Friday, February 5, 2016

'गर्म हवा' मतलब मैसूर श्रीनिवास सथ्यू।

- वीर विनोद छाबड़ा
यों निर्माता-निर्देशक एमएस सथ्यू सिनेमा और थिएटर में एक बड़ा नाम है। लेकिन १९४७ की तक़सीम पर बनी सफल फ़िल्म 'गर्म हवा' के बिना वो अधूरे हैं।
कल ०४ फरवरी को सथ्यू साहब लखनऊ पधारे। आल इंडिया कैफ़ी आज़मी एकेडमी और इप्टा ने उनसे संवाद का साझा प्रोग्राम बना डाला। गर्म हवा ने समानांतर भारतीय सिनेमा को हवा दी ही, भारतीय मुसलमानों को भी यह पहचान दी है कि उनके सरोकार आम भारतीय वाले ही हैं। आज जब माहौल में सहिष्णुता को लेकर काफ़ी गर्मी है और सिनेमा सिर्फ़ मार्केटिंग कर रहा है तो ऐसे में 'गर्म हवा' को रि-विजिट करना बहुत ज़रूरी है।

कन्नड़ भाषी ८५ वर्षीय एमएस सथ्यू ने बताया - मैं 'कहां कहां से गुज़र गया' की स्क्रिप्ट लेकर फिल्म फाइनेंस कारपोरेशन से लोन लेने गया। मगर चेयरमैन बीके करंजिया ने कहा कि हीरो निगेटिव है। राजेंद्र सिंह बेदी, इस्मत चुगताई आदि दोस्तों से बात हुई। नतीजा 'गर्म हवा' की स्क्रिप्ट बनी और करंजिया साहब ने पसंद कर ली।


चेतन की नीचा नगर, बिमल राय की दो बीघा ज़मीन और अब्बास की धरती के लाल की तरह 'गर्म हवा' भी इप्टा के आर्टिस्टों के साथ बनायी। लेकिन सेंसर ने रोक ली। कहा, बैन लगना चाहिए। तब मैंने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से हस्तक्षेप का अनुरोध किया। उन्होंने तार भेजा - आकर दिखाओ फिल्म। बामुश्किल लैब से प्रिंट निकलवाया। उनकी कैबिनेट ने फिल्म देखी और उसके बाद में पक्ष-विपक्ष ने। सबने पसंद किया। मुफ्त में सैकड़ों ने फ़िल्म देख ली। इधर फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में एंट्री के लिए नॉमिनेट हुई और फिर जब ऑस्कर के लिए एंट्री मिली तो 'गर्म हवा' की हवा गर्म हो हुई। तब तक ग्यारह महीने गुज़र चुके थे। बंबई के रीगल थिएटर में प्रीमियर के ठीक पहले शिव सेना के बाल ठाकरे ने रोक लगा दी। एक सेंसर के बाद एक और सेंसर। उन्हें फ़िल्म दिखाई गयी तो बोले - मुसलमान को भारत में ही रहना चाहिए।

MS Sathyu & Virendra Yadav
प्रसिद्ध समालोचक वीरेंद्र यादव ने हस्तक्षेप किया - मैंने राजनीति से परे हट कर विभाजन की बलि चढ़ गए मानवीय मूल्यों के दृष्टिगत इस फ़िल्म को कई बार देखा। आज माहौल में असहिष्णुता को लेकर जिस तरह की गर्मागर्मी में है उसमें 'गर्म हवा -२' बनाने की निहायत ज़रूरत महसूस हो रही है।

सथ्यू साहब ने समर्थन किया। लेकिन अच्छी फिल्म संयोग से बनती है। हिट का कोई फार्मूला नहीं है। ईमानदारी ज़रूर हो। बहुत केयरफुल रहना पड़ता है अब। एंटी पाकिस्तान फिल्म एंटी मुस्लिम हो जाती है। सबसे बड़ी समस्या तो फाइनांस है।

MS Sathyu & Deepak Kabeer
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में सथ्यू साहब ने बताया - पाकिस्तान में भी खूब देखी गयी यह फिल्म।
सुप्रसिद्ध लेखक भगवान स्वरुप कटियार ने जब प्रश्न किया कि वर्तमान दौर के बारे में सथ्यू क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा - लोग सोचते हैं मैं पागल हूं। सिर्फ पॉलिटिक्स जानता हूं। लेकिन ऐसा नहीं है। त्रासदी क्या होती है यह दिल्ली आकर जाना। वहां मैसूर में पार्टीशन का इफ़ेक्ट नहीं था। ज़रूरी नहीं कि हम त्रासदी से गुज़रे हों। संवेदना होनी चाहिए। जुनून और समर्पण होना चाहिए। थिएटर के आर्टिस्टों में यह ज्यादा होता है। आर्टिस्ट हिंदू-मुसलमान नहीं है, सिर्फ आर्टिस्ट है। यही वज़ह थी कि सिर्फ ४२ दिन में बन गई गर्म हवा।
Rakesh Vijay KK Vats

