Monday, October 19, 2015

डिजिटल युग में राम तलाश रहे रिमोट!

-वीर विनोद छाबड़ा
रामलीला के दिन नज़दीक आते ही चिकने और खूबसूरत लौंडों के दिन भी फिर जाते हैं। कोई सीता तो कोई कौशल्या। कौशल्या साथ-साथ मंदोदरी का पार्ट करने में भी ऐतराज न करता। कैकई बनने वाला बखुशी को नकटी
सूर्पनखा बन जाता। बदसूरत काले लौंडे भी डिमांड में रहते। कोई मेघनाथ तो कोई कुंभकर्ण। थूथन निकले गोल चेहरे वाले हनुमान और सुग्रीव या फिर अंगद में फिट। बाकी बचे वानर और राक्षस सेना में घुस जाते। भगवान के नाम पर काम तो फ्री में होता ही।
गुज़रे ज़माने में तो दैवयोग से कभी-कभी बड़े-बड़े प्रहसन हो जाते थे।  
ऐन शो शुरू होने से पहले सीता वाला लड़का गायब हो गया। हड़कंप मच गया। पता चला पेचिश लग गयी।
हे भगवान! सीताहरण कैसे होगा? आस-पास कोई चिकना-चुपड़ा और दुबला-पतला लौंडा न दिखे। गोरे-चिट्टे मेकअप आर्टिस्ट प्यारेलाल पर नज़र पड़ी। बड़ी फुर्सत से विधाता ने तुझको गढ़ा। हाय, तुझे बाई डिफ़ॉल्ट औरत की जगह आदमी बना डाला। मगर दिक्कत उसका मोटा थुलथुल बदन। सीता नहीं कॉमेडी शो वाली भारती है ये तो। लोग हंसेंगे। पत्थर भी फेंके शायद। जूता तो चलेगा ही।
स्टेज पर काम करना कोई खाला जी का घर तो है नहीं। सामने सैकड़ों की भीड़ देख हाथ-पैर कांपते हैं और ज़बान लड़खड़ाती है। मगर प्यारेलाल श्योर। शादी नहीं की, लेकिन अटेंड तो बहुतेरी की हैं। 
फिर भी बहुतेरा समझा दिया - अबे कुंभकरण, रावण तुझे उठा न पइयो। तू ही घिसट जइयो।
परदा उठा। और वही हुआ जिसका था डर। प्यारेलाल की सिट्टी-पिट्टी गुम। एक नंबर लग गयी। रावण ने ऐन वक़्त पर मजबूती से हाथ न पकड़ा होता तो वो स्टेज छोड़कर कबका भाग चुका होता।
अब दृश्य यों हो गया। सीता को रावण पूरे जोर से अपनी ओर खिंचा और उधर सीता ने रावण को। रस्साकशी का इवेंट चल गया। किशनलाल भूल गया वो रावण है और प्यारेलाल भूल गया कि वो सीता है।
पब्लिक गलगलान। कॉमेडी नाईट विद कपिल। वाह वाह क्या सीन है? पैसा वसूल।
सीता जीत गयी। रावण को कंधे पर उठा लिया - बोल रावणया बोल, किधर चलना है?
उस दिन सीताहरण नहीं रावणहरण हुआ।
एक बार रावण नदारद। क्या हुआ? मज़दूर नेता है वो। अभी-अभी पुलिस पकड़ ले गयी है थाने। डंडे मार कर पूछा - बोल हड़ताल करेगा?
आयोजक हाथ-पैर जोड़ छुड़ा लाये। आज रावण वध है। फिर जो मर्ज़ी हो, करना इसके साथ।

इधर तमाम मज़दूर भन्नाये हुए। परदा उठा। पब्लिक से आवाज़ उठी - जेल के फाटक टूटेंगे हमारे नेता छूटेंगेअभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। लेकिन शो चलता रहा। राम जी का तीर ठीक निशाने पर लगा। रावण ढेर। पब्लिक में से कोई चिल्लाया - कालू राम अमर रहे। बाकी पब्लिक ने भी साथ दिया - अमर रहे, अमर रहे।
और सचमुच रावण नहीं मरता है। हर साल फुंकता है। जब तक बुराई है, वो आता रहेगा। उसके पुतले १५ फुट से उठकर १०० तक चले गये हैं। जितनी बड़ी बुराई, उतना बड़ा पुतला।
उसे फूंकने के लिए डिजिटल युग में राम रिमोट तलाश रहे हैं।
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19-10-2015 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016 

1 comment:

  1. रावण प्रतीक है -साम्राज्यवाद -विस्तारवाद का। निश्चय ही दिनों दिन साम्राज्यवाद का विस्तार ही हो रहा है। इसलिए आपका कथन-"और सचमुच रावण नहीं मरता है" सटीक है। साम्राज्यवाद की रक्षा के लिए रावण का न मरना ही तो उनके उद्योग व व्यापार की सफलता का हेतु बंता है। व्यंग्य की आड़ में सच्चाई का का अद्भुत इज़हार है इस पोस्ट में।

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