Monday, July 11, 2016

सात जन्मों का बंधन

-वीर विनोद छाबड़ा
श्रीबाबू सुबह-सुबह आ धमके। गुस्से से फड़फड़ा रहे थे। सरकार यानी घरैतिन का हमला हुआ है। भीतर से गहरे घायल हैं। बंदे ने समझाने की कोशिश की। भगवान का दिया सब है। मकान-दुकान, फाईव फिगर आमदनी। दो लायक बच्चे, गुणसुंदरी पत्नी....
बस, बस...बंदे की बात काटते हुए श्रीबाबू दहाड़ उठे। यही तो है परेशानी। निजाम बदला। छोटे-बड़े सबको 'लिफ़्ट' किया। लेकिन हमारी सरकार नहीं बदली। बड़ी हसरत से वोट किये थे कि निज़ाम बदलेगा, हमारी हुकूमत होगी। हमारी मौजूदा ताकतों में इज़ाफा होगा। सरकार को बर्खास्त करने की ताकत भी मिलेगी। मगर अफ़सोस कि सब जस का तस। सरकार की मर्ज़ी का खाना, उठना और बैठना। आने-जाने में पांच मिनट इधर-उधर हुए नहीं कि सवालों के गोले दगने शुरू। कहां ठहर गये थे? किसके घर चले गये थे? कौन थी वो जिसे स्कूटर पर लिफ़्ट देकर घर तक छोड़ा? सफाई देने का मौका तक नहीं दिया और सजा सुना दी। चौका-बर्तन करो। अब कल रात का ही का मुद्दा लीजिये। एसी बंद कर दिया। जोड़ों में दर्द होगा। पंखा भी मोहन जोदड़ों के ज़माने का। खड़-खड़। ऊपर से वोल्टेज डाउन। क़सम से नर्क समझो। सुबह मौसम ठंडा हो गया। नींद गहरी आ गयी। देर तक क्या सो लिये कि सरकार ने बाल्टी भर पानी झोंक दिया। पचास के होने को आये, अभी तक स्विटज़रलैंड के सपने देखते हो। शर्म करो।
अरे भाई, भला सपने भी कभी पूछ कर आये क्या? और स्विटज़रलैंड चले भी गये तो क्या गुनाह किया। वहां न बैंक एकाउंट है और न कालाधन। मगर सरकार है कि मानती नहीं। कमाऊ डिपार्टमेंट में काम करते हो। सुना है वहां सभी रिश्वत लेते हैं। तुम भी ज़रूर लेते होंगे। तभी तो स्विटज़रलैंड के सपने आते हैं।
सरकार ने ने आज नया फरमान जारी किया है कि इधर से नहीं उधर से जाया करो। इधर महिलायें हर वक़्त पंचायत लगाये खड़ी होती हैं। अरे भाई, इसमें हमारा क्या कसूर? महिलाओं को समझाओ न।
श्रीबाबू के सब्र का बांध टूट चला। जिंदा कौमें इंतज़ार नहीं कर सकती। आज ही प्रधानमंत्री जी को पत्नी पीड़ित संघ की ओर से इस बावत चिठ्ठी ई-मेल करेंगे। मांग पूरी नहीं हुई तो आमरण अनशन शुरू।
इधर रसोई से बर्तन गिरा। मेमसाब की चेतावनी है यह। दफ्तर नहीं जाना क्या? मौके की नज़ाकत को भांपते हुए बंदे ने श्रीबाबू से अनुरोध किया कि बंधु इस पुराण पर कृपया यहीं क्रमशः लगायें।

श्रीबाबू बड़ी कसमसाहट से शाम को गतांक से आगे का वृतांत सुनाने का वादा लेकर टले। उनके जाते ही बंदा तुरंत स्नान-ध्यान कर ऑफिस के लिए निकला तो श्रीबाबू की सरकार दिख गईं। गोरे-गोरे मुखड़े पे काला-काला चश्मा। भीगे बिल्ले श्रीबाबू ने मुंह छुपाते हुए कार का पिछला दरवाजा खोला। सरकार ने श्रीबाबू को कर्ज़ खाये आदमी सामान घूरा और धम्म से बैठ गयीं। मोटे दहेज की एवज़ में बिके श्रीबाबू ने बाअदब हौले से दरवाजा बंद किया और ड्राईविंग सीट पर बैठ कर सरकार के अगले हुक्म का इंतज़ार करने लगे। कहां चलें?

बंदा हौले से मुस्कुराया। सूबे और मुल्क के निज़ाम भले ही कितनी बार बदलें, पत्नी पीड़ितों के दिन न बदले हैं और बदलेंगे। तेरी कहानी यही रहेगी। फिलहाल तो ये सात जन्मों का बंधन है प्यारे। 
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Published in Prabhat Khabar dated 11 July 2016
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