Thursday, March 9, 2017

अगर सुनील दत्त न निभाते बिरजू का किरदार...

- वीर विनोद छाबड़ा
हिंदी फिल्म जगत में जितनी परदे पर जोड़ियां मशहूर हैं, उतनी ही परदे के पीछे भीं हैं। इनमें सबसे टॉप पर कदाचित सुनील दत्त-नरगिस की जोड़ी है। इनमें  मन-मुटाव की कभी खबरें नहीं उड़ी। बल्कि सदभाव की मिसाल बनी। धर्म अलग थे, लेकिन एक-दूसरे का बहुत श्रद्धा के साथ आदर किया। यकीनन यह प्रेम विवाह था। शुरुआत भी फ़िल्मी स्टाईल में हुई थी। हुआ यों था कि महबूब खान की 'मदर इंडिया' की शूटिंग चल रही थी। राधा (नरगिस) के बेटे की भूमिका में थे बिरजू सुनील दत्त। हालांकि सुनील दत्त रीयल लाईफ में नरगिस से चंद दिन ही छोटे थे। उन दिनों नरगिस दिग्गज नायिका थीं और सुनील दत्त महज दो-तीन साल पुराने। सीन कुछ यूं था कि खलिहान में आग लगी है और आग से घिरी राधा को बेटा बिरजू बचाता है। लेकिन हुआ यों कि नरगिस सचमुच ही आग में घिर गयीं। उनका बचना मुश्किल हो गया। लेकिन सुनील दत्त की दिलेरी ने उन्हें बचा लिया।
बस यहीं से सुनील दत्त उन्हें दिल दे बैठे। इधर नरगिस को बचाते हुए सुनील दत्त को कुछ चोटें भी आयीं थीं। उन्हें हफ्ता भर अस्पताल में भर्ती भी रहना पड़ा।  तब नरगिस ने सुनील दत्त की रात-दिन भरपूर सेवा की। और इस बीच ही नरगिस भी उन पर फ़िदा हो गयीं। पारिवारिक संबंध भी मजबूत हुए। कुछ दिन गुज़रे। एक दिन सुनील दत्त की बहन की तबियत अचानक ख़राब हो गई। तब नरगिस ने उनकी बहुत मदद की। सुनील दत्त को लगा कि नरगिस में एक ऐसी पत्नी के परफेक्ट गुण हैं जो परिवार के सदस्यों का ख्याल रख सकती हैं। बस उन्होंने नरगिस को प्रोपोज़ कर दिया - मैं आपसे शादी करना चाहता हूं।

नरगिस उस समय कुछ नहीं बोलीं। वो उन दिनों कुछ डिप्रेशन में भी थीं। उनकी कई फिल्मों के नायक राजकपूर से उनके संबंध ख़त्म हो चुके थे। क्योंकि वो शादी-शुदा थे और पांच बच्चों के पिता भी। दोनों ने महसूस किया कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में नरगिस को एक सहारे की सख्त ज़रूरत थी। और उन्होंने सुनील दत्त की बहन के मार्फ़त पैगाम भिजवा दिया कि यह रिश्ता उन्हें मंज़ूर है।
दोनों तुरंत शादी करना चाहते थे लेकिन महबूब खान विलेन बन गए - 'मदर इंडिया' अभी रिलीज़ नहीं हुई है। स्क्रीन पर मां-बेटा और रीयल लाईफ में पति-पत्नी, ऑडियंस कभी स्वीकार नहीं करेगी। फिल्म की शूटिंग के दौरान ऐसा सीन भी आया कि राधा बेटे बिरजू की पिटाई करती है और आखिर में गोली भी मार देती है। नरगिस को बहुत नाग़वार लगा। लेकिन महबूब खान ने उन्हें समझाया कि रीयल लाईफ़ को दिल-दिमाग से बाहर रखो।
आख़िरकार फिल्म २५ मार्च १९५७ को रिलीज़ हुई। मदर इंडिया सुपर-डुपर हिट हुई और मील का पत्थर बनी। ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेट भी हुई। ११ मार्च १९५८ को सुनील उर्फ़ बलराज दत्त और फ़ातिमा राशिद उर्फ़ नरगिस परिणयसूत्र में बंध गए। इधर नरगिस को बेहतरीन परफॉरमेंस के लिए फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला। आगे चल कर पद्मश्री भी। फिर 'रात और दिन' के लिए श्रेष्ठ नायिका का राष्ट्रीय अवार्ड मिला। 
'मदर इंडिया' से जुड़ा एक और दिलचस्प वाक्या भी है। नरगिस के बेटे बिरजू की भूमिका के लिए महबूब खान ने एक विदेशी कलाकार चुन रखा था। लेकिन बात बनी नहीं। तब महबूब ने दिलीप कुमार से बात की। लेकिन दिलीप-नरगिस ने कई फिल्मों में रोमांटिक भूमिकाएं की हुई थीं। उन दोनों को अटपटा लगा कि मां-बेटे के किरदार में ऑडियंस स्वीकार नहीं करेगी उन्हें। अंततः सुनील दत्त को चुना गया।

सोचिये अगर बिरजू का किरदार किसी और ने अदा किया होता तो नरगिस-सुनील दत्त की जोड़ी कैसे बनती? लेकिन जोड़ी तो बननी ही थी। इसलिए कि जोड़ियां ऊपर से बन कर आती हैं। सुनील दत्त ने एक इंटरव्यू में कहा था - मुझे नरगिस के अतीत ने कभी परेशान नहीं किया। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम कि मैं उससे प्यार करता हूं और वो मुझे। वो एक बहुत ही अच्छी पत्नी और बच्चों की मां है। 
नर्गिस ने स्वेच्छा से एक्टिंग छोड़ दी। घर-गृहस्थी और सामाजिक सेवा में पूर्णतया गुम हो गयीं। ब्याह के बाद उनका इश्क देखते ही बनता था। उनके तीन बच्चे हुए - एक बेटा और दो बेटियां। सब कुछ ठीक चल रहा था। सुनील दत्त ने अजंता आर्ट्स ग्रुप का गठन किया। १९६२ में चीन युद्ध के बाद इस ग्रुप ने सीमा पर जाकर जवानों का हौंसला बढ़ाया। उनका मनोरंजन किया। फंड्स जमा किये।

लेकिन उधर नियति का अपना खेल ज़ारी था। नरगिस को पैंक्रियाटिस कैंसर हो गया। सुनील दत्त ने उन्हें बचाने में ज़मीन-आसमान एक कर दिया। उन्हें अमेरिका भी ले गए। महीने भर कोमा में रहीं वो। डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन एक दिन चमत्कार हो गया। नरगिस कोमा से बाहर आ गयीं। लगा कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। वो बेटे संजय के लिए बहुत चिंतित थीं। बड़ी शिद्दत से उसकी पहली फिल्म 'रॉकी' का प्रीमियर देखना चाहती थीं। मगर ऐसा हो नहीं सका। नरगिस ३ मई १९८१ को इस फानी दुनिया को छोड़ गयीं। मगर खेल जारी रहना चाहिए। तय दिन ०७ मई १९८१ को 'रॉकी' का प्रीमियर हुआ। उस दिन थिएटर में एक सीट खाली थी। 
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Published in Navodaya Times dated 08 March 2017
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