Saturday, December 31, 2016

गायक बनने आये थे राजखोसला

-वीर विनोद छाबड़ा
एक नौजवान पचास की शुरुआत में लुधियाना से सपनों की नगरी बंबई आता है। शास्त्रीय संगीन का अच्छा ज्ञान उसकी जेब में है। वो दिवंगत कुंदन लाल सहगल की गायकी पर फ़िदा है। उन्हीं की तरह गाता भी है। उसे दृढ़ विश्वास है कि वो उनकी खाली जगह को भर देगा। और सबसे बड़ी बात यह है की बंबई में उसका एक दोस्त है - देवानंद।  इस नौजवान का नाम था राजखोसला।
बंबई में अक्सर ऐसा होता है कि बंदा बनने कुछ आता है और बन कुछ और जाता है। राजखोसला के साथ भी यही हुआ। रोटी-रोज़ी की तलाश ने राजखोसला को प्रोड्यूसर-डायरेक्टर गुरुदत्त के द्वारे पहुंचा दिया। गुरू ने सलाह दी। जब तक सिंगर बनने का चांस नहीं मिलता तब तक मेरे सहायक बन जाओ।
राज जल्दी ही समझ गए कि निर्देशन ही ज़िंदगी है। अपना हुनर उसी में दिखाने की ठान ली।
पहली फिल्म मिली देव-गीताबाली की मिलाप (१९५४)। सुपर फ्लॉप हुई। पहली फ्लॉप बहुतों को सर्कुलेशन से बाहर कर देती है। लेकिन राज पर उनके गुरू गुरुदत्त का भरोसा कायम रहा। उन्होंने देवानंद-शकीला के साथ 'सीआईडी' ऑफर की। रातों रात फिल्म सुपर-डुपर हिट हो गई। राजखोसला अगली सुबह उठे तो स्टार डायरेक्टर बन चुके थे। सस्पेंस और थ्रिल फिल्मों की शुरुआत इसी फिल्म से मानी जाती है।
उसके बाद कालापानी, सोलवां सावन और बंबई का बाबू। सब देवानंद के साथ। ठप्पा लगा देवानंद नहीं तो राज खोसला कुछ नहीं। राज ने चैलेंज स्वीकर किया। नवोदित जॉय मुकर्जी-साधना के साथ म्यूजिकल 'एक मुसाफिर एक हसीना' बनाई। यह भी हिट हुई।

राजखोसला मधुबाला से बहुत प्रभावित थे। 'कालापानी' में उन्होंने मधु को डायरेक्ट किया। उसमें मधु के करने लायक कुछ नहीं था। उन्होंने मधु को प्रॉमिस किया कि टॉप क्लास हीरोइन बना दूंगा। लेकिन मधु की बीमारी के कारण तमन्ना अधूरी रही।
साधना में उन्हें एक रहस्यमई ब्यूटी दिखी और नतीजा सस्पेंस थ्रिलर वो कौन थी, मेरा साया और अनीता। सिनेमा में यह पहली रहस्यमई ट्राइलॉजी थी।
राज को मानों महिलाओं में टैलेंट खोजने की आदत पड़ गयी। चुलबुली और ग्लैमरस आशा पारेख में 'आशा' आर्टिस्ट खोज निकाली। दो बदन, चिराग़, मेरा गांव मेरा देश और मैं तुलसी तेरे आंगन की में आशा ने प्रतिभा के झंडे गाड़ दिये। उस दौर की वो सबसे महंगी आर्टिस्ट रही। त्रासदी ज़रूर रही कि आशा को इन फिल्मों में कोई पुरुस्कार नहीं मिला।

मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए...याद है 'मेरा गांव मेरा देश' का यह गाना। एक अनाम सी छोटी एक्ट्रेस और डांसर लक्ष्मी छाया को ज़मीन से आसमान पर पहुंचा दिया। यह बात दूसरी रही कि लक्ष्मी छाया बैठे-बैठाये मिली इस प्रसिद्धि को भुना नहीं पायी। 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' में उन्होंने बढ़ती आयु की नूतन को भी पुनः स्थापित किया। नूतन को बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। 'दो रास्ते' से मुमताज़ घर घर की पसंद बन गयी - बिंदिया चमकेगी चूड़ी छनकेगी
राजखोसला की अन्य मशहूर फ़िल्में हैं - शरीफ़ बदमाश, कच्चे धागे, प्रेम कहानी, नहले पे दहला, दोस्ताना आदि।
राजखोसला चूंकि फिल्म नगरी में गायक बनने आये थे, अतः संगीत उनकी नस-नस में सदैव बहता था। यही कारण रहा कि संगीत उनकी फिल्मों का बेहद मजबूत पक्ष रहा। गानों के फिल्मांकन के उस्ताद भी कहे गए। 'दो रास्ते' में उन्होंने अपने आराध्य केएल सहगल को श्रद्धांजलि दी। इस फिल्म की पृष्ठभूमि में सहगल का गाया 'एक बंगला बने न्यारा...' रह रह कर सुनाई देता रहा।
यह भी एक त्रासदी है कि राजखोसला को उनके टैलेंट के मुताबिक ईनाम नहीं बस नामांकन मिले। हां भारत सरकार जागी, मगर बहुत विलंब से। २०१३ में उनकी याद में डाक टिकट ज़ारी किया गया।

वक़्त कभी एक सा नहीं रहता। राजखोसला के साथ भी यही हुआ। दासी, तेरी मांग सितारों से भर दूं, माटी मांगे खून, सन्नी, मेरा दोस्त मेरा दुश्मन और नक़ाब की एक के बाद एक नाकामी ने उन्हें गहरे अवसाद में धकेल दिया। और ३१ मई १९२५ को जन्मे राजखोसला की लीला बिना किसी शोर के ९ जून १९९१ को खत्म हो गयी।
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Published in Navodaya Times dated 31 Dec 2016
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