Monday, October 3, 2016

जनसेवा गयी तेल लेने!

-वीर विनोद छाबड़ा
सुधार व विकास के वादों पर भक्तराज पुनःनिर्वाचित हुए हैं। जनता को पूरी आशा है कि इस बार ज़रूर उखड़ी सड़क बनेगी। चोक सीवर खुलेंगे। जल भराव से निजात मिलेगी। बूढ़े हो चले बदहाल बगीचों  के दिन बहुरेंगे। शुद्ध पानी पीयेंगे। प्रॉपर्टी डीलिंग और अवैध कब्जों के धंधे को समर्पित भक्तराज को ऊपरवाले पर पूरा भरोसा है। ईश्वर सब ठीक करेंगे। उन्होंने अपनी जीत को अधर्म पर जीत के पर्व में मनाने की घोषणा की। इस निमित्त उन्होंने बदहाल पार्क की घास-फूस कटवा कर वहीं फूंकवा दी। आसपास के तमाम घरों में धुआं घुस गया। लोग बेतरह खांसे। वृद्धजनों का तो दम घुटने लगा। दो अस्थमा पीड़ित मरणासन्न स्थिति में अस्पताल पहुंचाए गए।
भक्तराज बोले - आप ही की गल्ती है। खिड़कियां बंद रखनी चाहिए। फिर धर्म-कर्म का मामला है। थोड़ा-बहुत कष्ट तो सहना पड़ता है। इसे भोले का प्रसाद समझिये।
धर्म-कर्म जैसी मिसाईल के सामने भला कौन बोले। मोहल्ला सुधार समिति के अध्यक्ष जी ने भी हां में हां मिलाई। शिकायतकर्ता ढेर हो गए। 

संध्या में झमझमा भजन-कीर्तन हुआ। भक्तराज फिल्मी धुनों पर बने भजनों पर मस्त हो गए। भोंडे तरीके से झूम-झूम नाचे। बजरंगबली के मेकअप में एक भक्त भी खूब नाचा। सौ-पचास के नोट लुटाये गए। मालूम नहीं कि धर्मग्रंथों में हनुमान जी के नृत्य का ज़िक्र है कि नहीं। हो सकता है कि हो। लेकिन इतने भौंडे तरीके से तो नहीं नाचे होंगे। इस कौतुक पर जनता धन्य हुई। जम कर नकद चढ़ावा आया। ईश्वर के नाम पर कम और भक्तराज के नाम पर ज्यादा जयकारे लगे। फिर सबने जमकर स्वादिष्ट भंडारा डकारा।
डकार इस सच का प्रतीक है कि निरीह जनता ने मान लिया है - सड़क इस बार भी नहीं बनी तो कोई बात नहीं। बल्कि नई सीवर लाईन अगर डाली गयी तो मुसीबत ही आएगी। अतिक्रमण कर बनाये हुए सबके गैराज, किचेन गार्डन, दुकानें, चबूतरे टूटेंगे। 
पार्क का विकास होगा तो फूल-पत्ती लगेगी। कोई फूल तोड़ेगा, कोई पौधे रौंदेगा। ख़ामख़्वाह का झगड़ा-फ़साद। झूला लगा तो पहले झूलने की मारा-मारी। फिर कोई झूले से गिरेगा। किसी का सिर फूटा और किसी का माथा। पुलिस में रिपोर्ट और फिर कोर्ट-कचेहरी। लड़ते रहिये उम्र भर? शादी और कनछेदन की पार्टियां कहां होगीं? बच्चे क्रिकेट कहां खेलेंगे? बच्चे धोनी और विराट जैसे होनहार नहीं बनेंगे।
नल में शुद्ध पानी नहीं है, तो क्या हुआ? एक्वागार्ड तो घर घर है ही! 
भैया जैसा है, चलने दो। सब रामभरोसे छोड़ दो। इतना बड़ा कथा-कीर्तन और भंडारा हुआ है। गगनभेदी जयकारे लगे हैं। ऊपर कुछ तो आवाज़ पहुंची ही होगी। कुछ तो कृपा बरसेगी। भाव-विभोर जनता-जनार्दन एकमत में बोली - सड़क, पार्क, पानी, सीवर को मारो गोली।
इधर भक्तराज आश्वस्त हुए, अगले पांच बरस शांति से कटेंगें। इसके बाद अगर ऊपरवाले ने चाहा तो तीसरी पारी भी जीतेंगे। जनसेवा गई तेल लेने। साल में एक दफे कीर्तन-भंडारे का झुनझुना बजाते रहो। जनता को न आश्वासन याद आएगा और न विकास।
भक्तराज के चेहरे पर दमकता अहंकार, होटों पर बिखरी कुटिल मुस्कान और आखों में रह-रह कर कौंधती शैतानी चमक साफ बयां कर रही थी - मेरे भाई, चुनाव जीतने का मंत्र जानना हो हमसे सुनो। धर्म, जाति, सांप्रदायिकता, मौकापरस्ती, दबंगई, लालच के कार्ड हाथ में रखो। 
भक्तराज ठीक कहते हैं। नेताओं के बदलने से फ़र्क़ नहीं आयेगा। जहां डीएनए में ही बदनीयती घुसी हो वहां फिलहाल तो रामभरोसे ही सब कुछ चलना है और नास्तिकों को यकीन भी कराना है कि भैया भगवान हैं। अगर न होते तो इतना बड़ा मुल्क ऐसे ही थोड़े न चल रहा होता! 

कथा समाप्त होने से पूर्व जरूरी है कि यह ख़बर पढ़ लें। एक बड़े विदेशी पत्रकार ने ट्वीट किया। घनघोर नास्तिक होने के नाते मैं ईश्वर के अस्तित्व पर कभी यकीन नहीं करता था। परंतु भारत में सारे सिस्टमों को राम भरोसे चलते देख कर मुझे यकीन होने लगा है कि भगवान है। 
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Published in Prabhat Khabar dated 03 Oct 2016
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