Thursday, March 31, 2016

भावनाओं की नहीं क्रिकेट की जीत हुई है।

- वीर विनोद छाबड़ा
१९२ रन ०२ विकेट पर। बहुत अच्छा स्कोर। कोहली ४७ गेंद पर ८९ नॉट आउट। इंडिया की पारी के हीरो। काफी है विपक्षी टीम में दहशत पैदा करने के लिए एक अकेला कोहली। भारतीय खेमा ख़ुशी से झूम रहा है। आतिशबाज़ी का इंतज़ाम कर लो भाई। आज आसमान धुंआ-धुंआ करना है। इतना शोर हो कि कान बहरे हो जायें।

विपक्षी टीम में मायूसी है। फिर १९ पर ०२ दो विकेट। मायूसी गहरा गई है।
भारतीय खेमे में जीत के जश्न की तैयारी शुरू हो गई। बिगुल भी बजने लगे।
मगर हाय री किस्मत। और बेड़ा गरक हो क्रिकेट की अनिश्चित प्रवृति का। पलट गई न बाज़ी। 
अति आत्मविश्वास ही तो है यह। पूरे टूर्नामेंट में अब तक विपक्ष को अपने नागपाश में बांधने वाले भारतीय गेंदबाज़ रन पर रन लुटा रहे हैं। कोई ४८ तो कोई ४५ रन। जान बचाते दिख रहे हैं, जैसे चील-कौवे उनकी खोपड़ी पर चोंच मारने को बेक़रार हों। बहुत विश्वसनीय अश्विन ०२ ओवर में २० रन देने के बाद बहुत हताश हैं। वो आखिरी ओवर डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।
इतिहासविदों को याद आ रहा है १९८३ का वर्ल्ड कप फाइनल। रिचर्ड्स गेंदबाज़ी की चिंदी-चिंदी किये पड़े थे। तब मदनलाल ने कपिल से गेंद छीनी थी। विकेट झोली में आ गया। और फिर १९९३ में साउथ अफ्रीका के विरुद्ध का हीरो कप का सेमी-फाइनल। तब युवा सचिन तेंदुलकर ने अज़हर से गेंद छीनी थी। दोनों ही बार इंडिया जीती थी। इस बार यह काम कोहली को करना पड़ा। ०८ रन ०६ गेंद। लेकिन चमत्कार बार-बार नहीं होते।
और फिर अकेला कोहली ही क्या क्या करे बेचारा। रन बनाए, रन रोके, कैच पकडे और विकेट भी ले। बस करो यारों। बच्चे की जान लोगे क्या?
आखिर वही हुआ जो दीवार पर बड़े हरफों में साफ़-साफ़ लिखा था। ०२ गेंद बाकी रहते वेस्ट इंडीज की नैया पार। ०७ विकेट से शानदार जीत।
टूर्नामेंट में अब तक हारते-हारते जीतती आई टीम इंडिया मुंबई में जीतते-जीतते हार गई। काश ०२ रन पर जो ०२ विकेट गिरे तो नो बॉल न होती! काश टॉस जीत कर बल्लेबाज़ी करते! ऐसा होता तो बाद में गेंदबाज़ी करते हुए ओस से हमारे हाथ से गेंद तो न फिसलती। करिये बहानेबाज़ी, जितनी भी कर सकते हैं। मरे सांप को लाठी से पीटो, जितना पीटना है। जीत जाते तो कोई कमी याद न आती।
यह सही है कि अफ़सोस तो है हारने का। लेकिन इसमें दो राय नहीं कि आज के दिन वेस्ट इंडीज की टीम इंडिया टीम से बेहतर खेली। वो खेल के जज़्बे से खेली। उसने प्रोफेशनल क्रिकेट खेली। मायूसी को हावी नहीं होने दिया। वो तो क्रिकेट के लिए बनाया गया कई कैरिबियाई देशों का एक संगठन है। उसे क्रिकेट में कुछ खोना नहीं होता। आज मैच में वो खड़े-खड़े शॉट्स लगा रहे थे। हार गए तो ठीक और जीत गए तो बहुत बढ़िया। फिर उन्हें रोकने का कोई प्लान भी नहीं बनाया था टीम इंडिया ने।

इस हार से हमें कई सबक मिलते हैं। चाहे ज्योतिष शास्त्र बांचो या अंकशास्त्र  या नक्षत्र देखो। और चाहे टेरा कार्ड फड़फड़ाओ। हवन करो या कीर्तन। हौंसला बढ़ाने के लिए नारे लगाओ या विशाल पोस्टर गली-गली के नुक्कड़ों पर टांगो या चैनल मीडिया पर डंका पीटो। सब बेकार साबित है। नियति द्वारा खींची लकीरें भी कभी कोई बदल पाया भला। हर मैच के दौरान 'ऊपर' ड्यटी करने वाला भारतीय नहीं होता। 
अब गाओ बैठ कर मेरा सुंदर सपना टूट गया....इस दुनिया में जीना तो गम छोड़ के मनाओ रंग रेली...लेकिन मैं तो मानूंगा कि भावनाओं की नहीं क्रिकेट की जीत हुई है।
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