Tuesday, May 30, 2017

सच्चे का बोलबाला

-वीर विनोद छाबड़ा
मंत्री मंडल में वो सबसे अधिक शिक्षित, बुद्धिमान और योग्य मंत्री था। इसी कारण से वो राजा का प्रिय और विश्वासपात्र भी था। राज्य हित में जो भी निर्णय लिए जाते थे, उसमे मंत्री की सलाह अवश्य ली जाती थी।
इससे राजा के साथ-साथ मंत्री की भी जय-जयकार होती थी। यह बात मंत्रिमंडल के बाकी मंत्रियों को पसंद नहीं थी। वो मंत्री की पीठ पीछे अक्सर राजा के कान भरा करते थे कि राज्य में अपराधों की बढ़ती संख्या और व्याप्त भ्रष्टाचार के पीछे मंत्री का ही हाथ है। मंत्री ऊपरी तौर पर ईमानदार है लेकिन भीतर से महाभ्रष्टाचारी है।
एक झूठ जब सौ बार बोला जाये तो वो सच लगने लगता है। राजा यों भी कान का कच्चा था। उसने बिना जांच कराये मान लिया कि मंत्री भ्रष्ट है।
राजा ने मंत्री को बुलाया। आरोपों का पुलिंदा थमाते हुए कहा - तुम पर लगे आक्षेप गंभीर हैं। तुम्हें तीन दिन का समय दिया जाता है। यदि इस समयावधि में खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाये तो कड़ा दंड भुगतना होगा। मृत्यु दंड भी दिया जा सकता है।
तीन दिन व्यतीत हो गए। मंत्री ने जवाब नहीं दिया। राजा को विश्वास हो गया कि मंत्री दोषी है इसलिए उसने कोई जवाब नहीं दिया है। राजा भरी सभा में मंत्री को दोषी करार देते हुए सजा-ए-मौत का ऐलान करने ही जा रहे थे कि मंत्री की ओर से एक पत्र प्राप्त हुआ। राजा ने उसे बाआवाज़े बुलंद पढ़ने का हुक्म दिया।
मंत्री ने पत्र में लिखा था - मेरे ऊपर जितने इल्जाम हैं, सब ग़लत हैं। मगर सबूतों के अभाव में मैं खुद को निर्दोष साबित नहीं कर कर पाऊंगा। बेइज़्ज़त होने की ज़िल्लत से बेहतर है कि आत्महत्या कर लूं। लिहाज़ा मैं मरने जा रहा हूं।
राजा ने मंत्री की दूर-दूर तक तलाश करवायी। लेकिन न मंत्री मिला और न उसका शव। जब दस दिन से अधिक का समय व्यतीत हो गया तो यह मान लिया गया कि मंत्री ने वास्तव में आत्महत्या कर ली है और उसका शव जंगली जानवरों ने खा लिया है। राजा ने एक शोक सभा आयोजित की। शोक सभा में अपार जनसमूह के साथ साथ मंत्री के विरोधी भी उपस्थित थे।

जनसमूह में वो मंत्री भी वेश-भूषा बदल कर उपस्थित था जिसे सभी मृत मान रहे थे।
विरोधियों सहित सभी ने मंत्री जी की भू:रि भू:रि प्रशंसा करते हुए उन्हें बेहतरीन प्रशासक, विश्वासपात्र और ईमानदार और बेदाग़ छवि वाला व्यक्ति करार दिया।
उस मंत्री ने जब विरोधियो को अपनी तारीफ़ के पुल बांधते सुना तो वो नकली वेश-भूषा को छोड़ कर मंच पर आ गया। विरोधियों के होश उड़ गए। मंत्री ने राजा से कहा - हे राजन, अगर मैं अपराधी और भ्रष्टाचारी था तो मेरी तारीफ़ क्योंकर हो रही हैक्या ऐसे लोगों पर विचार किया जाना उपयुक्त है जिनके विचार इतनी जल्दी बदल जाते हैं।

राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया। मंत्री को गले लगाया और शिकायती मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। 
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