Monday, December 5, 2016

लाख दुखों की एक दवा है।

-वीर विनोद छाबड़ा
जमूरा डमरू बजा-बजा कर भीड़ जमा कर रहा है। उधर मदारी झोले में से कई साईज़ की रंग-बिरंगियां शीशियां निकाल रहा है। थोड़ी देर में मदारी देखता है मजमा लग गया है। 
मदारी भीड़ को संबोधित करता है - मेहरबानों और कद्रदानों आज दुनिया का आठवां अजूबा देखिये। आपकी सारी तकलीफें गायब करने को ये मदारी आया है। हिमालय की सबसे ऊंची चोटी से लाई जड़ी-बूटी से तैयार। आज मैं आपका ऐसा अजूबा दिखाऊंगा कि आपकी अगली सात पुश्तों को भी कभी कोई तकलीफ नहीं होगी।
गठिया-जोड़ों का दर्द गायब। किसी भी किस्म का पेट दर्द और जलन खत्म। आधा सीसी सरदर्द गायब। गुर्दा-जिगर में पड़े बड़े बड़े पत्थर पिघल जाएं। ऊपर से सांस लेने तकलीफ है कोई बाद नहीं। नीचे से भी तकलीफ है तो भी कोई बात नहीं।
आप डॉक्टर के पास जाओगे। वो बताएगा - ये पुर्ज़ा ख़राब, वो ख़राब। कूल्हा जापान में बदलेगा और घुटना चीन में और भेजे के लिए जर्मनी या अमरीका जाओ। हम आपको कहीं नहीं भेजेंगे। हम सब जगह घूम आये हैं। आप के लिए नायाब नुस्खा तैयार कर लिया है। लाख दुखों की एक दवा। 
बिलकुल फ्री दवा है। जले-कटे पर भी काम आती है। वेदों और पुराणों में भी इसका ज़िक्र है। अमरीका से बराक ओबामा भी इसकी पुड़िया मंगा चुके हैं और पुतीन का आर्डर रूस से आया रखा है। दावा है कि हमारी बताई विधि के अनुसार सेवन करें तो नब्बे से नौ साल होने में वक़्त नहीं लगेगा।
यह चूरन मरदानापन वापस भी लाता और बढ़ाता भी है। कीमत कुछ नहीं। इतना सस्ता कि समझो दो वक्त का पान की थूक या फिर दो सिगरेट का धुआं। मेहरबानों-कद्रदानों ठीक लगे तो देना नहीं तो बिलकुल फ्री में घर ले जाना और अगर चूरन ठीक न लगे तो किसी गटर में फ़ेंक देना और पैसा वापस ले जाना। यह मदारी और जमूरा रोज़ यहीं मिलते हैं। सर धड़ से अलग हो जाये या हाथ कट कर गिर जाए। उसे भी जोड़ दे हमारा ये करामाती चूरन।
क्या कहा? पहले हम आजमाएं। बिलकुल ठीक कहते हैं।
ये कहते हुए मदारी ने झोले में से एक बड़े फन वाला चाकू निकाला और देखते ही देखते जमूरे की गर्दन पर चला दिया। गर्दन से खून का फौव्वारा छूट पड़ा। जमूरा धरती पर गिर पड़ा। मदारी ने फौरन चूरन उसकी गर्दन उस पर छिड़क दिया और तड़पते जमूरे को एक मैली सी सफ़ेद से चददर से ढक दिया।
मेहरबानों पापी पेट का सवाल है। दो मिनट तक कोई हिलेगा नहीं, कोई आवाज़ नहीं। नहीं तो रूह नाराज़ हो कर चली जाएगी।
तभी चददर के नीचे हलचल होती है। जमूरा उठकर बैठ जाता है। उसकी गर्दन पर कटे का निशान है और खून से गर्दन सनी है। उसकी कमीज पर भी कई जगह खून के धब्बे हैं।
मदारी पूछता है। जमूरा ठीक है। जमूरा बाअवाज़े बुलंद बोलता है। हां, उस्ताद। मदारी पूछता है। कोई तकलीफ? जमूरा बताता है। नहीं उस्ताद।
सब लोग वाह-वाह करने लगते हैं।
मदारी जनता की ओर मुखातिब होता है - मेहरबानों-कद्रदानों अब आप चूरन खा लें। देखना, जिस तकलीफ को डॉक्टर पिछले दस साल में नहीं भगा पाया उसे मेरा करामाती चूरन महज़ दो सेकंड में गायब करेगा। सौ ग्राम की छोटी शीशी सिर्फ़ तीस रुपए में और मझोली चालीस और दो सौ ग्राम की बड़ी शीशी सिर्फ पचास रुपए में। जनता टूट पड़ती है - एक बड़ी शीशी मुझे, एक बड़ी मुझे।
आधे घंटे बाद मदारी एक खंडरनुमा कमरे में बैठा रुपए गिन रहा है और जमूरा भुने मुर्गे की टांग से मांस नोचते हुए शिकायत कर रहा है - बापू आज तो एक झटके में हज़ार से ऊपर खींच लियो होंगे। लंबा हाथ मारा है। विलायती चलोगी आज तो। मगर बापू ये कौन सा रंग गर्दन पर लगा दीयो हो। मिटो ही ना हो। 
हां, इस बार थोड़ा टेम लगियो। रुपए गिनने में व्यस्त मदारी गर्दन झुकाये ही बताता है।

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Published in Prabhat Khabar dated 05 Dec 2016
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