Saturday, October 31, 2015

इंदिरा गांधी - अपनों से हारीं।

-वीर विनोद छाबड़ा
३१ साल पहले। आज ही का दिन था। यकीन नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री की भी कोई हत्या कर सकता है और वो भी इंदिरा जी की। ज़बरदस्त सुरक्षा कवच था उनके आस-पास। कोई अपना ही मार सकता था उन्हें।
और सचमुच थोड़ी ही देर में साफ़ हो गया कि अपनों ने ही मारा था उनको। इंदिरा जी को हमेशा अपनों ने ही सताया है। उनको प्रधानमंत्री बनाने में कितने रोड़े डाले गए। गूंगी गुड़िया तक कहा गया। जब यह गूंगी गुड़िया बोलने लगी तो बड़े-बड़े काम कर गयी। मोरारजी देसाई का गुट कोई मौका नहीं चूकता था उन्हें नीचा दिखाने का, चाहे बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो या प्रिवी-पर्सेस का उन्मूलन। वीवी को राष्ट्रपति बनाने में उन्होंने अहम भूमिका अदा की।
  
मुझे याद आता है १९७७ में इंदिरा गांधी चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हुई थीं। इमरजेंसी ले डूबी थी उन्हें। बेटे संजय गांधी और उनके गुट की ज्यादतियां भी उतनी ही ज़िम्मेदार थीं। पूरा मुल्क और यहां की कांग्रेस संगठन भी मान बैठा था कि कांग्रेस तो गई ही, इंदिरा जी भी डूबी समझो। लेकिन इंदिरा जी 'इंडिया' भले नहीं नहीं थीं लेकिन 'इंदिरा' तो थी हीं। जल्दी ही उन्होंने अहसास करा दिया था कि चुनाव तो कांग्रेस हारी है इंदिरा नहीं। संसद से बाहर हुई हैं, राजनीति से नहीं। 
इंदिराजी राजनीति की चतुर और घाघ खिलाड़ी थीं। अमेरिकी घुड़की को धता बता चुकी और १९७१ में पाकिस्तान को युद्ध में मटियामेट करके बांग्लादेश का निर्माण करने की एवज़ में दुर्गा और लौह महिला का ख़िताब उन्हें हासिल था ही। उन्हें अपने विरोधियों की औकात पता थी। अकेली होने के बावजूद डट कर मुक़ाबला करने का माद्दा पहले से भी मज़बूत हो गया। घायल शेरनी थीं वो उस दौर में। मृतप्रायः संगठन में जान फूंकने के लिए मोरारजी की सरकार पर हमला करने का कोई भी मौका नहीं गंवाया।
इंदिराजी चाहतीं थीं कि जनता पार्टी की सरकार उनके विरुद्द कड़ी कार्यवाही करे। वो किसी भी आयोग से नहीं डरीं। ख़ुशी ख़ुशी जेल गई। बल्कि ऐसी परिस्थितियां सृजित की कि उन्हें जेल भेजा जाये।

पुत्र संजय गांधी गुट को नेपथ्य में रखा। आंध्रा में टी अंजैया और कर्नाटक में देवराज उर्स जैसे क्षत्रपों के साथ वो आगे बढ़ी। चिकमंगलूर से उपचुनाव जीतीं। जनता पार्टी ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी। यही तो वो चाहती थीं।
जनता की सहानुभूति उनके साथ दिन प्रति दिन बढ़ रही थी। वो एक अकेली नारी हैं जिसके पीछे पड़ा है सारा जहान। उन्होंने इस छवि को सदैव बनाये रखा।    
इधर जनता पार्टी में अपने अंतर्विरोधों के कारण टूटन शुरू हो चुकी थी। इंदिराजी ने इसका भी भरपूर फायदा उठाया। भरपूर प्रहार किये। उनके लिए चक्रव्यूह रचने वाले खुद ही उसमें फंस गए। 
नतीजा ये हुआ कि सत्ता से हटने के सिर्फ ढाई साल बाद वो ३५३ सीटें जीत कर सत्ता में वापस आ गयीं। 
आज कांग्रेस की स्थिति बहुत ख़राब है। उसे इंदिरा जी जैसी विपक्ष पर हमले करने वाली और कठोर निर्णय लेने वाली नेता की ज़रूरत है।  
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