Wednesday, May 13, 2015

वक़्त - कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज़…

- वीर विनोद छाबड़ा
लाला केदारनाथ शहर के जाने माने रईस हैं। यह रईसी उन्हें विरासत में नहीं मिली है। कड़ी मेहनत मशक्त्त से कमाई है। उन्हें बड़ा गुरूर है इसका।
लाला केदारनाथ के घर जश्न चल रहा है। एक ज्ञानी ज्योतिषी किसी मेहमान के साथ आये हैं।
उन्होंने लालाजी का हाथ देखा - वक़्त कब किस्से क्या कराये कोई नहीं जानता। कभी-कभी दौलत गठरी में बंधी रह जाती है और इंसान भीख मांगता रह जाता है। हाथ में चाय प्याला होटों तक आते-आते बरसों बीत जाते हैं।
लालाजी ज्योतिष और भाग्य में यकीन नहीं रखते। मुट्ठी में बंद भाग्य में नहीं बाज़ुओं की मेहनत में यकीन करते हैं। उन्हें फख्र है लाला केदारनाथ जो चाहे जब चाहे खरीद सकता है। बस एक तमन्ना है शहर का सबसे बड़ा व्यापारी बनने और एक चमचमाती कार की ताकि जब वो उसमें अपने शहजादों के साथ बैठ कर शान से निकले तो लोग दूर से ही देख कर कहें - वो देखो, वो जा रहा है लाला केदारनाथ.
वक़्त ने अपना खेल दिखाया। एक ज़बरदस्त ज़लज़ला आया। सब तबाह हो गया। आलीशानं मकान-दुकान धूल-धुसरित हो गए और सुनहरे सपने भी। परिवार भी बिछड़ गया।
लाला केदारनाथ फिर सड़क पर आ गया। वक़्त ने तब भी उसका पीछा न छोड़ा। एक मर्डर के सिलसिले में लाला केदारनाथ को जेल हो गई.
इसके बाद वक़्त ने एक लंबा ड्रामा किया। बिछुड़े हुए बच्चे अलग-अलग वातावरण में पल-पोस कर बड़े हुए। रोमांस। हंसी-मज़ाक। चुहल बाज़ी। धांसू संवाद और गीत संगीत। कार-रेस मार-धाड़। फिर एकमर्डर। कोर्ट-कचेहरी। लंबे कोर्ट ड्रामे के बाद असली कातिल का पकडे जाना और बेक़सूर का छूटना। बिछुड़ों का मिलन।
एक बार फिर वही लाला केदारनाथ एंड संस और फिर उसी शानशौकत की वापसी।
बड़ा बेटा बेटा कहता है - देखते रहियेगा पिताजी जी हम इसे शहर की वो आलीशान बुलंदी
लालाजी बात काटते हैं - नहीं नहीं बेटा। एक बार मैंने भी ऐसा ही चाहा था मगर वक़्त ने वो तमाचा मारा कि सब तिनका-तिनका होकर बिखर गया। शायद यह बताने के लिए कि वक़्त ही सब कुछ कराता है। इंसान के हाथ में कुछ भी नहीं।
और हैप्पी एंड।
बीआर चोपड़ा ने अख़्तर मिर्ज़ा की इस कहानी पर १९६५ में 'वक़्त' रिलीज़ की थी। इस सुपर-डुपर हिट इस फ़िल्म ने 'खोया पाया' का एक ऐसा हिट फार्मूला दिया जिस पर बीसियों फ़िल्में बनीं।

लाला केदारनाथ की भूमिका में बलराज साहनी बेजोड़ थे। एवरग्रीन हिट गाना - ऐ मेरी जोहरा ज़बीं तुझे मालूम नहीं, तू अभी तक है हसीं और मैं जवांउन्हीं पर फिल्माया गया था।

इस मल्टी स्टारर में बलराज के राजकुमार, सुनीलदत्त, शशिकपूर, साधना, शर्मीला टैगोर, रहमान, मोतीलाल और मदनपुरी भी थे। यहीं से मल्टी स्टारर चलन में आयीं।
यह फिल्म भले ही एक फैमिली एंटरटेनर थी। लेकिन इस मैसेज के रूप में आज पचास साल बाद भी याद की जाती है - यह आलीशान ऊंची-ऊंची इमारतें, यह बिज़नेस के महल, ये गरूर या घमंड सब यहीं रह जाना है। एक जोरदार ज़लज़ला और सब माटी में जाना है।
कौन जाने किस घडी वक़्त का बदले मिजाज़

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14-05-2015

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