Monday, April 6, 2015

ग्रेट थे राजेंद्र बाबू!

-वीर विनोद छाबड़ा
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में सभी जानते हैं। उनके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं।
बताया जाता है कि राजेंद्र बाबू अपने कर्मचारियों का बहुत ध्यान रखते थे। छोटा-बड़ा, ऊंच-नीच कुछ मायने नहीं रखता था। सब उनका परिवार था। वो सबसे और सब उनसे बहुत प्यार करते थे।

इन्हीं में था एक - तुलसी राम। राजेंद्र बाबू का दुलारा। लाड प्यार के कारण वो कुछ बिगड़ैल भी था वो।
एक दिन सफाई करते हुए उससे राजेंद्र बाबू का कलम गिर कर टूट गया।
इस कलम को राजेंद्र बाबू बहुत सहेज कर और सीने से लगा कर रखते थे। कहीं से उपहार में प्राप्त हुआ था।
राजेंद्र बाबू को जब इस बावत ज्ञात हुआ तो वो बहुत बिगड़े तुलसी राम पर। अक्षम्य अपराध। गुस्से में बहुत बुरा-भला भी कहा। वो यहीं तक नहीं रुके उसका तबादला तक अन्यत्र करने का हुक्म दे दिया।
तुलसी राम अपराध की भावना से ग्रस्त हो कर चुपचाप वहां से चला गया।
लेकिन अपराध तुलसी राम का और नींद राजेंद्र बाबू को रात भर नहीं आई। वो तुलसी राम के बारे में सोचते रहे। एक कलम ही तो थी। टूट गई तो क्या हुआ। दूसरी आ जायेगी। लेकिन मैंने तुलसी राम का दिल तोड़ दिया। ईमानदार और निष्ठावान। थोड़ा नटखट है। उम्र भी तो कम है उसकी। रह-रह कर उसकी याद आ रही थी।

सुबह होते ही सबसे पहला काम यही किया कि तुलसी राम को बुलवाया। थर-थर कांपता तुलसी राम हाज़िर हुआ। जाने अब और क्या सजा मिले?
मगर राजेंद्र बाबू उसे देखते ही हाथ जोड़ कर खड़े हो गए - मुझे माफ़ कर दे तुलसी?
लेकिन तुलसी हैरान - गलती तो मैंने की है और माफ़ी आप मांग रहे हैं।
राजेंद्र बाबू कुछ नहीं बोले।
वस्तुतः राजेंद्र बाबू अपने विनम्र स्वभाव से बहुत विपरीत जाकर गुस्सा हुए और इसीलिए उन्हें बहत ग्लानि हो रही रही थी। वो तुलसी राम को समझा नहीं पाये।
नोट - उक्त प्रेरक कथा मैंने किसी विद्वान से सुनी थी। मुझे स्मरण नहीं किस सन्दर्भ में उन्होंने सुनाई थी। आज यूं ही बैठे-ठाले याद आ गयी। मित्रों नोट करके रख लो। आगे किसी को सीख देने के भी काम आयेगी
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vir vinod chhabra 06 April 2015

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