Wednesday, February 10, 2016

भालू दिवस बोले कि टैडी बीयर डे।

- वीर विनोद छाबड़ा
हमारा ज़माना होता तो आज के दिन को हम 'भालू दिवस' कहते। लेकिन आज का युग हिंगलिश का है। बिल्ली नहीं कैट है और चूहा रैट। भालू भला कैसे पीछे रहता। बीयर हो गया। अंग्रेज़ी स्कूल के बच्चे ही नहीं मलिन बस्ती में भी उसे बीयर के नाम से पहचाना जाता है।

हमें अपना बचपन याद आता है। जब गली-गली में भालू का नाच दिखाने वाले मदारी डमरू बजाते घूमते फिरते थे। मां हमारे दिल से डर भगाने के लिए भालू का बाल तकिये के नीचे रख दिया करती थी। कहती थी नज़र से भी बचा रहेगा मेरा लाल।
यों हमने बंदर-बंदरिया का नाच भी खूब देखा है, लेकिन भालू को देखना ज्यादा सुखद रहा। मदारी और भालू की कुश्ती में मदारी ही हारता देखा। हम बच्चों ने खुश होकर नाचते हुए खूब ताली पीटी।
जंगल में खो गयी एक बच्ची और तीन भालूओं की कहानी की धुंधली याद भी है। बच्ची भालूओं के घर में घुस गयी थी। उनमें एक नन्हा भालू भी था। बच्ची ने नन्हे भालू की खीर भरी कटोरी चट कर ली थी। फिर वो नन्हे भालू के बिस्तर पर ठाठ से सो गयी। कुछ देर बाद भालू परिवार घर लौटा। नन्हा भालू अपनी खाली कटोरी देख कर रोने लगा। इतने में बच्ची जाग गयी।  भालू परिवार को देखकर वो डर गयी। जल्दी से वो वहां से भागी और फिर कभी उस घर में नहीं लौटी।
बच्चे सभी के प्यारे होते हैं। गधे के भी। लेकिन न मालूम क्यों भालू का बच्चा सबसे ज्यादा प्यारा लगता है। लेकिन कुछ बात है ज़रूर। तभी तो आज कल बड़े माल्स से लेकर गली-गली में टेडी बीयर के सॉफ्ट टॉयज बिक रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां टेडी बीयर मौजूद न हो।

एक अदद हमारे घर में भी पिछले कई सालों से डेरा जमाये है। सर्दी शुरू होते ही स्टोर में छुप जाता है। कहता है ठंडी लगती है। आज मेमसाब ने बड़ी मिन्नत करके उसे बाहर निकाला - आज तुम्हारा ही दिन है।
लेकिन वो इस शर्त पर बाहर आया कि उसे नहलाया न जाए और हम मान गए।
सोचता हूं अंग्रेज़ 'टैडी बीयर डे' ही क्यों मनाते हैं, 'डंकी बेबी डे' क्यों नहीं मनाते? हमें तो दुनिया का सबसे मेहनती और मासूम प्राणी लगता है। 
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