Wednesday, February 22, 2017

पृथ्वी जाता है, अकबर आता है

- वीर विनोद छाबड़ा
१९२८ के आस-पास का एक दिन। बंबई के कोलाबा स्टेशन पर पेशावर से आई फ्रण्टियर मेल रूकती है। उसमें से एक खूबसूरत, ऊंचे कद-बुत का पठान उतरता है। उसकी भूरी आंखों में एक हसीन ख्वाब है, उमंग है, विश्वास है। वो सीधे इंपीरियल स्टूडियो पहुंचता है। वहां उसकी मुलाकात डायरेक्टर अर्दिशिर ईरानी से होती है। वो उसे बाहर टंगा बोर्ड दिखाते हैं, जिस पर लिखा है - नो वेकैंसी। वो हट करता है कि उसे काम चाहिए। वो नौजवान अपनी खूबियां बताता है। वो ग्रेजुएट है। पंजाबी, उर्दू, पश्तो और अंग्रेज़ी पर उसकी बहुत अच्छी पकड़ है। उसने कई नाटकों में काम किया है। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक है ही। अर्दिशिर तंग आ जाते हैं। ठीक है, लेकिन अनपेड एक्स्ट्रा का काम है। नौजवान पूछता है कि मुझे करना क्या होगा। अर्दिशिर झल्ला कर बताते हैं, महत्वहीन, भीड़ का हिस्सा। और वो नौजवान ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो जाता है। अर्दिशिर उसके कंधे पर हाथ रखते हैं। तुम बहुत दूर तक जाओगे। उस नौजवान का नाम था - पृथ्वीराज कपूर। 
पूरे १० दिन हो चुके थे पृथ्वी को भीड़ में खड़े हुए। 'सिनेमा गर्ल' फिल्म की शूटिंग चल रही थी। उस दिन फिल्म का हीरो नहीं आया। डायरेक्टर बहुत क्रोधित  हुआ। हीरो को बदल डालो। हीरोइन से कहा कि सामने एक्स्ट्रा आर्टिस्ट्स की भीड़ में किसी को अपना हीरो चुन लो। हीरोइन ने पृथ्वीराज की ओर ईशारा कर दिया। और इस तरह वो नायक बन गए - १०० रूपये महीने के वेतन पर।

१९३१ में अर्दिशिर ईरानी ने भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' बनायीं। इसमें पृथ्वीराज की भी सेकंड लीड में भूमिका थी। उन दिनों 'फ़िल्म इंडिया' के प्रकाशक-संपादक बाबूराव पटेल जाने क्यों पृथ्वीराज से खुंदक रखने लगे। उन्होंने एक आर्टिकल में लिखा - पठान जैसे चेहरे वाले पृथ्वीराज बांबे में चल नहीं पाओगे। बेहतर है तुम फ्रंटीयर मेल से पेशावर लौट जाओ। पृथ्वीराज ने जवाब दिया था - मैं पेशावर नहीं लौटूंगा। बल्कि तैर कर सात समंदर पार हॉलीवुड चला जाऊंगा। उसके बाद बाबूराव पटेल ने उनसे पंगा नहीं लिया।
इस बीच पृथ्वीराज की निजी ज़िंदगी में एक के बाद एक दो बहुत बड़ी त्रासदियां हुईं। उनके एक बेटे को डबल निमोनिया ने निगल लिया और दो साल के अन्य बेटे ने भूल से चूहे मारने वाली दवा खा ली। उस समय उनकी पत्नी के गर्भ में चौथा बच्चा था।
Prithviraj Kapoor
 
१९४१ में रिलीज़ सोहराब मोदी की 'पुकार' पृथ्वीराज के कैरियर में मील का पत्थर बनी। अपने रंग-रूप, डील-डौल और बुलंद आवाज़ के कारण वो आक्रांता सिकंदर की भूमिका में खूब जंचे। सोहराब मोदी इसमें राजा पुरु की भूमिका में थे। इसी में वो कालजयी संवाद थे। सिकंदर ने कैदी पुरु से पूछा था - तेरे साथ क्या सलूक किया जाए? पुरु ने गर्व से जवाब दिया था - वही जो एक राजा, दूसरे राजा के साथ करता है। और सिकंदर जीता हुआ राजपाट पुरु को लौटा कर अपने देश वापसी का फैसला करता है। बरसों बाद १९६५ में 'पुकार' एक बार फिर बनी, लेकिन 'सिकंदर' के नाम से। इस बार सिकंदर दारासिंह और पुरु पृथ्वीराज थे।
'पुकार' के बाद पृथ्वीराज स्वर्णिम काल शुरू हो गया। लेकिन बिना नाटक के उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी। और अंततः १९४६ में उन्होंने पृथ्वी थिएटर की नींव रख कर अपने लंबित सपने को पूरा कर ही डाला। पूरे भारत में उन्होंने करीब ६०० शो किये जिसमें अधिकतर में वो स्वयं हीरो रहे।
'मुगले-आज़म' पृथ्वीराज के जीवन की सबसे बड़ी और अहम घटना है। इसमें वो बादशाह अकबर थे। उनकी दमदार परफॉरमेंस पर एक क्रिटिक की टिप्पणी थी - शायद बादशाह अकबर ऐसा ही रहा होगा। आज भी बादशाह अकबर का नाम जब जुबान पर आता है तो पृथ्वीराज का चेहरा ही सामने आता है। अकबर का मेकअप करने और उसकी काया के भीतर घुसने में उनको चार घंटे लगते थे। जब वो मेकअप रूम के जा रहे होते थे तो कहते थे - पृथ्वी जा रहा है। और जब बाहर आते थे तो बा-आवाज़े बुलंद कहते थे - अकबर आ रहा है।
पृथ्वीराज ने जहाँआरा, लुटेरा, रुस्तम-सोहराब, तीन बहुरानियां, नानक नाम जहाज है, कल आज और कल, हरिश्चंद्र तारामती, ग़ज़ल, आसमान महल आदि करीब सौ फिल्मों में काम किया। उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया था। १९६९ में पदम् भूषण से सम्मानित हुए। २९ मई १९७२ को मात्र ६६ साल की उम्र में कैंसर से वो बाज़ी हार गए। सोलह दिनों बाद उनकी पत्नी भी चल बसीं। मरणोपरांत उन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाज़ा गया। २०१३ में 'भारत में सिनेमा को सौ साल' के अवसर पर उनके योगदान को याद करते हुए डाक टिकट ज़ारी हुआ।
आज की पीढ़ी शायद नहीं जानती कि किवदंती पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर यों तो सिनेमा के सख्त खिलाफ थे, लेकिन उन्होंने पोते राजकपूर की 'आवारा' में जज की भूमिका की थी। इसमें पृथ्वीराज भी थे। इस समय करिश्मा, करीना और रनवीर कपूर के रूप में उनकी पांचवीं पीढ़ी सिनेमा के मैदान में है।
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Published in Navodaya Times
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