Sunday, June 12, 2016

बैंक बैलेंस।

- वीर विनोद छाबड़ा
श्यामदेव मृत्य शैया पर थे। पत्नी को उन्होंने बहुत पहले खो दिया था। उन्होंने अपने बच्चों को बुलाया। मेरे पास बैठो। मैं तुम सब के सुंदर भविष्य की कामना करता हूं। मैंने सारी ज़िंदगी ईमानदारी से जी है। मुझसे वादा करो कि मेरे पदचिन्हों पर चलोगे।

उनमें से सबसे छोटी बेटी मुन्नी स्वंय को रोक नहीं पाई। पापा, हमारे लिए आपने बैंक में एक पैसा भी नहीं छोड़ा है। यह मकान तक किराए का है। सॉरी पापा, हम आपके पदचिन्हों पर नहीं चल सकते। बेहतर होगा कि आप स्वर्ग की ओर प्रस्थान करें। हम अपनी ज़िंदगी अपनी तरह जियेंगे।
श्यामदेव ने एक गहरी सांस ली। जैसी तुम लोगों की इच्छा। यह कह कर उन्होंने सदैव के लिए आंख मूंद ली।
कुछ बरस बाद मुन्नी एक बहुत बड़ी कंपनी में एक ऊंची पोस्ट के लिए इंटरव्यू देने गई। उसे अपने पर पूरा भरोसा था। जब उसका नंबर आया तब तक इंटरव्यू पैनल ने ऊंची योग्यता वाले एक कैंडिडेट को सेलेक्ट करने का मन बना रखा था। बाकी कैंडिडेट तो मात्र औपचारिकता थे।
चेयरमैन ने मुन्नी का फॉर्म देखा। अच्छा तो श्यामदेव की पुत्री हो। किस शहर के श्यामदेव।
मुन्नी ने शहर का नाम बताते हुए बोली कि वो बहुत ग़रीब थे और उन्होंने हमारे लिए एक पैसा भी...
चेयरमैन ने मुन्नी को रोक दिया - अच्छा तो तो तुम उस श्यामदेव की पुत्री हो जो अपनी निष्ठा, फ़र्ज़ और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। तभी तो यह कंपनी टॉप पर है। मेरा फॉर्म पर उन्होंने ने ही हस्ताक्षर किये थे। उनकी संस्तुति के कारण ही मैं यह टॉप पोजीशन हासिल कर पाया हूं। मैं उनको कई बरस से तलाश रहा हूं ताकि नमन करके उनका ऋण अदा कर सकूं। अब हमें तुमसे कुछ नहीं पूछना। श्यामदेव की पुत्री होना ही तुम्हारी सबसे बड़ी योग्यता है। तुम कल से काम पर आ सकती हो।
मुन्नी को पांच लाख रूपए महीना, दो कारें, बहुत बड़ा फर्निश बंगला और तरह तरह के भत्ते मिले। कुछ वर्षों बाद वो उस कंपनी की चेयरमैन बन गई। उसकी आंखों में आंसू थे। वो अपने पिता को याद कर रही थी। उसने पत्रकारों को अपनी कहानी बतायी। एक पत्रकार ने उससे पूछा आप अपने पिता को कैसे याद करती हैं?

मुन्नी ने बताया कि मैंने अपने घर के एंट्रेंस और हर कमरे की दीवारों पर उनके बड़े बड़े चित्र टांग रखे हैं। मेरे पिता सही थे। मैं ग़लत थी। मैं पूरे यकीन के साथ कहती हूं कि पिता की धन-दौलत उनका बैंक बैलेंस और प्रॉपर्टी नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी दौलत उनकी ईमानदारी, निष्ठा और कर्तव्यपरायणता है। और इसी की बदौलत आज मैं टॉप पर हूं। और मैं सबको यही संदेश देती हूं कि ईमानदार पिता के पदचिन्हों पर चलो।

नोट - यह एक अंग्रेजी कथा पर आधारित है जिसे मेरे मित्र रवींद्र नाथ अरोड़ा ने मुझे सुनाई है।
---
12-06-2016 mob 7505663626
D-2290, Indira Nagar
Lucknow - 226016

No comments:

Post a Comment