Monday, June 6, 2016

समोसा बनाम जलेबी

- वीर विनोद छाबड़ा
उस दिन अलसुबह समोसा बाबू आ धमके। सदैव की तरह उखड़े हुए और गुस्से में सुर्ख। अखबार पटक दिया। मैंने पहले ही कहा था। लोकतंत्र में कद्र लियाक़त और इल्म की नहीं, तिकड़म और बाज़ीगिरी की है। सिर्फ़ कुतर्क बिकता है। देख लीजिए, जलेबी बेचने वाला मोहल्ला सुधार समिति का इलेक्शन लड़ रहा है। कहता है, हड़प्पा काल से उसके पुरखे जलेबी बेचते आये हैं। मां-बाप तबेले में रहे। एक टाईम भूखा सोया। चुनाव न हुआ भीख मांगना हो गया। एक नंबर का झूठा। अरे, बचपन से उसे जानता हूं। बाप मिठाई वाला था। कई बार छापा पड़ा। मिलावट मिली। पुलिस ने अंदर किया। घूस देकर छूटा। इलज़ाम कारीगरों पर धर दिया। मिलावटी मिठाई बेच बेच कर महल खड़ा किया, हाहाकारी होटल बनवाया।

उस अमरीकी कंपनी का पता हम भी जानते हैं जो मदारी को हीरो, पत्थर को पारस और रजनीकांत को सुपर स्टार बनाती है। अब वही इस इस जलेबी को मुखिया का इलेक्शन लड़वा रही है। हमें याद है कि चालीस साल पहले इस जलेबी के बगल में समोसे की दुकान थी हमारी। समोसे में आलू कैसे घुसा? दर्जन भर अमरीकी शैफ आये थे हमसे जानने। पांच लाख समोसा एक्सपोर्ट किया। तब ये जलेबी चिरौरी किया। तरस खाकर हमने समोसे के साथ जलेबी भी चलवा दो। समोसे के साथ जलेबी पहली बार जापान गयी। तुम्हारी रगों में खून है तो यहां भी पानी नहीं। हमारा अतीत खंगालो तो कई उपन्यास, कहानियां, ट्रेजेडियां, नौटंकिया, काव्य झरझरा कर गिरें। लिखूं तो कालजई बन जायें। नोबुल प्राईज़ वाले ढूंढ़ते फिरें। किवदंती बन जायेंगे हम। ईमानदारी किसी काम की नहीं, अगर कायदे-कानून का तोड़ नहीं मालूम। हम यहीं मात खा गये, जलेबी आगे निकल गया।
समोसा बाबू  हांकते ही जा रहे थे और बंदा समोसे और जलेबी का अतीत याद कर रहा था। दोनों पक्के दोस्त थे। एक बार समोसा व जलेबी सिनेमा के टिकट ब्लैक करते हुए दबोचे गये। बंदे के पिताजी ने जमानत दी थी। समोसे को सद्बुद्धि आयी। बीए कर गया। ऊंची सरकारी नौकरी मिली। क्लास वन पोस्ट से रिटायर हुआ। विशाल निजी मकान है। मोटी पेंशन और भारी बैंक बैलेंस। लेकिन जलेबी का ढाबे से होटल तक का सफ़र इन्हें फूटी आंख नहीं सुहाता। कुछ-कुछ होता है।

तभी समोसा 'एक्ट पार्ट-टू' शरू हो गया। फाईनल कर लिए हैं, हम भी इलेक्शन लड़ूंगा। समोसा सस्ता होकर घर घर से होता हुआ दुनिया भर में पॉपुलर होगा। बेरोजगारी तो खत्म समझो। दुश्मन ललकारे तो समोसे में बारूद भरकर उस पर फेंको। दुनिया हमारे समोसे से थरथरायेगी। जो रजनीकांत ने नहीं किया, समोसा कर दिखायेगा।
तभी समोसाजी को बंदे का सफेद पैमेरीयन कुत्ता डिक्की दिखा। उन्हें किसी भी ब्रांड के कुत्ते से सख्त एलर्जी है। वो हट-हट कहते हुए बंदे से लिपट कर थर-थर कांपने लगे।  
बंदे को खूब मालूम है कि जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं। समोसा और जलेबी दोनों इसी का नमूना हैं। खरीद कर न ये जलेबी खाते हैं और न समोसा। फ्री का मिले तो इतना डकारें कि तीन दिन जुगाली करते घूमें। नज़र बचा कर जेब में भी भरने से भी न चूकें। जबकि सालाना आमदनी लाखों में है। दिल खुला और मजबूत होना चाहिये, जो इनके पास है नहीं।
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Published in Prabhat Khabar dated 06 June 2016
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