Friday, September 9, 2016

कफ़न में जेब नहीं होती।

- वीर विनोद छाबड़ा
किस्सा वही पुराना है। सास-बहु, भाई-भाई, पिता-पुत्र के रिश्तों में दरार।
मित्र ने इकलौते बेटे को बड़े लाड़-दुलार से पाला-पोसा। अच्छी शिक्षा दी। बढ़िया नौकरी मिली। दुनिया की सबसे अच्छी लड़की तलाशी। लाखों का दहेज़ मिला। बहु क्या आई मानों लक्ष्मी आई। एक पुरानी ज़मीन का सौदा हो गया। कौड़ियों के भाव खरीदी ज़मीन पूरे दो करोड़ का मुनाफ़ा दे गयी।

लेकिन इधर पिछले कुछ दिनों से परेशान हैं।
बेटा पराया हो गया। वो वो दिन भूल गया जब उसे छींक भी आई तो हम रात-रात भर जागे उसके लिए। एक करोड़ का एकमुश्त बीमा कराया उसका। नॉमिनी में उसने मेरा नाम भरा था। पता नहीं क्या जादू कर दिया इस बहु ने कि बेटा हमसे दूर होता जा रहा है। डायन कहीं की। आज बेटे ने बीमा के नॉमिनी कॉलम से मेरा नाम हटा दिया। बदले में बहु का नाम लिखवा दिया। सुना है ऑफिस के रिकॉर्ड में भी पत्नी को नॉमिनी बना दिया है इस नासमझ ने। अरे, हम मर गए हैं क्या?
हमने कहा - इसमें हर्ज़ ही क्या? मेरे पिता ने तो शादी के दूसरे ही दिन मुझे बीमा ऑफिस भेज कर नॉमिनी से अपना नाम हटवा दिया था। ऑफिस रिकॉर्ड में भी उन्होंने जोर देकर मेरी पत्नी को नॉमिनी बनवा दिया। उन्होंने कहा था.... जा अब अपनी ज़िंदगी जी। तुझ पर तेरी पत्नी का अधिकार पहले। सात फेरे लिए हैं तूने दुनिया के सामने। और जानते हो, मेरी पत्नी ने ससुराल को ही मायका समझा। मेरे माता-पिता की अंतिम सांस तक सेवा की। उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया। पत्नी ने खुश होकर कहा, असली दौलत तो यही है। मैं तो धन्य हो गयी.... और बेवकूफ, तुझे काहे की फिक्र? इतनी धन-दौलत है तेरे पास। साथ लेकर जाएगा क्या?
मित्र बोले - तू किताबों की दुनिया में रहता है। इल्मी-फ़िल्मी बातें करता है। इसलिए किस्से-कहानियां बना लेता है। मैं धरती की बात करता हूं। असली बात यह है कि बेटे को मुझ पर यक़ीन नहीं रहा। उसे लगता है कि अगर उसे कुछ हो गया तो हम उसकी पत्नी का ख्याल नहीं रखेंगे।
हमने कहा - ऐसा नहीं होता। ईश्वर न करे कि तेरे बेटे का कोई हादसा-वादसा हो जाए और वो...यह तेरे बेटे की ड्यूटी है कि उसकी पत्नी उसके जाने के बाद आत्मनिर्भर रहे। तेरे जैसे तुच्छ को तेरा बेटा अच्छी तरह जानता है। बहुत अच्छा किया तेरे बेटे ने। उसने अपनी पत्नी के मन में विश्वास पैदा किया है कि उसका पति उससे प्रेम ही नहीं करता बल्कि उसके भविष्य के प्रति भी बहुत फ़िक्रमंद भी है।

लेकिन मित्र नहीं मानते हैं - अरे तू नहीं जानता। पैसा ही सब कुछ है। सबको कंट्रोल में रखता है। नॉमिनी में मैं रहा तो बहु भी कंट्रोल में रहेगी। यह सब उस कल आई छोकरी की लगाई आग है। मायके वाले दहेज में दिया पचास लाख इसी तरह तो वसूल करेंगे।
मित्र नाराज़ होकर, बिना चाय पिए बड़बड़ाते हुए चले गए हैं।
हम सोच रहे हैं पैसा बाप-बेटे के रिश्तों में भी दरार डाल देता है। और यह साला मित्र तो शुरू से ही पैसे का हवसी रहा है। बाप के मरने पर एक धेला खर्च नहीं किया। खुद को फटे-हाल घोषित कर दिया था। झूठा कहीं का। इसे मालूम नहीं कि कफ़न में जेब नहीं होती। इन्हें मित्र कहते हुए भी शर्म आती है। सोचता हूं कि गेट पर बोर्ड लगा दूं - ...का प्रवेश निषेध।
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