Monday, July 4, 2016

शांतिपाठ और वेतन आयोग

- वीर विनोद छाबड़ा
दुलारे बाबू की पत्नी शांति गुज़र गई। दहाड़े मार मार रोए। हाय मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई। शव यात्रा में बड़ी संख्या में शामिल हुओं को देख कर दुलारे बाबू बहुत गदगद थे ही। कई बार पीछे मुड़ कर उन्होंने तस्वीरें लीं और आखिर में मृत पत्नी के साथ सेल्फी भी ली थी। और फिर मृतका थीं भी बहुत सोशल। हर आते जाते को 'भाई साहब' नमस्ते करना नहीं भूलती थीं। वो बात अलबत्ता दूसरी थी कि मोहल्ले के पचास फी सदी विवाद उनकी चुगलियों के कारण थे।
शांतिपाठ में बड़ा शामियाना और ढेर कुर्सियां लगीं, ताकि गठिया और अर्थराइटिस आदि नाना प्रकार की व्याधियों से पीड़ित सीनियर सिटीज़न को बैठने में दिक्कत न हो। फिर शांतिपाठ तो सीनियर के लिए टाईम पास करने बेहतरीन मौका है। कई सीनियर तो अखबार में श्रद्धांजलि का विज्ञापन पहुंच जाते हैं। अफसोस के लिए जान-पहचान की क्या ज़रूरत?
अब तो सेवेंथ पे कमीशन तो आ गया है। हमें तो कोई फायदा नहीं हुआ। देखना इसी बहाने महंगाई बढ़ जाएगी। अचानक श्रीवास्तव जी को मृतका की याद आई। बड़ी नेक थी जी। जैसे ही खबर मिली नहीं कि कोई बीमार-ठिमार है, दौड़ी चली आईं। तन-मन से सेवा में लग गईं। वर्मा जी को याद आया कि वो पिछले साल सीढ़ियों से गिरे थे। शांतिजी उन्हें अस्पताल देखने आईं थीं।
तभी जोशी जी की जिज्ञासा जगी कि शांति जी  हुआ क्या था? दुलारे जी बताया कि कुछ नहीं हुआ था। रात को अच्छी भली सोई थीं। सुबह सीने में दर्द उठा। एम्बुलैंस बुलाई। अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर ने 'नो मोर' बता दिया। ऐसे प्रश्न का उत्तर वो पिछले दो दिन में हज़ार बार दे चुके थे। आंख में आंसू भी सूख चुके थे। ज़बरदस्ती रोने का प्रयास भी बेकार गया। फिर भी पास बैठे हुए ने उन्हें तसल्ली दी। उनकी चाची भी ऐसे ही गुज़री थीं। बड़ी नेक आत्माएं होती हैं। ज़रूर पुण्य के काम किए होंगे। शर्मा जी के साले साहब तो जी बस बनारस के बहाने स्वर्ग के सफर के लिए निकल गए। कनौजिया जी के चचिया ससुर बेचारे इंसुलिन लगाना भूल गए थे और.... इसके आगे का वृतांत उन्होंने एक्शन में बताया। गर्दन झटके से टेढ़ी की और दोनों हाथ ऊपर की ओर उठा दिए।

यह सिलसिला चलता रहता अगर बंदे ने दिवंगता के हाथ के बने भोजन की प्रशंसा शुरू न की होती। उद्देश्य था कि जिसके लिए आए हो उसी पर फोकस रहो। लेकिन बंदे की बात पर चावला जी ने काट लगाई। भोजन तो उनकी अमृतसर वाली चाची भी बहुत अच्छा बनाती थीं। पराठे बनाते हुए चली गई। सिद्दीकी साहब ने एम्बुलैंस सेवाओं को कोसना शुरू कर दिया। पेट्रोल ही नहीं भरा कर रखते। चतुर्वेदीजी ने प्रतिवाद किया। अरे भाई सुबह पांच बजे कौन माई का लाल दो मिनट के नोटिस पर आपके घर पहुंच सकता है? तभी किसी को एयर टैक्सी एम्बुलैंस की याद आई। हमारे मामा
शांति पाठ खत्म होने का ऐलान हुआ। चाय, बिस्कुट, मट्ठियां और दिवंगता की खास पसंद पेस्ट्री मेज़ों पर सजी थीं। मिश्रा जी ने प्लेट भरी और बोले - हां, तो फिर क्या है सेवेंथ पे कमीशन में? सारे शोकाकुल सीनियर सिटिज़न कान लगा कर सुनने लगे।
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Published in Prabhat Khabar dated 04 July 2016
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1 comment:

  1. very nice post lekin naam chun chun kar laate ho aapke pass kitna dimag hai really aapko salam

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