Sunday, September 4, 2016

हू हूं...

- वीर विनोद छाबड़ा
मित्र की मेमसाब एक बड़े सरकारी अस्पताल में स्टाफ नर्स होती थीं। शिफ़्ट ड्यूटी भी लगती थी। उनकी ड्यूटी लगी समझिये बेचारे मित्र की भी ड्यूटी लग गई। मेमसाब को ठीक समय पर ड्यूटी पर पहुंचाना और ड्यूटी ऑफ होने पर घर छोड़ना। चाहे दिन हो या रात, आंधी-तूफ़ान भी उन्हें रोक नहीं सकते थे। और फिर अपनी भी ड्यूटी देखनी। दोनों ही ड्यूटियां बड़े प्रेम से और सहज भाव से निभाते थे। इसीलिए उन्होंने कार भी ले रखी थी। जब उनकी कार सर्विस के कारण गैराज में होती थी तो हम पर आफ़त टूटती थी। यार ज़रा कार की चाभी देना। दरअसल वो कार चलाते नहीं, उड़ाते थे। उनकी ड्राईविंग स्टाईल की कई निशानियां हमारी कार पर थीं।
 
एक दिन उनकी अर्जेंट मीटिंग लगी। मेमसाब को हॉस्पिटल से पिक करके घर छोड़ने की ज़िम्मेदारी हमें सौंप दी। बड़ा अटपटा लगा। भैया, ऐसी ड्यूटी तो हमने पहले कभी की नहीं है। अब हमारे सीनियर ऑफिसर थे और उम्र में बड़े भी। बड़े भाई के समान। सम्मान तो देना ही था। दोस्ती में बहुत कुछ झेलना पड़ता है कुर्बानियां भी देनी पड़ती हैं। खैर हम पहुंचे। और वही हुआ जिसकी आशंका थी। उन्होंने बहुत लंबी-चौड़ी हमारी क्लास ले ली। कहां रह गया मेरा पति? कौन सी मीटिंग? सच बोल रहे हो न? पत्नी से भी बड़ी कोई ड्यटी होती है क्या? इस ग्रुप का सरगना कौन है? किसी दिन ऑफिस आती हूं पता करने। बहुत मीटिंग होने लगी हैं इन दिनों...
उस दौर में मोबाइल नहीं होता था। बस आने ही वाला था। पत्नी की ड्यूटी ऑफ होने को होती तो वो फ़ोन मिलाते थे - मैंबोल रहा हूं, सिस्टरसे बात करायें....अरे मैं उनका हसबैंड हूं...हां सिस्टर....का हसबैंड...
इधर हमलोग हंसते हंसते लोटपोट। 
फ़ोन पर उनकी काफ़ी देर तक बात होती रहती थी। उधर से क्या कहा जा रहा होता था, मालूम नहीं। लेकिन हमारे मित्र सिर्फ़ 'हूं हूं' ही करते रहते। अक्सर लगातार आधे घंटे तक। उनको तीन शब्द बोलने का मौका अंत में ही मिलता था - अच्छा रखता हूं। यह कह कर फ़ोन पटक दिया करते थे।

एक दिन रहा नहीं गया। पूछ  ही लिया - हूं हूं के अलावा कुछ कहते क्यों नहीं? मुंह में थर्मामीटर तो लगा नहीं रखा?
वो मुस्कुराये - ठीक कहते हो दोस्त। वो कुछ बोलने का मौका ही नहीं देती। नर्स है न! ज्यादा बोलने का नहींमुंह बंद रखो। अच्छे से मुंह खोलो...जीभ के नीचे रखना है थर्मामीटर। हा हा हा!!!
यह कह कर वो उठ खड़े हुए - अच्छा दोस्त चलता हूं। वो इंतज़ार करती होगी। इससे पहले अभी रास्ते से चिकन और प्याज़, पुदीना, धनिया, हरी मिर्च, नीबू  और अदरक लेनी है।
हम समझ गए कि फ़ोन पर उधर से कैसे कैसे निर्देश जारी हुए हैं। मित्र को मुर्गा चढ़ाने के साथ साथ चटनी भी पीसनी है। वो बहुत अच्छे कूक हुआ करते थे। हमने उनके हाथ का बना चिकन और मट्टन कई बार खाया है।

वो दिन है और आज का, हम किसी पुरुष को फ़ोन पर या मोबाइल पर गुफ्तगूं के दौरान सिर्फ़ हूं हूं करते देखते हैं तो सहज अनुमान लगा लेते हैं कि परली साईड पर कौन है? और क्या निर्देश जारी हो रहे हैं
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04-09-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

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