Sunday, August 16, 2015

अगर आईना न होता!

- वीर विनोद छाबड़ा 
किसी भी समय कहीं भी जाना हो, मुझे तैयार होने में कुल जमा पांच-सात मिनट लगते हैं। वो भी सिर्फ़ इसलिए की चेंज होता है। कभी-कभी तो वो भी नहीं। जूता पहना और चल दिए। रात का टाईम कौन देखता है? और फिर कोई मेरी शादी तो है नहीं और न सिल्वर जुबली है। जिसकी है वो सजे-धजे। पॉर्लर में जाए। मेरा पैसा कोई फालतू तो है नहीं। 
मुझे लगता है ज्यादा वक़्त आईना देख कर कंघी करने में जाया होता है। मैं वही नहीं करता। सर पर गिने-चुने तो बाल हैं। क्रीम-पाउडर कतई पसंद नहीं। पैंतीस साल पहले एक बार लगा कर पार्टी में गया था।
एक साहब ने पूछ लिया था - आटे की बोरी से निकल कर आ रहे हो क्या? वाश रूम में जाकर आईने में देखा था तो डर गया था। मानों सफ़ेद प्रेत खड़ा हो। तब से बस चुल्लू भर पानी लिया और मुंह पर छिड़क दिया। लेकिन ऐसा भी कभी-कभी। रुमाल ही काफ़ी है। शेव करते हुए और टाई बांधते हुए आईने में चेहरा देखना एक मजबूरी है। अन्यथा एक मुद्दत हो गयी है कायदे से आईना देखे।
लेकिन जवानी के दिनों के लिए मैं यह दावा नहीं करता। बार-बार ज़ुल्फ़ें संवारना और कंघी करना। कई एंगल से खुद को निहारना तो खूब चलता रहा। लेकिन क़सम अपनी कभी जेब में आईना नहीं रखा। जबकि कई लड़के उस ज़माने में छोटा सा आईना हिप पॉकेट में रखते थे।
और लड़कियां! पूछो मत। इवनिंग शो देखना हो तो मैटनी बोलो। तब जाकर जैसे-तैसे टाईम पर निकल पाएंगी।
अपने ज़माने में ढेर सारा मेकअप का सामान मय आईने के उनके पर्स में धरा देखा। और आज भी कोई कमी नहीं आई है। हां, आईटम सब ब्रांडेड हैं। इसमें आईना तो निहायत ज़रूरी है।
कई बार मैं खुद से मुख़ातिब होता हूं - यह आईना न होता तो दुनिया क्या कर रही होती? हो सकता है थोबड़ा देखने के लिए सरकार या किसी निजी संस्था ने जगह-जगह एटीएम की भांति छोटे-छोटे तालाब बनवाये होते। पांच रूपए में दस मिनट तक खुद को निहारें। क्रीम-पाऊडर थोपें। कहीं-कहीं रिचार्ज कार्ड सिस्टम भी होता। या फिर मंथली किराये पर अनलिमिटेड का प्राविधान होता।
ख़ैर यह तो एक टाईम पास यूटोपिया है।

असल बात यह है कि यह कंघी, लिपिस्टिक, पाऊडर, शीशा वगैरह आज से पचास साल पहले भी मैं पर्स में देखता था और आज भी। तैयार होने में तब भी मरदों के मुकाबले औरतों को ज्यादा टाईम ख़र्च होता था। यानि बीता कल और आज, सेम टू  सेम। इसलिये फ़ैशन के मामले में शिकायत नहीं कर सकता कि ऐसा हमारे ज़माने में नहीं था। युग-युगांतर से चला आ रहा है।
मेरी रिसर्च बताती है कि इंसान ने सभ्य होते ही सबसे पहला काम आईना बनाने का ही किया होगा।
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16-08-2015 Mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow -226016 

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