे यह सब संभालना मुश्किल हो रहा था। बंदे को सकुशल देख उन्हें राहत मिलती है। उसे याद आता है कि चार साल हुए जब नाली नहीं बनी थी तो घनघोर बारिश में भी पानी दहलीज़ नहीं लांघता था। पता नहीं नगर निगम के इंजीनियरों ने कौन सा कमाल दिखाया कि पानी घरों में घुसने लगा।

बंदा यों तो नास्तिक है। मगर हालात के मद्देनज़र उसने इंद्र देवता को याद किया। और देवता मान गये! बारिश थमने लगी। सबने राहत की सांस ली। दो-तीन घंटे में घर के भीतर घुसा गंदा पानी उतर जायेगा। मगर एक बहुत बड़ी मुसीबत सामने है। तेज बारिश के साथ बिजली चली गयी थी। थोड़ी देर में अंधेरा होने को है। इनवर्टर भी ज्यादा साथ नहीं देने वाला। चारों ओर पानी ही पानी है। कैसे और कब ठीक होगी बिजली की खराबी? किसके आगे हाथ जोड़े? बिजली के कोई देवता भी तो नहीं हैं!

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-वीर विनोद छाबड़ा
डी0 2290, इंदिरा नगर,
लखनऊ- 226016
मोबाईल नंबर 7505663626

दिनांक 18. 07. 2014

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