Sunday, July 17, 2016

फ़िक्र

- वीर विनोद छाबड़ा
पिताजी की मृत्यु हो गई। मां अकेली रह गई। बेटे और बहु से पटरी नहीं खाई। उसने अपना खाना-पीना अलग करने का इरादा किया। लेकिन बेटे को खाने-पीने, कपड़े-लत्ते और दवा का खर्च देना होगा।

बेटा तैयार हो गया। रोज़ रोज़ की खिटपिट तो नहीं होगी। कुछ महीने सब ठीक चला। हालांकि बेटा संपन्न था, लेकिन फिर भी मां पर खर्च करना उसे फालतू का बोझ लगता था। फ्लैट और कार की ईएमआई भी अच्छी-खासी थी। और यह भी तो पता नहीं था कि मां पर खर्च का बोझ कब तक उठाना पड़ेगा। पत्नी से राय-मश्विरा करके उसने मां को दान-दक्षिणा पर चलने वाले एक वृद्धाश्रम में भर्ती करा दिया।
कई महीने गुज़र गए। बेटा यदा-कदा फ़ोन पर मां का हाल-चाल लेता रहा।
एक दिन बेटे आश्रम से फ़ोन आया कि तुम्हारी मां सख्त बीमार है। फ़ौरन मिलना चाहती है। बेटा भागा हुआ वृद्धाश्रम पहुंचा।
मां ने बेटे के सर पर हाथ फेरा। अब चला-चली की बेला है। मुझे विश्वास है कि मेरी कुछ अंतिम इच्छाएं तुम ज़रूर पूर्ण कर दोगे।
मां को अंतिम बेला में देख कर बेटा भावुक हो गया। उसने सर हिलाया। ज़रूर, पूरी करूंगा। तू बोल तो सही।
मां की आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। यहां गर्मी बहुत है। तीन-चार एसी लगवा दे। कई बार खाना बासी हो जाता है। तीन-चार फ्रिज हो जाते तो ठीक होगा। दूध और फ्रूट भी नहीं सड़ेंगे। कपडे धोने में बहुत दिक्कत होती है। एक-दो वाशिंग मशीन भी लगवा दे। मनोरंजन के लिए तो सेट टीवी भी दीवारों पर टंगवा दे। बिजली बार-बार जाती है। एक बढ़िया सा जनरेटर भी हो जाए।

बेटे को हैरानी हुई। मां तेरे जाने में अब कुछ ही घंटे शेष हैं। क्या करेगी इन सब का?
मां ने बेटे का मुंह हाथों में भर लिया। मुझे मालूम है। मैं तो कल तक चली ही जाऊंगी। मैंने तो अभाव में अपना गुज़ारा कर लिया। लेकिन अब मैं भविष्य की बात कर रही हूं।
बेटे को झटका लगा। कैसा भविष्य?
मां ने बेटे का माथा चूमा। मुझे तो तेरी फ़िक्र है रे। कल जब तू बूढ़ा हो जायेगा। तब तेरा बेटा तुझे यहां छोड़ने आयेगा। मुझे मालूम है तू फ्रिज-एसी जैसी सुविधाओं बिना तू रह नहीं सकता।
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नोट - यह कथा आपने ज़रूर पढ़ी होगी। हो सकता है कई दफ़े पढ़ी हो। एक बार फिर पढ़ लीजिए और दो-चार को सुना भी दीजिये।
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17-07-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016

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