Thursday, January 7, 2016

बंदे भी बनेंगे सम-विषम।

- वीर विनोद छाबड़ा
मीडिया के लिए दिल्ली ही सब कुछ है और सीएम केजरीवाल रोल मॉडल, नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों ही।

लेटेस्ट मुद्दा सम-विषम बना हुआ है। कोई बता रहा है फेल, तो कोई पास। सबकी निजी समस्याएं हैं, उसी हिसाब से इस मुद्दे को तौला जा रहा है।


दिल्ली में हमारे एक नौजवान रिश्तेदार हैं। उसकी एक ही कार है, सम नंबर की। पति-पत्नी दोनों सरकारी नौकर।
अब तक ऑफिस के टाईम से दो घंटा पहले निकलते थे। सब ठीक ही चल रहा था। लेकिन अब सब गड़बड़ हो गया है। रिश्तेदार कहता है कि पड़ोसी से पटरी नहीं खाती। विषम डे पर उससे लिफ़्ट कैसे मांगे?

हमने कहा - शेयर कर लो। एक दिन तुम और एक दिन वो?

रिश्तेदार बोले - नहीं चाचा, वो आदमी ठीक नहीं है। कार सामने नहीं पीछे देख कर चलाता है। मैं नहीं चाहता कि वो पीछे बैठी मेरी वोटी को देखे।

लेकिन असली बात हम जानते हैं। दरअसल, हमारे रिश्तेदार पति-पत्नी में इतना प्यार है कि कार में लड़ते-झगड़ते जाते हैं और आते भी। इसी बहाने टाईम भी पास होता है। अब पड़ोसी की कार में कैसे लड़ेंगे? एक और कार लेने की औकात नहीं है।

आज उसने अपना दर्द उगल दिया - चाचा, अभी पहली कार की ईएमआई ख़त्म नहीं हुई। ससुराल वाले भी बड़े बेग़ैरत किस्म के हैं। कार के ज़माने में स्कूटी दे दी दहेज़ में। रंग भी ऐसा बेकार कि नई होते हुए भी पुरानी दिखती है। कलर का एस्थेटिक सेंस ही नहीं। साले लोगों को तो फुरसत ही नहीं। साले, अपनी बलां हमें ट्रांसफर कर किनारे हो लिए। कभी मोबाईल तक करके नहीं पूछते कि हमारी फूलों जैसी इकलौती बहन को कैसे रखा हुआ है? घर जाओ तो साले चाय तक को नहीं पूछते। एक गिलास नलके वाला पानी और कुत्तों के खाने वाले बिस्कुट...

बात कहीं की कहीं जा रही थी। हमने बात काट दी - बेटा, यह तो घर-घर की कहानी है। तूने सलूशन क्या निकाला?
 

रिश्तेदार बोला - चाचाजी, सलूशन तो एक ही है। सोचता हूं एक विषम नंबर की प्लेट मैं भी बनवा ही लूं। मगर प्रॉब्लम अभी और भी आनी है। यह जो केजरीवाल है न, मैं इसकी नस नस से वाकिफ़ हूं। इसे मोदी जी से ज्यादा ब्रेन-वेव आती हैं। देखना, यह आदमी इंसानों को भी मशीन बना देगा एक दिन। सबको सम और विषम में बांट देगा। प्रयोग करेगा सरकारी बाबू पर। जिसका जन्म पहली को हुआ है वो विषम तिथि ऑफिस जाएगा और दो वाला सम तिथि को। एक दिन छोड़ कर रेस्ट। यह करके मानेगा, बड़ा ज़िद्दी आदमी है। यों भी उसकी निगाह में सरकारी बाबू काम ही कहां करता है? सब के सब ठुल्ले हैं।

हमने कहा - अच्छा ही है। तीन दिन का सप्ताह। बाकी रेस्ट।

रिश्तदार बोला - सारी छुट्टियां खत्म कर देगा। इतवार को भी दफ़्तर आओ। ऊपरली कमाई का भी बड़ा नुकसान होगा?

हमने पूछा - यह ऊपरली कमाई का मतलब हम नहीं समझे।

रिश्तेदार बोला - छड्डो चाचाजी जी, तुस्सी नहीं समझोगे। रखता हूं।

यह कर रिश्तेदार ने मोबाईल काट दिया।
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