Thursday, July 7, 2016

एक ईद मुबारक़ वो भी थी।

- वीर विनोद छाबड़ा 
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कई साल पहले की बात है। हमारे ऑफिस में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हुआ करते थे। हमें नाम याद नहीं आ रहा है। बड़े मियां कहते थे लोग। चेहरे पर अनगिनित झुर्रियां थीं, जो उनके संघर्ष का इतिहास दर्शाती थीं। लोग उन्हें आप कह कर संबोधित करते थे। मज़ाल है कि कोई तुम कह दे। पूरे रोज़े रखते थे वो। याद है, वो मई का महीना था। शिद्दत की झुलसा देने वाली गर्मी थी। हमारा ऑफिस एयरकंडीशन था। लेकिन वो बाहर बरामदे में बैठते थे। कहते थे अगर ठंडक में ही बैठना है तो फिर रोज़े ही कैसे? हज़ारों-लाखों मेहनतकश धूप में मशक्क्त करते हुए पसीना बहा रहे हैं।
नमाज़ वो ऑफिस में ही पढ़ लेते थे। अल्लाह सब जगह है।
हम लोग उन्हें उन दिनों काम कम कराया करते थे। लेकिन बड़े मियां कहते थे - नहीं आराम हराम है। काम नहीं करूंगा तो खुदा बख्शेगा नहीं।
रोज़े के दिनों में मुस्लिम भाइयों को आधा घंटा पहले ही छुट्टी हो जाती थी। लेकिन वो नहीं जाते थे। हमें वो नज़ारा आज भी याद है। उस दिन ऑफिस में बहुत काम था। शासन को किसी मुद्दे पर रिपोर्ट भेजनी थी। बड़े मियां भी काम में हाथ बटा रहे थे, कोई कागज़ इधर रखना है तो कोई उधर। हम लोगों ने उन्हें घर जाने को कहा। उन्होंने मना कर दिया। काम पहले। यही इबादत है।
बड़े मियां ही नहीं, हम सब भी खिड़की पर नज़र रखे थे कि कब ईद का चांद नज़र आता है।
और जैसे ही ईद का चांद नज़र आया बड़े मियां की आंख से आंसू बह निकले जो उनके चेहरे की झुर्रियों में समा गए। उनमें दमक आ गई। अब ऐसा मौका फिर साल भर बाद अगली ईद पर आएगा। पता नहीं ज़िंदगी भी रहती है या नहीं। महीने भर की इबादत खुदा ने कबूल फ़रमाई। उनके आंसू थम नहीं रहे थे।

हम सबने उन्हें ईद मुबारक कहा। बामुश्किल से उनको घर भेजा। लेकिन आधे घंटे बाद वो फिर वापस आ गए। इमरतीयों से भरा डिब्बा था उनके हाथ में।
अगले दिन हम सब उनके घर गए मुबारक़ देने। बहुत भावुक हो गए वो। अड़ोस-पड़ोस से उन्हें कुर्सियां मंगानी पड़ी हमें बैठाने के लिए। 
उनका कहना सही साबित हुआ। वो अगली ईद से पहले ही इंतकाल फरमा गए।
हमें हर ईद पर बड़ी शिद्दत से याद आती है उनकी। हमें उम्मीद है कि वो ज़रूर जन्नत में जगह पाएंगे।

बहरहाल, आप सबको ईद मुबारक हो। फेसबुक की आभासी दुनिया का माहौल हो या ज़मीनी सतह का, हमें लग रहा है कि यह किसी एक मज़हब की ईद नहीं है, सारे धर्मों की ईद है। काश हर दिन किसी न किसी धर्म का कोई न कोई त्यौहार हो। इसी बहाने मुल्क में खुशी और शांति तो रहती है। 
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