Tuesday, August 4, 2015

मास्टर निसार - अर्श से फर्श तक।

-वीर विनोद छाबड़ा
स्टूडियो में कागज़ के फूल का सेट लगा है। कई शॉट शूट होने हैं। गुरूदत्त का ड्रीम प्रोजेक्ट। खुद ही डायरेक्ट कर रहे हैं। फलां एक्स्ट्रा इस जगह होगा और फलां दूसरी जगह। इसको यह बोलना और उसको चुपचाप सिर्फ़ तमाशा भर देखना। और तुमको सिर्फ हंसना।
और हां तुम, दीवार की तरफ तुम्हारा मुंह क्यों है भाई? शॉट रेडी होने को है। मुंह इधर घुमाओ। गुरूदत्त खिजिया कर कहते हैं।

वो एक्स्ट्रा आर्डर का पालन करता है। चेहरा थोड़ा झुका है। वो गुरू से कुछ छुपाना चाहता है।
गुरू उसे ध्यान से देखते हैं। बड़बड़ाते हुए याद करते हैं। कहीं देखा है? कहां?
वो एक्स्ट्रा कुछ बोल नहीं पाता। उसकी आंखों से टप-टप आंसू टपकते हैं।
गुरू को सहसा याद आता है। अरे आप, मास्टर निसार! आप यहां कैसे?
गुरू के हाथ मास्टर निसार के पांव छूने के लिए बढ़ते हैं।
लेकिन मास्टर निसार उन्हें बीच में रोक लेता है। नहीं, नहीं। ठीक है। ठीक है। मैं इस लायक नहीं। रोज़ी रोटी की तलाश में  किस्मत ने यहां ला खड़ा किया है।
गुरू उन्हें गले लगा लेते हैं। नहीं मास्टर जी आप मेरे पूज्य हैं। आप एक्स्ट्रा का काम नहीं करेंगे। आप आराम से बैठेंगे बस।
मास्टर शंकित हो उठते हैं। बैठूंगा तो रोज़ी रोटी कैसे चलेगी?
गुरू शंका समाधान करते हैं। जितने दिन तक शूटिंग चलेगी। आप रोज़ आएंगे। इसी कुर्सी पर बैठेंगे। यही आपका काम है और इसके लिए आपको पेमेंट होगा।
यह थी गुरूदत्त की ग्रेटनेस।
और वो मास्टर निसार? वो थे तीस के दशक के मशहूर नायक मास्टर निसार। वो कलकत्ता के मदन थिएटर की खोज। प्रवाहवार उर्दू बोलना और गाने के लिए बहुत बढ़िया गला। यह खासियतें ही काफ़ी होती थीं उन दिनों किसी की किस्मत को परवाज़ चढ़ने के लिए। १९३१ में जहांआरा कज्जन के साथ उनकी जोड़ी 'शीरीं फरहाद' और 'लैला मजनूं' में हिट हो गयी। पब्लिक में उनके प्रति दीवानगी पागलपन की हद तक।
बाद में टॉकी इरा आया। मास्टर निसार का जलवा तब भी बरक़रार रहा। बहार-ए-सुलेमानी, मिस्र का खजाना, मॉडर्न गर्ल, शाह-ए-बेरहम, दुख्तर-ए-हिंद, जोहर-ए-शमशीर, मास्टर फ़कीर, सैर-ए-परिस्तान, अफज़ल, मायाजाल, रंगीला राजपूत, इंद्र सभा, बिलवा मंगल, छत्र बकावली, गुलरु ज़रीना आदि अनेक हिट फिल्मों के जनप्रिय हीरो निसार।
लेकिन ऊंचाई पर पहुंच कर खड़े रहना आसान नहीं रहता। किस्मत के रंग भी निराले होते हैं। सुनहरे दिन हवा हुए। कुंदन लाल सहगल नाम का एक सिंगिंग स्टार धूमकेतु का उदय हुआ। उसकी चमक के सामने मास्टर निसार फीके पड़ गए। वो करेक्टर रोल करने लगे और फिर छोटे-छोटे रोल से एक्स्ट्रा तक। अर्श से फर्श पर आ गए।
 
पचास और साठ के दशक में शकुंतला, कोहिनूर, धूल का फूल, साधना, लीडर में दो-तीन मिनट की छोटी छोटी भूमिकायें। जब तक पुराने लोग पहचानें शॉट बदल गया। बरसात की रात की मशहूर कव्वाली - न तो कारवां की तलाश है.में वो दिखे। बूट-पॉलिश के सेट पर राजकपूर को बताया गया कि मशहूर ज़माने के हीरो मास्टर निसार काम की तलाश में द्वार पर हैं। दरियादिल राज ने उनके लिए एक छोटा सा रोल क्रिएट कर दिया।
मास्टर निसार के आखिरी दिन बड़ी कंगाली में कटे। उन्हें हाजी अली दरगाह पर भीख मांगते हुए भी देखा गया। उस वक़्त वो बहुत बीमार भी थे। जाने कब गुमनामी में ही दिवंगत हो गए। न कोई शव यात्रा। न किसी की आंख से आंसू टपके और न कोई शोक सभा और न ही कोई खबर छपी। ट्रेजेडी इसी को कहते हैं।
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04-08-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow -226016

1 comment:

  1. Sorry, he is nowhere to be seen in Barsat Ki Rat. But he is the main actor in the Sadhna qawwali Aaj Kyon Humse Pardaa Hai.

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