Saturday, October 22, 2016

खून का घूंट पीकर रह गए थे नैय्यर

- वीर विनोद छाबड़ा
ओंकार प्रसाद नैय्यर लाहोर में आल इंडिया रेडियो पर ११ साल की उम्र से पियानो बजाया करते थे। बड़े हुए तो संगीतकार बनने का शौक चढ़ा। सपनों की नगरी बंबई आ गए। संगीत में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था। बस पंजाब की कुछ लोकधुनें मालूम थीं। सारंगी और ढोलक का प्रयोग जानते थे। किस्मत बुलंद थी। 'कनीज़' नाम की फिल्म का बैकग्राउंड म्युज़िक दिया। जल्दी ही 'आसमान' मिल गयी। तीन फ़िल्में और मिलीं। लेकिन सब की सब फ्लॉप। इसमें गुरुदत्त द्वारा निर्देशित 'बाज़' (१९५३) भी थी। यह चालीस के दशक का अंत और पचास के दशक की शुरुआत थी। नैय्यर बिस्तर बांध चुके थे। यह नगरी उनके काम की नहीं।
लेकिन गुरूदत्त ने उन्हें जाने नहीं दिया। गुरू को मालूम था कि नैय्यर में प्रतिभा है। गुरू ने अपनी 'आर-पार' (१९५४) में मौका दिया। इस फिल्म के सारे गाने हिट हो गए - बाबू जी धीरे चलनाइसके बाद 'मि. एंड मिसेस ५५' - ठंडी हवा काली घटा... और फिर 'सीआईडी' - लेके पहला पहला प्यार... लगातर हिट फ़िल्में। नैय्यर को -पंख मिल गए।
लेकिन जब गुरुदत्त ने 'प्यासा' शुरू की तो नैय्यर की जगह एसडी बर्मन आ गए। विवाद उठा। लेकिन गुरू को नैय्यर की संगीत की समझ पता थीं। 'प्यासा' बहुत ही गंभीर विषय था। नैय्यर को बहुत ख़राब लगा। खून का घूंट पीकर रह गए। लेकिन नैय्यर ने जुबानी जवाब देने की बजाय संगीत से जवाब दिया, बीआर चोपड़ा की सुपर हिट 'नया दौर' में बेहतरीन संगीत देकर - ये देश है वीर जवानों का...उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी...मैं बंबई का बाबू...साथी हाथ बढ़ाना... आज भी चलन में हैं। उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड भी मिला था। इधर नैय्यर व्यस्त रहे उधर गुरूदत्त कागज़ के फूल, चौदहवीं का चाँद साहब बीवी और गुलाम में मसरूफ ज़रूर रहे, लेकिन नैय्यर उनके दिल में रहे।

गुरू ने १९६४ में 'बहारें फिर भी आएंगी' लांच की। हीरो वो खुद थे। संगीत के लिए पुराने दोस्त ओपी नैय्यर को बुलाया, जिनके सितारे उस दिनों गर्दिश में थे। लेकिन तभी एक ट्रेजेडी हुई। गुरू का असामयिक निधन हो गया। फिल्म आधी से ज्यादा बन चुकी थी। धर्मेंद्र को लेकर दुबारा फिल्म शूट हुई। इस कारण विलंब हो गया। इसी दौरान एक और बवाल हुआ। उस दिन 'आपके हसीं रुख पे आज नया नूर है.की रिकॉर्डिंग होनी थी। लेकिन साजिंदे समय पर नहीं आये। इसकी वजह हड़ताल थी। नैय्यर जितने अनुशासन प्रिय थे, उतने ही सनकी भी। लेट आने वाले सभी साजिंदों को बाहर का रास्ता दिखाया। बहुत छोटे ऑर्केस्ट्रा के साथ पियानो का इस्तेमाल करते हुए गाना रेकॉर्ड किया - आपके हसीं रुख पे आज नया नूर है...लेकिन समस्याएं ख़त्म होने वाली नहीं थीं। नैय्यर की मो.रफ़ी से अनबन हो गयी। अगला गाना महेंद्र कपूर की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया... बदल जाए अगर माली, चमन होता नहीं खाली...फिल्म हिट हुई और इसके साथ ही नैय्यर को ज़िंदगी मिल गयी। सावन की घटा, मोहब्बत ज़िंदगी है, हमसाया, नसीहत, किस्मत आदि दर्जन भर फ़िल्में मिल गईं।

नैय्यर और विवादों का नाता पुराना था। लता मंगेशकर ने उनके लिए कभी गाना नहीं रिकॉर्ड कराया। लता उन्हें संगीतकार मानती ही नहीं थी। नैय्यर ने सुना तो लता के सामने उन्हीं की छोटी बहन आशा को उनके समकक्ष खड़ा कर दिया। बीआर चोपड़ा ने 'नया दौर' की सफलता के बावज़ूद उन्हें रिपीट नहीं किया। उन दिनों नैय्यर की फीस एक लाख थी, सबसे ज्यादा। नैय्यर ने ऊंची आवाज़ में अपना बकाया मांगा। बीआर को ऊंची आवाज़ बर्दाश्त नहीं थी। उनकी ऊंची फीस के उसूल के कारण अन्य निर्माता भी उन्हें रिपीट करने से कतराते थे। गुरूदत्त के अलावा शक्ति सामंत ने नैय्यर को तीन फ़िल्में दी थीं। हावड़ा ब्रिज, कश्मीर की कली और सावन की घटा।
कुछ समय बाद लता के कद के बराबर खड़ा करने वाली आशा भोंसले से अनबन हो गयी। वजह थी, उन दोनों के मध्य रोमांस की खबरें। आशा ने इसके पीछे नैय्यर का हाथ होना बताया। बात यहां तक पहुंची कि आशा ने 'प्राण जाए पर वचन न जाए' के इस रिकार्डेड गाने को फिल्म से निकलवा दिया - चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया...लेकिन इसके बावज़ूद इसे फिल्मफेयर अवार्ड मिला। गुस्से में जलती आशा समारोह में ही नहीं गयीं। संगीत की सीमित समझ होने के बावज़ूद नैय्यर यूं भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने ७५ फ़िल्में की जिनमे अनेक सुपर हिट गाने दिए - ज़रा हटके ज़रा बचके, ये है बॉम्बे मेरी जां...यूं तो हमने लाख हंसी देखे हैं...आइये मेहरबां...मेरा नाम चिन चिन चूं...एक परदेसी मेरा दिल ले गया...ये है रेशमी ज़ुल्फ़ों का अँधेरा...आप हुज़ूर तुमको...ज़रा हौले हौले चलो मोरे साजना...ऐ लो मैं हारी पिया...

 नैय्यर की परिवार से भी ज्यादा पटरी नहीं खाई। यहां तक कह दिया कि उनके अंतिम संस्कार में परिवार के लोग शामिल न हों। उनका जन्म १६ जनवरी १९२६ को हुआ और निधन ८१वें जन्मदिन के लगभग दो सप्ताह बाद २८ जनवरी २००७ को।
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Published in Navodaya Times dated 22 Oct 2016
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