Thursday, October 15, 2015

पिताजी के कंधे पर बैठ कर नाचना खूब याद है।

- वीर विनोद छाबड़ा
२४ दिसंबर १९५९ दिन गुरूवार। आलमबाग़ का तिराहा।
वहां एक विशाल छायादार पेड़ है। याद नहीं नीम का है या आम का। यह बस स्टॉप भी है। वहीं एक मदन हलवाई का ढाबानुमा होटल भी है। वेज़-नॉनवेज दोनों। चाय और स्नैक्स भी है। सुबह सुबह दही के साथ जलेबी
समोसा और पूड़ी भी। खूब चलता है।

वहां रेडियो भी है। सुबह -सुबह शुरू हो जाता है रेडियो सीलोन से। चाय पियो और जलेबी खाओ। साथ में पुराने गानों का मज़ा।
मदन हलवाई को क्रिकेट से बेहद लगाव है। रेडियो भी इसी वज़ह से खरीदा है। टेस्ट मैच चलता हो तो गाना बजाना बंद, सिर्फ़ कमेंट्री। भीड़ लग जाती है। ज्यादातर के घरों में रेडियो नहीं है। जिसके पास है वो दरवाज़े बंद रखते हैं। हमारे घर में रेडियो नहीं है। हैसियत ही नहीं है।
जनता के दो ही तो शौक हैं मनोरंजन के, सिनेमा और क्रिकेट। कितना ही बोरिंग खेल क्यों न हो भीड़ चींटी की तरह चिपकी रहती है रेडियो से।
मदन हलवाई रेडियो को पेड़ के उस भाग में रख देता है जहां से मोटी-मोटी शाखें फूटती हैं।

कमेंट्री अंग्रेज़ी में है। ज्यादातर को नहीं आती। शोर मचता है। इधर भीड़ भी ताली बजाती है। अगर इंडिया खेल रही हो तो चौका और विदेशी टीम हो तो क्लीन बोल्ड।
बहरहाल, उस दिन मेरे पिताजी ने दफ़्तर से छुट्टी ली है। साथ ही अड़ोस-पड़ोस के कई लोगों ने भी। प्रोग्राम बनाया है सबने - भई आज तो कानपुर में ऑस्ट्रेलिया को हराना है।
सब जम कर बैठ गए मदन हलवाई के ढाबे पर। ऑस्ट्रेलिया को २२५ रन चाहिए जीतने के लिए। आज वो ५९/२ से आगे इनिंग शुरू करेगा। जेसू पटेल पहली इनिंग में ०९ विकेट ले चुके हैं। बड़ी उम्मीदें हैं उनसे।
विकेट पत्तों की तरह झड़ रहे हैं। जोश में सिगरेट पर सिगरेट फुंक रहीं हैं। चारमीनार, पनामा और पासिंग शो पॉपुलर ब्रांड हैं। नाचना बंद ही नहीं हो रहा। ढोल वाले भी आ गए। इधर आखिरी विकेट गिरा नहीं कि भांगड़ा शुरू। मोहल्ले में पंजाबी बहुतेरे हैं।
दो तरह की ख़ुशी है ऑस्ट्रेलिया हार गया ११२ रन से और इंडिया पहली दफ़ा जीता ऑस्ट्रेलिया से। नाचने वालों में मेरे पिताजी भी हैं। उन्होंने मुझे कंधे पर बैठा रखा है। मैं उनके कंधे पर बैठ कर नाच रहा हूं। अपने होशोहवास में उन्हें इतना ख़ुश पहली दफ़े देखा है मैंने।
मुझे पहली दफ़े अहसास हुआ कि क्रिकेट में कितना एक्ससाइटमेंट है।
उस दिन मदन हलवाई की सारी मिठाई ख़त्म हो गई। सबको मुफ़्त में ही
खिला डाली। पता नहीं कितनों को चाय भी पिला डाली उसने। किसी ने पेड़ पर चढ़ कर माला भी डाल दी रेडियो पर। मैच दोपहर होते-होते ख़त्म हो गया है। पिताजी घर लौटते हैं, साथ में पांच-छह लोग और है। बोतल खुली और महफ़िल जम गयी। चर्चा सिर्फ जेसू पटेल और उमरीगर की है।
शाम पिताजी मुझे साईकिल पर बैठा कर फ़िल्म दिखाने ले गए - ओल्ड मैन एंड दि सी। ओडियन सिनेमाहाल है। पहली दफ़े देखा।
फ़िल्म अंग्रेज़ी में है। लेकिन उस फ़िल्म को समझने के लिए भाषा की ज़रूरत नहीं हुई। उसके विज़ुअल ही पर्याप्त हैं। यों पिताजी बीच-बीच में समझाने के लिए तो हैं ही।
कई साल बाद जब मैंने अपने पिता को कंधा दिया तो मुझे बीते हुए ढेर पल याद आये। उसमें उनका कंधा भी याद आया जिस पर बैठ कर मैं कई बार नाचा हूं। लेकिन भारत की ऑस्ट्रेलिया पर जीत का जश्न ख़ास है।
१६ अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि है। मुझे नास्टैल्जिया हो रहा है। बड़ी शिद्दत से वो पल याद आ रहे हैं।
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१५-१०-२०१५ mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016 

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