Thursday, July 21, 2016

शादी की साल गिरह।

- वीर विनोद छाबड़ा
शादी की सालगिरह मनाने के भी खूब फायदे हैं। पहले लोग पच्चीसवीं मनाते थे।
कुछ खुशकिस्मत पचासवीं तक पहुंच जाते थे। भई, असली तो हम इसी को मानते हैं। पचास सावन और इतने ही पतझड़ देखे। कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं होती, चेहरे की अनगिनित गहरी झुर्रियां ही गुज़ारा हुआ इतिहास बयान कर देती है।
कितनी पीढ़ा झेली है और कितनी खुशियां। और अगर तब तक होशो-हवास दुरुस्त रहें, अर्थात सुनाई, दिखाई और सुझाई दे तो कहना ही क्या? ऐसे ही एक बुज़ुर्ग हमें नाराज़ मिले। जो देखो फूल-पत्ती लिए चला आ रहा है।
हमने कहा क्या - करेंगे आईटम लेकर? सब पोते-पोतियां मिल-बांट लेंगे।
इधर हम देख रहे हैं कि कुछ लोग हर पांच साल पर जश्न मना रहे हैं। पांचवीं, दसवीं, पंद्रहवीं और बीसवीं....भी मना रहे हैं। फैशन चल निकला है। कोई खास घाटे का सौदा भी नहीं है। जितना खर्चा किया उसका आधा तो गिफ्ट से मेकअप हो जाता है। बॉस और उनकी मेमसाब की भी इसी बहाने दावत हो जाती है। भूले हुए दोस्त-यार और नाते-रिश्तेदार मिलते हैं।
सबसे ज्यादा एडवांटेज पत्नी का रहता है। ससुराल पर तो कब्ज़ा हो ही चुका होता है, मायके वालों पर भी धौंस जम जाती है। देखा, कितना रुतबा है समाज में हमारे उनका। बहनें तो जल-भून कर राख हो ही जाती हैं।
लेकिन हमें वो लोग अच्छे लगते हैं, जो हर साल सालगिरह मनाते हैं। घूमते हैं, सिनेमा देखते हैं और किसी रेस्तरां में डिनर करते हैं।

और वो लोग तो बहुत अच्छे होते हैं जो जयंती मनाने के लिए कुछ दोस्तों को हाई-टी या छोटे-मोटे डिनर पर बुलाते हैं। कहते हैं, अकेले में खुशियां मनाईं, तो किसने देखा? ख़ुशी तो बांटने से बढ़ती है। और हां यार, नो गिफ़्ट प्लीज़। ईश्वर का दिया सब कुछ है।
और तब तो बहुत ही अच्छा लगता है जब डिनर के बाद चलते चलते छोटा सा मोमेंटो पकड़ा देते हैं - आप आये बहुत ख़ुशी हुई।
यों खुशियां शेयर करने की एक और मुफ़ीद जगह फेस है। केक काटो और सेल्फ़ी चेंप दो। न हींग लगे न फ़िटकरी।
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21-07-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226010

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