Sunday, April 26, 2015

सलीक़ा!

-वीर विनोद छाबड़ा
अन्ना कैरेनिना, वॉर एंड पीस के प्रसिद्ध रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय (१८२८-१९१०) एक समय के पास लेखन कार्य इतना अधिक हो गया कि उनको एक सहायक की ज़रूरत पड़ गयी।

अख़बार  में विज्ञापन दिया। सैकड़ों अर्जियां आ गयी। इनमें एक अर्ज़ी के साथ उनके एक घनिष्ट मित्र की सिफ़ारिशी चिट्ठी भी थी।
लेकिन टॉलस्टॉय ने इस पर ध्यान नहीं दिया और किसी अन्य को नियुक्ति दे दी।
उनके मित्र भनभनाते हुए आये और शिकायत करने लगे  - मैंने एक योग्य कैंडिडेट के लिए सिफ़ारिश की थी। लेकिन आपने एक ऐसे व्यक्ति को नौकरी पर रखा, जिसके पास पर्याप्त योग्यता के प्रमाण पत्र भी नहीं थे। क्या मैं जान सकता हूं कि आपने ऐसा क्यों किया
टॉलस्टॉय ने कहा - मित्र धैर्य रखें। मैं अभी उसका परिचय आपसे करा देता हूं।
यह कह कर टॉलस्टॉय ने अपने नव-नियुक्त सहायक को बुलाया। तुरंत ही वो सहायक हाज़िर हुआ।
कमरे में आने से पहले सहायक ने दरवाज़े पर दस्तक देकर अंदर आने की इज़ाज़त मांगी। दरवाज़े को इतनी धीमी आवाज़ से खोला कि आवाज़ नहीं हुई और फिर उसे उसी तरह सटाया भी। उसके कपडे साधारण थे मगर साफ़-सुथरे। 
टॉलस्टॉय ने उसे बैठने का इशारा किया। वो बेआवाज़ कुर्सी खिसका कर बैठ गया। टॉलस्टॉय ने उससे कुछ सवाल पूछे जिसका उसने पूरे आत्मविश्रास से जवाब दिया।
फिर टॉलस्टॉय ने उसे कुछ निर्देश दिए जिसे उसने एक नोट बुक में लिखा। और फिर जाने की इज़ाज़त लेकर चला गया।
टॉलस्टॉय ने अपने मित्र की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

मित्र ने कहा - आपने सही निर्णय लिया। इसे किसी सिफ़ारिश या प्रमाणपत्र की ज़रूरत नहीं थी। असली योग्यता तो सलीका है जो इसमें सर से पांव तक है।
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26-04-2015 

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