Tuesday, January 5, 2016

वो सुबह कभी तो आयेगी।

- वीर विनोद छाबड़ा
किसी मासूम को जब दुनिया से विदा होते देखता हूं तो बेहद तक़लीफ़ होती है। चाहे वो हादसा रहा हो या अस्पताल में बीमारी से लड़ते मिली मौत। कई दिन तक असहज रहता हूं।
सोचता रहता हूं - क्या देखा था इस मासूम ने, न दुःख और न सुख। क्यों जाने दिया गया इसे? क्या ग़लती थी इसकी? क्या गुज़री होगी उसके माता-पिता पर? कौन ज़िम्मेदार है? प्रशासन या माता-पिता या फिर डॉक्टर?
सबसे बड़ी तक़लीफ़ तो होती है, भौंडी लीपा-पोती से।
अक्सर देखता हूं कहर गरीबों की बस्तियों पर ही टूटता है।
पहला सवाल है, अगर आपकी ज़मीन है तो उनको वहां बसने ही क्यों दिया? उजाड़ने से पहले नोटिस क्यों नहीं दिया? अगर दिया भी है तो नोटिस भर देना पर्याप्त नहीं होता। उनको रहने का विकल्प दीजिये।
ये बन्दे कीड़े-मकौड़े या जानवर नहीं हैं, जो इधर-उधर ठेल दिए गए। यह ज़िंदा लोग हैं जो समाज में कहीं न कहीं और कोई न कोई भूमिका निभा रहे हैं। सबकी उपयोगिता है। कोई मज़दूरी कर रहा है तो कोई सफ़ाई और कोई चौका-बर्तन। होटलों और ऑटो गैराज पर भी काम करते हैं ये लोग। कूड़ा बटोरते हैं और कुछ उस कूड़े में से भी काम की चीजें बीनते हैं।
मैं आज की बात नहीं कर रहा हूं। बरसों से ऐसा ही होता आया है।
लेकिन बकौल साहिर लुध्यानवी मैं उम्मीद करता हूं कि -

वो सुबह कभी तो आयेगी, वो सुबह कभी तो आयेगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुःख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अंबर झूम के नाचेगा, जब धरती नग्में गायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी


जिस सुबह की खातिर जुग जुग से, हम सब मर मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, एक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

माना के अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में ना तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी।
---
05-01-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016




No comments:

Post a Comment