एमएस सथ्यू साहब को युवाओं से बहुत उम्मीदें हैं - इंसान बनना कुछ चाहता है और  बन कुछ जाता है। इंजीनियरों के परिवार से था मैं। लेकिन मन नहीं लगता था। तीन साल कथकली डांस सीखा। कहीं-कहीं परफॉर्म भी किया। उदय शंकर की 'कल्पना' पहली बैले फ़िल्म थी। उसमें काम किया। लेकिन बात बनी नहीं। बीएससी की पढाई छोड़ कर मैसूर से बंबई आ गया। छह महीने इधर-उधर भटकता रहा। हबीब तनवीर और केए अब्बास मिले। थिएटर में फ्यूचर दिख गया। हिंदी-उर्दू खराब थी इसलिए पर्दे के पीछे रहा। बहुत काम किया। एक दिन डायरेक्टर चेतन आनंद ने मुझे स्पॉट किया। अपना असिस्टेंट बना कर ले गए। पहली ही बार में वो फिल्म के हीरो थे और मैं उन्हें यानि डायरेक्टर को डायरेक्ट कर रहा था। कब क्या जाये मालूम नहीं। पैशन यानि जोश बहुत ही ज़रूरी है।
VV Chhabra & MS Sathyu

कई बार प्रश्नों का उत्तर देते हुए सथ्यू साहब बीच-बीच में नॉस्टॅल्जिक हुए - शुरू-शुरू में उर्दू नही जानता था। उर्दू के दोस्तों और पत्नी शमा ज़ैदी की सोहबत में रह कर उर्दू सीखी। इंदिरा जी के पुत्रों राजीव और संजय को पढ़ाने जाना होता था। वहीं पर पूर्व रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन आया करते थे। कोई सिक्योरिटी नहीं होती थी। चाय खूब पिया करते थे। फिर वहां से कनॉट प्लेस तक पैदल जाते और पीछे पीछे उनका बहुत धीमी गति से ड्राईवर। गर्म हवा को कई ईनाम मिले। राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बेस्ट फ़िल्म फिल्म का नेशनल अवार्ड बड़ा था। तीन फिल्मफेयर भी मिले। एक दिन ऑफर आया पद्मश्री देने का साथ में यह आश्वासन मांगा गया कि मना नहीं करना। अब तो नीचे से सिफारिश होती है।

सथ्यू साहब ने बताया - दो साल पहले गूगल के लिए सांप्रदायिक एकता पर एक एड फिल्म की थी जिसमें उन्होंने पाकिस्तान में बसे एक मुस्लिम का किरदार अदा किया था जो इंडिया वाले हिंदू का गहरा दोस्त है और मरने से पहले उससे मिलना चाहता है। मोदी जी के लिय एड फिल्म का ऑफर मिला। मना कर दिया था। वो मेरी पसंद नहीं थे।
MS Sathyu & Sushila Puri

फ़िल्म  इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने सथ्यू जी को उस साझी संस्कृति का बड़ा प्रतीक बताया जिन्होंने उसे ठीक से पढ़ा और आगे बढ़ाया। पद और पुरुस्कार उनके सामने बौने हैं। कम बोलकर एनर्जी जमा करते हैं और जब इसमें विस्फोट होता है तो कोई गर्म हवा बनती है, बकरी जैसा नाटक सामने आता है। कई भाषाओँ में एक साथ काम करते हैं।


कार्यक्रम की शुरुआत में 'गर्म हवा' के अंतिम कुछ अंश दिखाये गए। सलीम मिर्जा के सारे रिश्तेदार पाकिस्तान जा चुके हैं। बड़ा बेटा भी चला गया। बेटी आत्महत्या कर चुकी है। व्यवसाय चौपट हो चुका। लोन नहीं मिलता। उन्हें शक़ की निगाह से देखा जाता है। बीवी ताना मारती है अगर पहले चले जाते पाकिस्तान तो बेटी अमीना आत्महत्या न करती। नौकरी की तलाश में भटक रहे पढ़े-लिखे बेटे से कहा जाता है कि बेहतर है कि पाकिस्तान जाकर नौकरी तलाश करो। सलीम मिर्जा टूट जाते हैं। पाकिस्तान जाने के लिए निकल पड़ते हैं। रास्ते में जुलूस मिलता है, रोजी-रोटी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध। बेटा तांगे से उतर उसमें शामिल हो जाता है। कुछ पल बाद सलीम मिर्जा बीवी और तांगे वाले को घर की ओर मोड़ देते है और खुद जुलूस शामिल हो जाते हैं - यहीं है भविष्य।   

कार्यक्रम का संचालन और समन्वय का काम दीपक कबीर ने किया। कार्यक्रम में सुशीला पुरी, प्रदीप घोष, अब्बास मेहंदी, केके वत्स, केके चतुर्वेदी, विजयराज बली माथुर, ऋषि श्रीवास्तव आदि साहित्य और रंगमंच से जुड़े अनेक गणमान्य मौजूद थे।
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05-02-2016 mob 7505663626
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