Friday, September 30, 2016

दरारें!

-वीर विनोद छाबड़ा
कल्लू मेरा रिश्तेदार नहीं है और न ही दोस्त। वो एक दुकानदार है। बल्कि दो भाई और एक दुकान। दोनों को ही लोग कल्लू कहते हैं। दो जिस्म एक जान।
परचून का काम है। हम अपनी रसोई का और दूसरे कई घरेलू उपयोग के आइटम उनसे खरीदते हैं।

बिना कहे वो एमआरपी से कम कीमत पर सामान भी देते हैं। कभी पैसे कम पड़ गए तो बाद में देने पर भी उन्हें कोई ऐतराज नहीं होता। तक़ादा भी नही करते। शायद उन्हें याद भी नही रहता। हमीं  याद दिलाते हैं।
सामान ख़राब होने पर या अनुपयोगी होने पर वो फ़ौरन वापस भी कर लेते हैं। बोलते वक़्त उनका वाल्यूम इतना धीमे होता है कि उनके लिप्स मूवमेंट से हम अंदाज़ा लगाते हैं कि वो क्या कह रहा है।
मैं उसके बारे में इतना क्यों बता रहा हूं? दरअसल आज मैंने देखा कि उनकी दुकान के बीचों-बीच दीवार खड़ी थी। यह देख कर मुझे बेहद तकलीफ़ हुई। दो भाई अलग हो गए।
कल तक गलबहियां चल रही थीं। अच्छा भला कमा रहे थे। कमाई पर बराबर बराबर का हक़ था। जाने रातों-रात क्या हुआ कि आज दरार पड़ गयी। पूछने की हिम्मत नहीं हुई।
इसलिए कि कारण में नया कुछ नहीं होता। यह दरार भाइयों के दिलों में नहीं स्वयं नहींउठती, बल्कि पैदा की जाती है। कारण बाहरी तत्व या पत्नियां या बड़े हो गए बच्चे। उनकी महत्वकांक्षाएं और उमंगें। घर ढह जाते हैं या ऊंची-ऊंची दीवारें उठ जाती हैं। यह आग व्यापार पर पहुंचती है। व्यापर भी अक्सर तहस-नहस हो जाते हैं। कालांतर में दुःख-सुख में एक साथ दीखते ज़रूर हैं, मगर दिल नहीं मिल पाते। दरार को कितना ही भरो।
लेकिन निशां रह जाता है। ऊपर भले नहीं दिखे, अंदर तो रह ही जाता है। मैंने कितने ही घर उजड़ते देखे हैं। आपने भी देखे होंगे। सबकी एक ही कहानी है। लेकिन मेरे सामने यक्ष प्रश्न यह कि आइंदा से मैं सामान किस कल्लू से लूंगा? छोटे वाले से या बड़े वाले से।

ऐसी ही कष्टप्रद स्तिथि तब उत्पन्न होती है जब मैं उस मकान में जाता हूं जहां कल तक सब मिल कर भोजन बनाते और खाते थे, आज सब अलग अलग चूल्हा जला रहे हैं। 
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01-10-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

2 comments:

  1. इसी से मनुष्य सारी दुनिया में पहुँच गया है।

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  2. खूब लिखा हैं आपने, एक बार किसी अखबार में भ्रस्ताचार के बारे में लिखा था... कोई व्यक्ति भ्रस्ताचार इसलिए नहीं करता क्यूंकि वह उसकी इच्छा हैं, वह भ्रस्ताचार को इसलिए अपनाता हैं क्यूंकि उसका परिवार उसे मजबूर करता हैं... परिवार यह क्यूँ नहीं समझता कि मिलकर चलने में ही सबकी भलाई हैं...

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