Sunday, January 29, 2017

हरजाई दोस्त और जूता

- वीर विनोद छाबड़ा
मित्र आया - ख़ुशख़बरी है भाई। हमारी शादी तय हो गयी है। इलाहबाद जानी है बारात। तैयार रहना। खूब डांस करना है तुम्हें।
हम खुश हुए। कई दिन से नया जूता खरीदने की सोच रहे थे। न मनपसंद सही। लेकिन इतनी रकम तो है ही कि साधारण जूता तो ख़रीदा ही जा सकता है। मौका भी है और रस्म भी। 

हम भविष्य के उस दृश्य की कल्पना करके पुलकित हो उठे कि इलाहबाद की सड़कों पर नया जूता पहने डांस कर रहे हैं....आज मेरे यार की शादी है....मेरे पैरों में घुंघरू पहना दे फिर मेरी चाल देख ले....मेरा यार बना है दूल्हा...
हम निकल पड़े जूता खरीदने। रास्ते में शादी वाले मित्र का घर पड़ा। ख्याल आया - यार को भी बताता चलूं। देखो, तुम्हारी शादी की ख़ुशी में नया जूता खरीदने जा रहा हूं। सुन कर बड़ा खुश होगा।
लेकिन जब हमने मित्र को ये बताया तो वो खुश होने की बजाये उदास हो गया। उसकी आंखें भीग गयीं - कैसी त्रासदी है। शादी तो मेरी है। लेकिन नया जूता तुम पहनोगे। कैसा लगेगा जब सबको मेरा जूता फटा दिखेगा? कितनी तौहीन होगी। तुम तो जानते ही हो। इधर-उधर से उधार लेकर जैसे-तैसे शादी कर रहा हूं। मां का दबाव न होता तो इस कड़की में कतई शादी न करता।
यह कहते हुए मित्र ने हमारे कंधे पर सर रख दिया। हमने उसे पुचकारा, तो भलभला कर रो पड़ा। हमारे मन में भी भावुकता का समुद्र हिलोरें लेने लगा और हम उसमें बह गए। दो सौ रुपये मित्र को उधार स्वरूप दे दिये। शादी की बाद लौटा देना। हमारी जेब ठनठन गोपाल हो गयी।
हमारा और पिताजी के पैर का नाप एक ही था। हमने पिताजी का एक जोड़ी रिजेक्टड जूता उठाया। कायदे से उलट-पुलट देखा। कुछ गुंजाईश बाकी दिखी। मोची के पास पहुंचे। उसने देखते ही डस लिया। खासी चिरौरी की। पुरानी दोस्ती का वास्ता भी दिया। वो तैयार हो गया। मगर शर्त वही हमेशा वाली। डांस मत करना।
बहरहाल, फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए हम बारात के साथ इलाहाबाद पहुंचे। आपात हालात से निपटने के लिए एक जोड़ी स्लीपर रख लिया।

बारात भर हम डरे-डरे रहे कि कहीं जूता न हंस दे। मित्रों ने डांस के लिये हमें बहुत उकसाया और कई बार घसीटा भी। मगर हम पेट-दर्द का बहाना बना कर किनारे ही रहे। इलाहाबाद की सड़कों पर फेवरिट ट्विस्ट डांस का प्रदर्शन करने का अरमान धरा का धरा रह गया। उधर दिल जलाने को मित्र उधार के पैसे का नया जूता पहन कर इतरा रहा था।
हम इलाहाबाद से सही सलामत लौट आये। लेकिन पता चला कि मित्र बड़ा हरजाई निकला। पट्ठे ने सिर्फ़ हमें बल्कि तीन और दोस्तों को भी इमोशनल ब्लैकमेल किया था। नतीजतन उसके पास तीन जोड़ी नया जूता हो गया। हमारे दिल में आया कि फटे-पुराने मरम्मतशुदा जूते से उसकी मरम्मत कर दूं।

तक़रीबन पैंतीस साल गुज़र चुके हैं, हमारे मित्र ने कई दफ़ा याद दिलाने के बाद भी वो दो सौ रूपए वापस नहीं किये। रिटायर हो चुका है। शान से कार से चलता है। हर बार नया जूता।
हम भी जूता मारने से पीछे नहीं रहते - वाह, बहुत बढ़िया जूते हैं। किसको चूना लगाया?

मित्र खींसे निपोर देता है - हटो भी यार, मज़ाक करने के लिए हमीं मिले हैं क्या?
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29-01-2017 mob 7505663626
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