Sunday, June 28, 2015

धरम को मीना ने बनाया हीमैन।

धरम को मीना ने बनाया हीमैन।
-वीर विनोद छाबड़ा
लुधियाने के सीधे-साधे धर्मेंद्र को फिल्मफेयर ने न्यू टैलेंट घोषित किया। लगा कामयाबी कदम चूमेगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। इस द्वारे से उस द्वारे। कोई पिंड जा कर कुश्ती लड़ने की सलाह देता तो कोई ठंड रखने की। थक गया धरम। बोरिया-बिस्तर समेट घर वापसी की तैयारी कर ली कि अर्जुन हिंगोरानी ने ऑफर दिया- दिल भी तेरा हम भी तेरे। फिर अनपढ़, पूजा के फूल आदि कुछ फ़िल्में की। 'आई मिलन की बेला' टर्निंग पॉइंट बनी। हीरो राजेंद्र कुमार के साथ सेकंड लीड। धरम पहली बार बेहद खूबसूरत दिखे। प्रोड्यूसर-डायरेक्टर किवाड़ खड़खड़ाने लगे।

फिर एक और टर्निंग पॉइंट आया। ओपी रल्हन ने 'फूल और पत्थर' की स्क्रिप्ट लेकर जीजा राजेंद्र कुमार को अप्रोच किया। राजेंद्र पहले ही रल्हन की 'प्यार का सागर' और 'गहरा दाग' कर चुके थे। राजेंद्र बेहतरीन जेंटलमैन थे। बोले - इसके लिए धरम फिट रहेंगे।
जाने क्यों रल्हन को धरम पसंद नहीं थे। मगर झक मार कर कास्ट करना पड़ा। नायिका थी -मीना कुमारी। उनके साथ धरम 'मैं भी लड़की हूं' और 'पूर्णिमा' कर चुके थे और 'काजल' फ्लोर पर थी जिसमें वो उनके भाई की भूमिका में थे।
कहते हैं 'फूल और पत्थर' से धरम और मीना में कुछ ऐसी नज़दीकियां बनीं कि अफ़साने बने और फिर फ़साने।  तब तक मीना का कमाल अमरोही से तलाक भी हो चुका था। विनोद मेहता की मीना की ज़िंदगी पर लिखी किताब में इसका खासा खुलासा है। लुबे-लुबाब यह कि मीना की ज़िंदगी में धरम कुछ इस तरह रच-बस गए थे कि वो धरम के बिना उनका जीना दुश्वार था। मीना ने धरम को बेरहम फ़िल्म इंडस्ट्री में जीने की तमीज़ सिखाई। उनका शीन-काफ़ और तल्लफ़ुज़ दुरुस्त किया।
कमाल अमरोही को मीना की धरम से नज़दीकियां पसंद नहीं थीं। उन्होंने 'पाकीज़ा' से धरम को हटा कर राजकुमार को लिया। मीना बहुत नाराज़ हुई।
उन दिनों राजकुमार बड़ा नाम थे और बेहतर एक्टर भी। अच्छा ही किया। 'आपके पैर बेहद खूबसूरत हैं। इन्हें ज़मीन पर मत रखियेगा। मैले हो जायेंगे।' सदी का यह मशहूर डायलॉग राजकुमार की किस्मत में था।
धरम भी मीना के बिना अधूरे थे। मगर कुछ का कहना है कि धरम ने खुद को प्रमोट करने के लिए मीना का इस्तेमाल किया। जब मीना को उनकी सख्त ज़रूरत थी तब वो हेमा के लिए उन्हें छोड़ कर चले गए।
बहरहाल, फूल और पत्थर में आया एक अहम शूट। सीन कुछ यों था। बीमार मीना बिस्तर पर लेटी हैं। रात का वक़्त। आंधी-तूफान का माहौल। नशे में बुरी तरह धुत्त धरम चाल में घुसते हैं। मीना पर नज़र पड़ी। आंखों में वासना तैरी। उन्होंने अपनी कमीज उतारी। पहली बार किसी हीरो की मांसल देह दिखी लोगों ने। फिर धरम ने वो किया जिसने हज़ारों-लाखों का दिल जीत लिया। अपनी शर्ट ठंड से कांपती बीमार मीना पर डाल दी। और इस तरह एक हीमैन का जन्म हुआ।

लेकिन यह आसानी से नहीं हुआ। धरम ने यह शूट करने से मना कर दिया- मीना जी बहुत सीनियर हैं। उनके सामने शर्ट उतारना महापाप है। मुझसे नहीं होगा।

ओपी रल्हन और धरम में इस पर खासी बहस हुई, झगड़ा हुआ। मीना के कान में बात पहुंची। उन्होंने धरम को बहुत डांटा। तब जाकर धरम राजी हुए। और एक इतिहास बना। प्रचार में यही सीन फिल्म के पोस्टर पर भी छापा गया। उस साल की सबसे कामयाब फिल्मों में थी यह फिल्म।
फूल और पत्थर के बाद धरम ने मीना के साथ मझली दीदी, चंदन का पलना और बहारों की मंज़िल की।
धरम जी ने कुल २४८ फ़िल्में का। सत्यकाम, चुपके-चुपके, दोस्त आदि अनेक फिल्मों में बेहतरीन रोल किये लेकिन अवार्ड कभी नहीं मिला।
१९९७ में उन्हें फिल्मफेयर ने 'लाइफटाइम अचीवमेंट' अवार्ड दिया। संयोग से उनके सबसे बड़े आइडियल दिलीप कुमार ने उन्हें यह अवार्ड दिया और कॉम्पलिमेंट दिया- खुदा से विनती है कि अगले जन्म में जब मैं धरती पर आऊं तो मुझे धर्मेंद्र जैसा खूबसूरत बनाना।
भारत सरकार ने भी धरम पा'जी को २०१२ में पदमविभूषण से नवाज़ा।
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२३-०६-२०१५           

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