Monday, May 22, 2017

भूतनी के छाबड़ा जी....

- वीर विनोद छाबड़ा
ज्ञानी-ध्यानी कह गए हैं पाप से घृणा करो पापी से नहीं।
लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग कभी दुरुस्त नहीं होते। क्यूंकि उनका स्वाभाव ही डंक मारना होता है।
कोई नौ दस साल पहले की बात है। तब हम इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की सेवा में हुआ करते थे।
चेयरमैन साब का फरमान हुआ कि फलां फ़ाइल फौरन से पेश्तर पेश की जाये।
अधीनस्थ ऑफ़िसर से मैंने उस खास फाइल को पर्सनली सेक्शन से जल्दी करवा कर लाने को कहा।
जब किसी पत्रावली को आला ऑफ़िसर तलब करता है तो उसे सिर्फ मातहतों के भरोसे छोड़ना ठीक नहीं होता। यह सोच कर मैं भी पीछे-पीछे चल दिया कि वहीँ सेक्शन में बैठ कर निपटा दूंगा फाइल। इससे जल्दी का उद्देश्य भी पूरा होगा। और फिर मैं खुद चेयरमैन को फाइल पेश दूंगा।
जब मैं सेक्शन पहुंचा तो देखा दरवाज़ा खोल कर वो अधीनस्थ ऑफ़िसर खड़े थे और मेरे दिए हुए हुक्म को कुछ इस अदाज़ में पास कर रहे थे - वो फ़लानी फाइल जल्दी निकालो। वो भूतिनी के छाबड़ा जी मांग रहे हैं।

इधर स्टाफ ने हमें उनके पीछे खड़े देख लिया और सब खड़े हो गए। ईशारे से अधीनस्थ ऑफीसर को समझाने की कोशिश भी की। लेकिन वो समझ नहीं पाए।
फिर सहसा उन्हें अहसास हुआ कि पीछे कोई खड़ा है। वो तुरंत पलटे। देखा कि पीछे मैं खड़ा हूं तो उनकी सिट्टी -पिट्टी गुम हो गयी।
लेकिन अब क्या हो सकता था। तीर तो कमान से निकल चुका था। उन्होंने ज़मीन में नज़रें गड़ा लीं। शर्मिंदा होकर उन्होंने माफ़ी मांग ली।
मैंने उन्हें माफ़ भी कर दिया। लेकिन उसके बाद वो मुझसे नज़रें मिला कर कभी बात नहीं कर सके। कुछ महीने तक मैंने उन्हें कार्यविहीन रखा। वो रोये-गाये और गिड़गिड़ाए तो पुरानी स्थिति बहाल कर दी। 

मैं तो अब रिटायर हो गया। लेकिन वो अभी वहीं हैं। कतई नहीं बदले हैं। हां ऑफिसर्स के लिए ग़लत लफ्ज़ इस्तेमाल करने से पहले एक-बार आगे-पीछे देख ज़रूर लेते हैं।
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23-05-2017 mob 7505663626
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