Saturday, July 25, 2015

पापा, आप फेल भी हुए हैं?

-वीर विनोद छाबड़ा
वीर गाथाएं सुनते-सुनते छोटे क्या बड़े भी बोर हो गए।
खुद से कई बार सवाल किया। क्या ज़िंदगी में कभी ठोकर नहीं खायी? नाले में साइकिल समेत नहीं गिरे? माता-पिता जी से मार नहीं खायी? टीचर ने कभी बेंच पर खड़ा नहीं किया? छड़ी से पीटा नहीं? पड़ोसन को छेड़ने पर उसके पिता ने शिकायत नहीं की? रांगसाइड स्कूटर चलाने या सिग्नल तोड़ने पर सिपाही ने चालान नहीं काटा?
हथेली में मुंह छुपा कर मैं अक्सर डाउन मेमोरी लेन में पहुंच जाता हूं।

देखता हूं कि असफलताओं की लंबी फ़ेहरिस्त है। तफ़सील से लिखा जाए तो मोटा ग्रंथ तैयार हो जाये।
वास्तव में मैं शरारतों को छोड़ पढाई के मामले में मंदबुद्धि छात्र रहा हूं। मुझे याद नहीं है कि पहली से पांचवीं तक मैं कैसे पहुंचा।
छटवीं कक्षा की छमाही परीक्षा में फर्स्ट ज़रूर आया। लेकिन उसके बाद पढ़ने में मन नहीं लगा। फ़ोकस चेंज हो गया।
पिताजी कहते थे - साइकिल में पंक्चर लगाना। हवा भरना।
लेकिन मां संभाल लेती थी सिचुएशन को - मेरा लाल जवाहरलाल बनेगा।
और हमारे मन में हीरो हीरालाल बनना था। हाई स्कूल में बिना चांदे की सहायता से ६० डिग्री का कोण बनाना नहीं आता था। नतीजा हाई स्कूल में फेल।
घर की जैसे प्रोग्रेस ही रुक गई। गहरे अवसाद के दिन थे वो। कई बार सोचा, भाग जाऊं। लेकिन यह सोच कर डर गया कि कहां जाऊंगा, क्या करूंगा और क्या खाऊंगा?
बहरहाल, जैसे-तैसे उबरा। इस बार अच्छे अंक के साथ दूसरी श्रेणी। लेकिन ट्रिग्नोमेट्री और सॉलिड ज्योमेट्री सर में नहीं घुसी। नतीजा इंटरमीडिएट में फेल। लेकिन इस बार की ठोकर ने मुझे मजबूत बना दिया। कभी भागने का मन नहीं हुआ। ट्रिप्पल एमए कर लिया। कह सकता हूं, थ्रू आउट सेकंड डिवीज़न। कम्पटीशन से बढ़िया नौकरी भी मिली। किसी की सिफारिश नहीं ली। अपने पिता की तरह सेल्फ़मेड।
एक बार बच्चों को बताया कि मैं हाई स्कूल और इंटरमीडिएट में एक-एक बार फेल हो चुका हूं तो वो बड़ी जोर से हंसे - पापा आप फेल भी हुए हैं? इतने बड़े नालायक थे! हम लोग तो कभी फेल नहीं हुए। मम्मी भी नहीं। 
मित्रों, मैं नाकामियों को छुपाता नहीं। वो इसलिए कि ताकि जब मैं परिवार के साथ टहलने निकलूं तो डॉ वीरेंद्र पुरी न मिल जायें, जो कहें  - अच्छा, तो आप वही हैं जो मेरे साथ हाई स्कूल में थे। हां, याद आया। मैं तो पास हो गया था और आप शायद फेल हो गए थे। तो हाई स्कूल कब पास किया?
कभी-कभी सच भी हज़म नहीं होता।
एक बार मैंने बच्चों को बताया - नौकरी लगने से पहले अपना जेब खर्च निकालने के लिए मैंने लिफाफे भी बनाये हैं।
बच्चों ने कहा था - एकदम सफ़ेद झूठ! इतना झूठ भी मत बोला करें पापा।
-----
25-07-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow-226016

No comments:

Post a Comment