Wednesday, January 27, 2016

और अब आबिद सुहैल भी चले गए।

- वीर विनोद छाबड़ा 
कल शाम मुंबई में उर्दू के मशहूर अफ़सानानिगार आबिद सुहैल साहब के निधन हो गया। वो उर्दू अफ़सानानिगारी के चंद बाकी सितारों में थे। उनके जाने से यकीनन उर्दू अदब बहुत ग़रीब हो गया है। पिछले साल जुलाई में डॉ विशेषर प्रदीप साहब के इंतक़ाल से उर्दू अदब अभी संभल भी नहीं पाया था।

मैंने आबिद सुहैल साहब को बेहद करीब से देखा है, उस वक़्त से जब मैंने होश संभाला था। वो मेरे दिवंगत पिता रामलाल, मशहूर उर्दू अफ़सानानिगार, के बहुत अज़ीज़ दोस्तों में से थे। हम नक्खास में रहे हों या आलमबाग या चारबाग़ या फिर इंदिरा नगर, हमारे घर में अदबी बहस के लिए नशिस्त सजी हो और आबिद सुहैल साहब की उसमें शिरक़त न हुई हो, ऐसा कभी नहीं हुआ। हमारे परिवार से वो १९५६ से जुड़े थे। तब हम नक्खास के कटरा अबु तराब खां में रहा करते थे।
मुझे याद है कि बरसों तक उन्होंने उर्दू मासिक 'किताब' का प्रकाशन-संपादन किया था। क़ौमी आवाज़ उर्दू डेली में वो बरसों रहे। फिर नेशनल हेराल्ड में न्यूज़ एडिटर हुए। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में बरसों उन्होंने 'फ्रॉम उर्दू वर्ल्ड' कॉलम लिखा। ट्रेड यूनियन से उनका रिश्ता भी बहुत क़रीबी था। उर्दू-अंग्रेज़ी के अलावा हिंदी की दुनिया से भी उनका ख़ासा वास्ता रहा।

प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट से भी आबिद सुहैल साहब का बहुत गहरा और लंबा एसोसिएशन रहा।
पिछले दो बरसों में साहित्यिक गोष्ठियों में मेरी उनसे कई मुलाकातें हुईं। आख़िरी मुलाक़ात २२ सितंबर २०१५ को मशहूर हिंदी लेखक और ट्रेड यूनियन नेता दिवंगत कामतानाथ जी के ८२वें जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में हुई थी।
उस दिन मैंने उनसे कहा कि मुझे आपसे आपके इल्मो-अदब के बारे में, आपके और मेरे पिता के मध्य दोस्ती के बारे में और अदब-निज़ी ज़िंदगी से जुड़े कुछ मज़ेदार वाक्यात के बारे में मुझे जानना है। इस सिलसिले में मैं आपसे जल्दी मिलूंगा। 
उन्होंने कहा था कि तुमसे ज्यादा जल्दी तो मुझे है। चौरासी क्रॉस कर चुका हूं। वक्त थोड़ा है, जल्दी आना।

जिस भी प्रोग्राम में वो मुझे दिखते थे, उनकी कोई न कोई तस्वीर मेरे मोबाईल फ़ोन कैमरे में क़ैद हो जाती थी। लेकिन दुर्भाग्य से उस दिन मेरा मोबाईल फोन घर पर छूट गया था। मैं उनकी तस्वीर नहीं ले सका। मैंने उनसे कहा था - जब आपके घर आऊंगा तो ढेर तस्वीरें उतार लूंगा।
Prof RameshDixit,VirendraYadav,
NadeemHasnain&AbidSuhail
लेकिन सुहैल साहब ने सही फ़रमाया था वक़्त कम है, जल्दी आना। नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें उठा लिया। और मैं सोचता ही रह गया कि आज नहीं कल ज़रूर जाऊंगा। अपनी सुस्ती पर मुझे ताउम्र मुझे अफ़सोस रहेगा।
आबिद सुहैल साहब का इंतक़ाल मेरे परिवार की एक निज़ी क्षति है। मेरे दिवंगत पिता के एक और क़रीबी का चला जाना है। उनको छूने से मुझे अपने पिता के होने का अहसास होता था।
नोट - तस्वीरें मेरे मोबाईल कैमरे से।
---
27-01-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

No comments:

Post a Comment