Thursday, March 16, 2017

लिफ़ाफ़ा मेज़बान को दीजिये

- वीर विनोद छाबड़ा
हमारे एक मित्र हैं। जब भी मिलने आते हैं तो कोई न कोई नेक सलाह ज़रूर दे कर जाते हैं।
आज अभी थोड़ी देर पहले रुख़सत हुए हैं। बता रहे थे - आजकल सहालग का सीज़न है। न्यौते खूब आ रहे हैं। कई लोगों के हाथ में बड़े बड़े आकर्षक पैक वाले गिफ्ट होते हैं। लेकिन ज्यादतर लोग नक़द देने में विश्वास रखते हैं और वो भी बंद लिफ़ाफ़े में। सस्ता पड़ता है। लिफ़ाफ़ा हमेशा ऊपर की जेब में रखना चाहिए। ताकि मेजबान को दिखाई दे जाये। उसे तसल्ली हो जाती है कि मेहमान खाली हाथ नहीं आया। मेज़बान के इर्द-गिर्द दो-तीन चक्कर भी लगा लो। रक़म भारी हो तो लिफ़ाफ़ा चिपका दो और मेज़बान के हाथ में रखो। स्टेज पर चढ़ कर दूल्हा-दुल्हन को देने की ज़रूरत नहीं। न जाने कौन पार कर दे।

फिर आजकल स्टेज भी बहुत ऊंची होती है। नकली स्टेज और नकली सीढ़ियां। गिरने का ख़तरा बहुत होता है। हमारा एक बार घुटना फूट चुका है। महीना भर अस्पताल में पड़े रहे। यह तो अच्छा हुआ कि यह हादसा लिफाफा देने के बाद स्टेज से उतरते समय हुआ।
एक बार लिफाफा हमने मेज़बान को देना चाहा तो उन्होंने जोर देकर कहा - अरे वर-वधु को दीजिये। और फोटो भी ज़रूर खिंचवाईवेगा।
वर-वधु को हज़ारों रुपया मिला। मगर वो पूरे बंटी और बबलू निकले। एक भी लिफ़ाफ़ा बाप को नहीं दिया। उलटे तर्क दिया - आपसे क्या मतलब? आशीर्वाद तो हमें मिला है।
और उन्होंने सारी रकम हनीमून में उड़ा डाली।
हमारे एक मित्र सलाह देते हैं अगर लिफ़ाफ़े में रक़म कम हो तो सीधे मेज़बान के हाथ में कभी न रखो। आजकल के मेज़बान भी चालाक होते हैं। लिफ़ाफ़ा हाथ में आया नहीं कि अंदाज़ा लगा लेते हैं कि एक सौ एक है या एक हज़ार एक। बेहतर है स्टेज पर चढ़ जाओ। लिफ़ाफ़ा वर-वधु को देते हुए फोटू खिंचवाओ। फिर एक फोटू पीछे खड़े होकर आशीर्वाद की मुद्रा में खिंचवाओ और संभल कर स्टेज से उतर लो। आजकल की पीढ़ी जल्दबाज़ होती है। पहले 'मैं' के चक्कर में धक्का न दे दे। कई लोग तो खाली लिफ़ाफ़ा पकड़ा कर फोटू खिंचवा लेते हैं। मेज़बान सोचता है कि निकाल ली होगी रक़म किसी ने।
कई लोग तो शर्ट की जेब में लिफ़ाफ़ा रखे रहते हैं और डिनर खा कर निकल लेते हैं। इसीलिये कई जगह पुरानी व्यवस्था लागू है। कोई मुनीम टाईप बंदा बैठा दिया जाता है। वो आपका नाम और रक़म नोट करता रहता है।
हमें याद आता है कि ढेर नेक सलाह देने वाले इस मित्र के बेटे की शादी में हम सपरिवार गए थे। फ़ोटो की रस्म अदायगी में हमें कभी यक़ीन नहीं रहा। ऐसा इसलिये कि भीड़-भाड़ में न कोई जाने और न पहचाने। मित्र बहुत व्यस्त थे। द्वार-चार आदि की रस्मों में कहीं खोये हुए।
हमने भोजन इत्यादि गले से नीचे उतारा। उन्हें तलाशा। देखा वो एग्ज़िट गेट पर खड़े हैं। उन्होंने हमें गले लगाया। फिर हमारे हाथ से लिफ़ाफ़ा लगभग छीना और अपने नौजवान भतीजे को पकड़ा दिया। उसने लिफ़ाफ़े को एक बैग में ठूंस दिया।
हम फ़ैमिली के साथ थे। सोचा बता दूं कि हम साथ-साथ हैं। लेकिन मित्र को फ़ुरसत नहीं थी। वो किसी दूसरे से मुख़ातिब थे। हम सरक लिए। 

कुछ दिन बाद हमें पता चला कि उन मित्र के भतीजे ने हज़ारों रूपये की चपत लगा दी थी। उसने रुपयों से भरे कई लिफाफे ग़ायब कर दिए थे। 
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