Thursday, October 27, 2016

कट मार्क!

- वीर विनोद छाबड़ा
मेरे माथे के ऊपर दाएं हिस्से पर चोट का लंबा निशान है। मैं जब जब आईने के सामने खड़ा होता हूं तो दिखाई देता है। मैं करीब ५७-५८ साल पीछे चला जाता हूं...
मेरे घर कोई रिश्तेदार आया है। हम पकड़ो पकड़ो खेल रहे हैं। मैं उसे पकड़ना चाहता हूं। मैंने जंप मारी। लेकिन मेरा अंदाज़ा गलत हो गया। उसकी रफ़्तार ज्यादा थी। वो मेरे हाथ में नहीं आया। मैं फर्श पर गिर पड़ा। यह ईंटों वाला फर्श है। किसी ईंट का एक हिस्सा थोड़ा ऊपर उठा हुआ है। माथा कट गया। खूनो-खून हो गया। रात का वक़्त है। मां ने एक रूमाल रख कर कस दबा दिया। काफी देर बाद खून का बहना रुक गया। लेकिन रिसना बंद नहीं हुआ।
पिताजी रेलवे के पार्सल ऑफिस में हैं। देर रात शिफ्ट ड्यूटी से वापस आये। मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में ले गए। मरहम पट्टी हुई। कई दिन लगे ठीक होने में।
सालों तक माथे पर एक मोटी सी गिल्टी बनी रही। इस बीच मुझे छेड़ा जाता रहा है - सींग निकल रहे हैं क्या?
बड़े होने पर सींग गायब हो गए। लेकिन एक लंबे कट का निशान रह गया। तब मुझे नहीं मालूम था कि यह मार्क ताउम्र रहेगा और मेरी पहचान भी बनेगा।
नौकरी मिलने के बाद कई फॉर्म भरने पड़े। इनमें एक सर्विस बुक भी थी। बाबू ने कहा। कोई पहचान बताओ।

मुझे समझ में नहीं आया। बाबू झल्ला गया। कहीं कटा-पिटा निशान है जिस्म पर? कभी मार-पीट कियो हो?
तब मुझे यह निशान याद आया। उसने फ़ौरन लिख लिया। उस ज़माने में मेरे सर पर घने बाल होते थे जो माथे का बड़ा हिस्सा कवर करते थे। निशान दिखता ही नहीं था। अब तो दूर से ही दिख जाता है। हमारे पेंशन रिकॉर्ड में भी यही पहचान दर्ज है। बीमा पालिसी के अलावा कई और जगह भी यह पहचान दर्ज है।

क्या मालूम कि आगे चल कर कोई नया नियम बन जाए। फूंकने से पहले मुरदे की 'पहचान' ज़रूरी है। यमराज जी कह रहे हैं कि ऊपर चित्रगुप्त जी ने पूछा है। ऐसा न हो कि कहीं कोई ग़लत आदमी ढो लाये। 
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