Tuesday, July 28, 2015

अपनी पहचान खुद बनाओ।

-वीर विनोद छाबड़ा
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को कौन नहीं जानता। २६ जुलाई १८५६ को डबलिन में जन्मे आयरिश प्लेराइटर शॉ वर्किंग क्लास के क़रीब थे और ज़िंदगी भर उनके हक़ूक़ की बात करते रहे।
समाजवादी विचारों के पक्के बर्नार्ड शॉ पुरुष और महिला दोनों को समाज में बराबरी का हक़ दिए जाने के हामी थे। वो इकलौते ऐसे शख़्स हैं जिन्हें साहित्य में नोबेल पुरुस्कार (१९२५) मिला और साथ ही 'पयागमिलन' फिल्म के स्क्रीनप्ले (१९३८) के लिए भी अमरीका का एकेडेमी अवार्ड मिला।

बर्नार्ड शॉ को इसके अलावा भी अनेक अवार्ड ऑफर हुए। लेकिन उन्होंने सब ठुकरा दिए। इसमें प्रतिष्ठित नाईटहुड अवार्ड भी शामिल रहा।
बर्नार्ड शॉ की ज़िंदगी के शुरुआती दिन बहुत फ़क़ीरी में गुज़रे। उन्हें दो वक़्त की रोटी जुटाने के लिए ज़बरदस्त जद्दोज़हद करनी पड़ी। मगर धीरे-धीरे ही सही उन्होंने कामयाबी की नित नई बुलंदियों को छुआ।
एक बार बर्नार्ड शॉ को एक बड़े कॉलेज के फंक्शन में बतौर चीफ़ गेस्ट न्यौता दिया गया। तमाम स्टूडेंट उनके दीदार के साथ-साथ उन्हें छूने, उनसे हाथ मिलाने और ऑटोग्राफ़ लेने के लिए पागल से हो गए।
बर्नार्ड शॉ ने किसी को निराश नहीं किया। उनसे मिलने वालों की भीड़ में एक स्टूडेंट ने अपनी ऑटोग्राफ़ बुक उनके सामने रख हांफते हुए एक सांस में कहा - बड़ी मुश्किल से आप तक पहुंचा हूं। मुझे इल्मो अदब में ज़बरदस्त दिलचस्पी है। मैंने आपकी तमाम किताबें पढ़ी हैं। आपकी तरह अपनी एक पहचान बनाना चाहता हूं। ऑटोग्राफ़ देते हुए कोई मैसेज ज़रूर दें, प्लीज़।
बर्नार्ड शॉ ने उस स्टूडेंट को मुस्कुरा कर देखा। फिर कुछ लिखा। और ऑटोग्राफ बुक लौटा दी।
उस स्टूडेंट ने ऑटोग्राफ़ बुक खोली। उसमें बर्नार्ड शॉ ने लिखा था - दूसरों के ऑटोग्राफ़ लेने में वक़्त ज़ाया मत करो। संघर्ष करो। खुद को इस योग्य बनाओ कि दूसरे तुम्हारे ऑटोग्राफ़ लेने को तरसें।
यह पढ़ कर वो स्टूडेंट मुस्कुराया। उसने भीड़ में अपना हाथ लहराया। मानो कह रहा हो - हां, ज़रूर सर। थैंक्यू।
शॉ ने उस लहराते हाथ को देख लिया और जवाब में हाथ हिलाया।
फिर वो स्टूडेंट भीड़ में गुम हो गया।

बर्नार्ड शॉ ने ऐसे ही संदेश ऑटोग्राफ़ लेने के लिए मारामारी करने वालों को दिए।
बर्नार्ड शॉ की मृत्यु ०२ नवंबर १९५० को हुई। उस वक़्त वो सीढ़ी पर चढ़ कर पेड़ की छटाई कर रहे थे। सीढ़ी से वो गिर गए। उनके गुर्दे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। वो ९४ साल के थे।
०६ नवंबर को बर्नार्ड शॉ की अस्थियों उनकी दिवंगत पत्नी चलोट की अस्थियों के साथ मिला कर एक पार्क के फुटपाथ पर और सेंट जॉन के बुत के आस-पास बिखेर दी गयीं।
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