Sunday, February 7, 2016

फेस बुक - दिल की बात कहने का प्लेटफॉर्म।

- वीर विनोद छाबड़ा 
साठ का अंत और सत्तर की शुरुआत का दौर था वो। लखनऊ से एक साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित होती थी - कात्यायनी। कहानी प्रधान पत्रिका थी।
साहित्यिक गलियारों में बहुत चर्चित थी यह पत्रिका। संपादक थे पंडित अश्विनी कुमार द्विवेदी। मेरा सौभाग्य था कि उसमें मेरी कुछ कहानियां प्रकाशित हुईं। पत्रिका के अंतिम दो-तीन वर्ष मैंने इसमें काम भी किया। बिलकुल मुफ़्त में। युनिवर्सटी से छूट कर सीधे वहीं जाना होता था। मेरे साथ बंधु कुशावर्ती भी होते थे उसमें।
हीवेट रोड स्थित गुप्ता प्रिंटिंग प्रेस के मालिक साहित्य प्रेमी थे। न सिर्फ मुफ्त में मुद्रित करते थे बल्कि ऑफ़िस के लिए दो बड़े कमरे भी उन्होंने प्रदान कर रखे थे। लेकिन कागज़ और ब्लॉक के लिए धन पत्रिका की बिक्री से होने वाली थोड़ी सी आमदनी से चलता था। साहित्य में फ़क़ीरी तब भी होती थी। अक्सर वहां अड्डा ज़माने वाले साहित्यकारों को जेब सहर्ष खाली करनी पड़ती थी। कई बार हमें भी अपना जेब ख़र्च न्यौछावर करना पड़ा।
'कात्यायनी' की विशेषता यह थी कि इसमें उन सब रचनाओं को प्रमुखता दी जाती थी, जिनके साथ किसी बड़ी पत्रिका की 'खेद सहित वापस' की पर्ची लगी हो। उस दौर के तमाम युवा कहानीकारों की रचनायें इसमें प्रकाशित हुई। न छपने योग्य कहानियों को भी द्विवेदी जी कतर-ब्यौंत कर छपने योग्य बना दिया। कई लेखक द्विवेदी जी को धन्यवाद देने आये कि आपने हमें लिखना सिखा दिया। आये दिन गोष्ठियां भी आयोजित होतीं।

धनाभाव के कारण 'कात्यायनी' बंद हो गयी। लेकिन मुझे लगता है फेस बुक ने उस कमी को पूरा कर दिया है। इसने गरीबों की पत्रिका का स्थान ले लिया है। यहां सबको 'दिल की बात' कहने का पूरा-पूरा मौका मिलता है। कहानी के रूप में भी, और कविता में भी। संस्मरण भी स्थान पाते हैं। और ऐसा नहीं है कि आप सिर्फ़ कहते रहें। पढ़ने वाले भी हैं और और उस पर त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले भी हैं। मुद्दों पर बहस भी होती है। यहां छपास भी पूरी होती है। तू-तू मैं-मैं भी है। बिना लाइसेंस बंदूक भी चलती है, बेआवाज़। लहू-लुहान नहीं होता कोई। मृतप्रायः लेखक को नई ज़िंदगी मिली है।
मेरा मानना है कि हर व्यक्ति के दिल में कहीं न कहीं कवि-कहानीकार विराजमान है। और फेस बुक उनके अंकुरण के लिए सबसे मुफ़ीद प्लेटफॉर्म है। लिखिए और लिखते रहिये। झिझकिये या सकुचाईये नहीं कि हमें लिखना नहीं आता। लिखते-लिखते आ जाता है। और हां, लिखने की और सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
---
07-02-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016  

No comments:

Post a Comment