Saturday, October 15, 2016

लैब असिस्टैंट से हीरो बने थे दादामुनि

-वीर विनोद छाबड़ा
अशोक कुमार यानी दादामुनि का अर्थ है, हीरे जैसा बड़ा भाई। वो रील में ही नहीं रीयल लाईफ़ में भी बड़े भाई थे, सहृदय और मददगार। दिलीप कुमार उन्हें भाईसाहब कहा करते थे। अपनी आत्मकथा में उन्होंने ज़िक्र किया है अभिनय का पहला स्कूल अशोक कुमार थे। यों उनका असली नाम है, कुमुदलाल कुजींलाल गांगुली। १९३६ की बात है। स्टूडियो का युग था वो। उन दिनों बॉम्बे टॉकीज़ की फिल्म बन रही थी - जीवन नैया। किसी विवाद के चलते फिल्म का हीरो भाग गया। बांबे टाकीज़ की मालकिन और नायिका देविका रानी बौखला गयीं। उनके पति डायरेक्टर हिमांशु राय की नज़र लैब असिस्टेंट पर पड़ी, खूबसूरत और मुस्कुराता चेहरा। देविका रानी को भी वो जंच गये। इस तरह वो हीरो बन गये। उनका नाम भी बदल गया - कुमुदलाल से अशोक कुमार।
अगली फिल्म थी - अछूत  कन्या। उच्चजाति के युवक और अनुसूचित जाति की युवती की प्रेम कहानी। तत्कालीन समाज की दृष्टि से टोटल अनर्थ। स्वपन्न देखना भी गुनाह। उस ज़माने में देविका रानी नंबर वन होती थीं। हीरो महज़ खानापूर्ति के लिये होते थे। मगर 'अछूत कन्या' में पब्लिक ने देविका रानी से ज्यादा अशोक कुमार को पसंद किया। पहली बार हुआ कि कोई एक्टर थियेटर के प्रभाव से बाहर आकर सहज अभिनय कर रहा था। उस ज़माने के रिवाज के मुताबिक हीरो को अपना गाना खुद गाना पड़ता था। अशोक कुमार का ये गाना बहुत मशहूर हुआ था - मैं बन की चिड़िया, बन बन डोलूं रे.....

जब अशोक कुमार हिट हीरो थे तो मधुबाला ने बॉम्बे टॉकीज़ में कदम रखा था। तब वो महज़ आठ साल की थी। अशोक कुमार ने गोद में उठा कर प्यार किया। लेकिन कुछ साल बाद यही मधु महल और हावड़ा ब्रिज में उनकी हीरोइन होगी और उनके छोटे भाई किशोर कुमार की पत्नी। 
अशोक कुमार ने सबसे ज्यादा फिल्में मीना कुमारी के साथ कीं - परिणीता, बादबान, बंदिश, शतरंज, एक ही रास्ता, सवेरा, आरती, चित्रलेखा, बेनज़ीर, भीगी रात, बहु बेगम, जवाब, पाकीज़ा आदि। वो मीना के बहुत अच्छे हमदर्दों में थे। लीवर की बीमारी और गहरे अवसाद से ग्रस्त मीना को उन्होंने हमेशा हंसते हुए देखना चाहा। वो अच्छे होमियोपैथ भी थे। उनका दावा था कि उन्होंने कई असाध्य रोग ठीक किये हैं। वो मीना को ठीक कर देंगे। उन्हें दवाईयां दीं - यह दवाएं तुम पर ज़रूर असर करेंगी, बशर्ते तुम शराब छोड़ दो और खुद में जीने की ललक पैदा करो...लेकिन अफ़सोस कि मीना दोनों ही काम नहीं कर सकी।
सन १९४३ में किस्मत ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई थी। दूर हटो ये दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है...इसी फिल्म का गाना था। अंग्रेजी हुकूमत ने इसे बैन भी किया था। फिल्म इतिहास की यह पहली एंटी हीरो फ़िल्म मानी जाती है। कलकत्ते में इसने लगातार तीन साल तक चलने का रिकॉर्ड बनाया।

चलती का नाम गाड़ी एक सुपर हिट कॉमेडी फिल्म थी, फ्रॉम ए तो जेड। इसमें उनके अलावा उनके दो छोटे भाई किशोर कुमार और अनूप कुमार भी थे। हिंदी फिल्म के इतिहास में मील का पत्थर है यह। उनका गहरी सांस लेकर संवाद बोलने का अंदाज़ निराला था। इसका कारण यह था कि एक फ़िल्म में उन्हें मरने की एक्टिंग करनी थी। लेकिन इफ़ेक्ट नहीं आ रहा था। तब उन्होंने ढेर ठंडा पानी पिया। बढ़िया इफ़ेक्ट आया। लेकिन एक ही बार में ढेर ठंडा पानी के कारण  फेफड़ों पर असर आ गया और यह जीवन भर रहा।
मेहरबान (१९ ६७) में उन्हें बेहद खराब आर्थिक परिस्थितियों के कारण सिगरेट छोड़नी पड़ी। यह दृश्य इतना प्रभावी था कि कई लोगों ने इससे प्रभावित होकर सिगरेट ही छोड़ दी। पचास के दशक में ही उन्होंने लीड रोल करने बंद कर दिए थे। लेकिन इसके बावज़ूद फिल्म की नामावली में उनका नाम सबसे पहले आता रहा, चाहे हीरो दिलीप कुमार हों या देवानंद। देवानंद के साथ 'ज्वेल थीफ़' में विलेन थे। लेकिन वो न चीखे और न चिल्लाये। उन्होंने इसे अंडरप्ले किया और सारी वाहवाही चुरा कर ले गए।

१९८७ की १३ अक्टूबर को वो अपना ७६वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहे थे कि छोटे भाई किशोर कुमार की मृत्यु का दुखद समाचार आया। तब से उन्होंने अपना जन्मदिन मनाना ही बंद कर दिया। उनका विवाह निर्माता-निर्देशक शशधर मुकर्जी की बहन शोभा से हुआ था। दो बेटियां में से छोटी प्रीति गांगुली एक अच्छी हास्य अभिनेत्री थी। उसका २०१२ में हृदय गति रुकने से निधन हो गया था। बड़ी रूपा गांगुली का ब्याह प्रसिद्ध अभिनेता देवेन वर्मा से हुआ था। देवेन का करीब दो साल पहले निधन हो गया। 
अस्सी के दशक में उन्होंने फिल्मों से रिटायरमेंट ले लिया। और पूर्णरूपेण होमिओपैथी प्रैक्टिस करने लगे। समय मिलने पर वो चित्रकारी का शौक भी पूरा करते थे।
उन्होंने २७५ से अधिक फिल्में की। उन्हें तीन फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिले, १९६२ में राखी तथा १९६८ में तथा आर्शीवाद के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और १९५१ में अफसाना के लिये सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता अवार्ड। १९९५ में लाईफटाईम एवार्ड भी दिया। भारत सरकार ने १९८९ में सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिये दादासाहब फाल्के एवार्ड दिया। १९९८ में उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया गया।

१० दिसंबर २००१ को ९० साल की उम्र में हार्टफेल होने के कारण वो परलोकवासी हो गये।
---
Published in Navodaya Times 15 Oct 2016
---
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
mob 7505663626

No comments:

Post a Comment