Friday, May 22, 2015

बाकी जो बचा महंगाई मार गयी.…

-वीर विनोद छाबड़ा
प्रोड्यूडर-डायरेक्टर-एक्टर मनोज कुमार की 'रोटी कपड़ा और मकान' (१९७४) में एक हिट गाना था - बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गयी।
इसकी बड़ी मज़ेदार कहानी है। मनोज के कहने पर गीतकार वर्मा मलिक ने महंगाई पर एक गाना लिखा। गाना क्या कव्वाली बन गयी। उसे पहले तो पढ़ कर सब हंसे। कंटेंट पर भी और इस पर भी क्या यह फिल्माने योग्य गाना है? वर्मा मलिक ने मनोज को कन्विंस किया कि इसमें हिट होने की पर्याप्त गुंजाईश है।
रेकॉर्डिंग शुरू हुई। लता जी का मारे हंसी बुरा हाल। कहां से शुरू और बीच में कहां बहक जाता है गाना। दूसरे गायक मुकेश, चंचल और जानी बाबी कव्वाल भी कतई सीरियस नहीं थे। संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को भी इसमें कुछ दम नहीं दिखा।
जैसे-तैसे गाना रिकॉर्ड हुआ। फिल्मांकन के समय भी आर्टिस्ट मौशमी चैटर्जी और प्रेमनाथ का भी हंस-हंस कर बुरा हाल। यह कैसा गाना है यार? कैसा रिस्पॉन्स मिलेगा पब्लिक का? लेकिन जैसे ही सब स्टूडियो से बाहर निकले तो सुना क्या?
यूनिट के जूनियर आर्टिस्ट से लेकर स्पॉट बॉय तक हर छोटा आदमी गुनगुनाते हुए मिला - बाक़ी जो बचा था महंगाई मार गयी।

और फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही सुपर-हिट हो गया यह गाना। तिस पर ऐसा माहौल कि महंगाई और अराजकता से परेशान जन-जनार्दन की आवाज़ बन गया यह गाना। हर गली-कूचे में छा गया। भारत सरकार भी परेशान हो उठी। कुछ अरसे तक प्रतिबंधित भी रहा। इसकी लंबाई भी नहीं अखरी किसी को। पेश है गाना -
उसने कहा तू कौन है, मैंने कहा उल्फ़त तेरी
उसने कहा तकता है क्या, मैंने कहा सूरत तेरी
उसने कहा चाहता है क्या, मैंने कहा चाहत तेरी
मैंने कहा समझा नहीं, उसने कहा किस्मत तेरी
एक, हमें आंख की लड़ाई मार गयी
दूसरी, यह यार की जुदाई मार गयी
तीसरी, हमेशा की तन्हाई मार गयी
चौथी यह खुदा की खुदाई मार गयी
बाक़ी कुछ  बचा तो महंगाई मार गई.
तबियत ठीक थी और दिल भी बेकरार न था
यह तब की बात है जब किसी से प्यार न था
जब से प्रीत सपनों में समाई मार गयी
मन के मीठे दर्द की गहराई मार गयी
नैनों से ये नैनों की सगाई मार गयी
सोच सोच में जो सोच आई मार गई
बाक़ी कुछ  बचा तो महंगाई मार गई.
कैसे वक़्त में आके दिल को दिल की लगी बीमारी
महंगाई के दौर में हो गई महंगी यार की यारी
दिल की लगी दिल को जब लगाईं मार गयी
दिल ने जो की प्यार की दुहाई मार गयी
दिल की बात दुनिया को बताई मार गयी
और दिल की बात दिल में जो छुपाई मार गयी
बाक़ी कुछ  बचा तो महंगाई मार गई.
पहले मुट्ठी विच पैसे लेकर थैला भर शक्कर लाते थे
अब थैले पैसे जाते हैं, मुट्ठी में शक्कर आती है
हाय हाय महंगाई, हाय दुहाई, हाय हाय दुहाई
तू कहां से आई, तुझे मौत क्यूं न आई
शक्कर में आटे मिलाई मार गई
पाउडर वाले दूध की मलाई मार गयी
राशन वाली लेण की लंबाई मार गयी
जनता जो चीखी, चिल्लाई मार गयी
बाक़ी कुछ  बचा तो महंगाई मार गई.
गरीब को बच्चे की पढाई मार गयी
बेटी की शादी और सगाई मार गयी
किसी की तो रोटी की कमाई मार गयी
कपडे की किसी को सिलाई मार गयी
किसी को मकान की बनवाई मार गयी
बाक़ी कुछ  बचा तो महंगाई मार गई.
जीवन दे बस तीन निशान रोटी कपडा और मकान
ढूंढ ढूंढ के हर इंसान खो बैठा अपनी जान
जो सच बोला तो सच्चाई मार गयी

और बाक़ी कुछ  बचा तो महंगाई मार गई.
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vir vinod chhabra
23-05-2015 mob 7505663626

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