Saturday, May 30, 2015

भगवान से डरो!

-वीर विनोद छाबड़ा
मेरे एक मित्र होते थे जीपी सिंह। मेरी तरह रिटायर। मुझसे सीनियर। थोड़ा नाटा कद और गठीला बदन होने के कारण जवान भी शर्मिंदा होते।
हमेशा ठहाके लगाते और धुआं उड़ाते मिलते। एक दिन हंसते-खेलते गले में खराश हुई। खराश से खांसी और खांसी के कारण गले में सूजन। डॉक्टर को दिखाया। दवा-शवा हुई। कुछ आराम मिला।
मगर दो दिन बाद फिर वही। खांसी और गले में सूजन। सांस लेने में दिक्कत हुई। डॉक्टर ने खून की तमाम किस्म की जांचे करवायीं। एक्सरे निकलवाया। नहीं समझ में आया। सीटी स्कैन और फिर एमआरआई।
, हो हो हो। हरे राम! - डॉक्टर के मुहं से निकला।
और फिर पीजीआई रेफ़र कर दिया। वहां भर्ती कर लिए गए। फिर नए सिरे से वही लंबी जांचें। 
कैंसर निकला। ट्रीटमेंट शुरू हुआ। रेडियोथेरेपी और फिर कीमोथैरपी का लंबा सिलसिला। कई बार भर्ती हुए।
मैं और एक अन्य मित्र उन्हें घर मिलने भी गए। हौंसला बढ़ाया। हर तरह की मदद की पेशकश की।
वो बोले - भगवान की दुआ से सब ठीक है। खर्चा ज़रूर ज्यादा हुआ है। मगर मेरी हद के अंदर।
मैंने कहा - भैया मेडिकल पर खर्च की भरपाई तो विभाग से हो जाती है। ये आपका अधिकार है। 
वो बोले - कौन भाग-दौड़ करे?
मैंने कहा -और हम ढेर मित्र काहे के लिए हैं। आप बस एसेंशियलिटी फॉर्मसारी फॉर्मेल्टी पूरी कर दो। 
कुछ महीने गुज़र गए। मोबाइल पर जीपी सिंह का हाल-चाल लेते रहे। फिर वो मंथली पेंशनर्स मीट में भी आने लगे। मैं उनसे पूछता रहता - मेडिकल की प्रतिपूर्ति का क्या हुआ?
वो हर बार कहते - जमा कर दिया है। सब अपने ही हैं ऑफिस में। बस एक-दो दिन की बात और है।
कई दिन गुज़र गए। एक दिन जीपी सिंह का फ़ोन आया - भैया, बताते हुए शर्म आ रही है। मुझे पैसे की ज़रूरत है। ढेर दवा खाता हूं। बच्चे खर्च किये जा रहे हैं। मेरा मेडिकल प्रतिपूर्ति का केस हुआ नहीं। करीब साठ हज़ार का बिल है।
मैंने कहा आप तो कहे थे - बस होने वाला है।
वो बोले - हां मुझे यही आभास दिया गया था। लेकिन आज पता चला कि फाइल सेक्शन में ही महीने भर से गोते लगा रही है। कहा जा रहा है कि डॉक्टर से लिखवा दो कि कैंसर है। मैं उन्हें समझा रहा हूं ट्रीटिंग डॉक्टर ने एसेंशियलिटी सर्टिफिकेट और वाउचर वेरीफाई कर दिए हैं। उसमें कैंसर लिखा है। नियम भी  है कि कैंसर के मामले में अलग से सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं। बड़ी मुश्किल से समझ पाये वो। अब फाइल अब इंडस्ट्रियल रिलेशन को भेज दी गयी है ये जानने के लिए नियम क्या है? दर्जनों ऐसे केस कर चुके हैं। लेकिन सारे नियम-कायदे मेरे ही केस में भूल गए हैं। अब दो-तीन महीने की छुट्टी। सब अपने ही लोग हैं। मुझसे जूनियर। मेरे साथ काम किये हैं। क्या करूं इनका?
मुझे गुस्सा आया - बड़े भाई इतनी बार मिले। कभी बताया नहीं। ठीक है मैं एडिशनल सेक्रेटरी पांडेयजी से स्वयं मिलता हूं। हमने कभी साथ-साथ काम किया है। 
मैं अभी घर से निकला ही था कि जीपी सिंह का फ़ोन आ गया - भैया, काम हो गया है।
मुझे हैरानी हुई - कैसे?

वो हंसे - हुआ ये कि एमडी एपी मिश्रा से पुराने संबंध हैं। मगर झिझक के कारण कह न पाया। अब लगा पानी सर से ऊपर निकल गया है तो उनको फ़ोन किया। उन्होंने आश्वासन दिया है। फिर भी पता लगा दो कि नीचे कुछ असर हुआ है कि नहीं।
मैंने अपने संपर्क साधे तो ज्ञात हुआ कि एमडी साहब ने संबंधित अधिकारी को फ़ोन करके सिर्फ़ इतना कहा - भगवान से डरो।
और जो काम राम भरोसे सिस्टम कारण महीनों से लटका था और अभी महीनों और लटकता, वो काम दो घंटे में डिस्पोज़ हो गया और चेक भी कट गयी।
जीपी सिंह को मैंने फ़ोन किया तो वो बोले - मैं चाहता नहीं था इतने ऊपर जाना। लेकिन मजबूर हो गया। सब भगवान से डर गए।
मैंने कहा -  नहीं। ये भगवान से डरने वाले नही। एमडी, एपी मिश्रा से डरे हैं।
भई, अच्छे काम की तारीफ़ तो होनी ही चाहिए।

जीपी सिंह को जल्दी ही फिर कैंसर ने दबोच लिया। इस बार उन्हें ज़िंदगी ने चांस नहीं दिया।
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30-05-2015 mob 7505663626
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