Friday, May 29, 2015

नौकर भी इंसान है.

- वीर विनोद छाबड़ा
ख़लीफ़ा हज़रत उमर की ज़िंदगी सादगी की मिसाल थी। वो हर शख्स को बराबरी का दरजा देते थे। चाहे वो अमीर हो या ग़रीब या फिर फ़कीर।
एक दिन ख़लीफ़ा के घर मेहमान आये। अँधेरा होने को था। चिराग़ जल उठे थे।
ख़लीफ़ा ने मेहमान की खूब ख़ातिर की।
मेहमान को हैरानी हुई कि ख़लीफ़ा सारे काम खुद कर रहे हैं।
ख़लीफ़ा लालटेन की रोशनी में एक ख़त लिखने लगे जिसे उस मेहमान के हाथ दूसरे शहर भिजवाना था।
अचानक लालटेन की लौ टिमटिमाने लगी। ख़लीफ़ा बोले - इसमें तेल ख़त्म रहा है।
मेहमान ने कहा - मैं तेल भर देता हूं। मुझे बतायें तेल कहां रखा है?
ख़लीफ़ा बोले - नहीं, नहीं। आप ज़हमत न करें। मैं खुद ही भर लेता हूं। आप मेहमान हैं। और मेहमान से काम कराने का हमारे घर में रिवाज़ नहीं है।
मेहमान को यह देख-देख कर परेशानी हो रही थी कि ख़लीफ़ा सारा काम खुद कर रहे हैं। लगता है ख़लीफ़ा के घर नौकर नहीं है। जिज्ञासा शांत करने के लिए मेहमान ने पूछा - ये काम नौकर से करा लेते। आपका नौकर कहां?
ख़लीफ़ा ने कहा - वो दूसरे कमरे में सो रहा है।
अब तो मेहमान की हैरत बढ़ गयी। घर में नौकर है, फिर भी ख़लीफ़ा छोटे मोटे काम खुद कर रहे हैं। नौकर को क्यों नहीं उठा रहे?
मेहमान ने कहा - मैं नौकर को उठा देता हूं। 
ख़लीफ़ा बोले - कतई नहीं। उसे तक़लीफ़ नहीं दें। आज दिन भर उसने खूब काम किया है। थक गया है। आख़िर इंसान ही तो है। अभी आपके आने से पहले ही तो सोया है।
अब मेहमान से रहा नहीं गया - घर में नौकर है। वो सो रहा है। देख रहा हूं कि जबसे मैं आया हूं सारे छोटे-बड़े काम आप खुद कर रहे हैं। नौकर रखने का फायदा क्या है?
खलीफा हंस कर बोले - क्या फ़र्क पड़ता है। जब में तेल डालने गया था तब भी ख़लीफ़ा उमर था और अब तेल डालने के बाद भी वही ख़लीफ़ा उमर हूं। क्या आप मुझसे बात करना पसंद नहीं करेंगे? अपना काम खुद करने से कोई छोटा बड़ा नहीं हो जाता। नौकर भी तो इंसान है। 
इस पर मेहमान के सामने शर्मिंदा होने के अलावा कोई चारा नहीं था।
नोट - यह कथा मैंने कहीं पढ़ी थी।
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29-05-2015 mob 7505663626
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