Tuesday, February 23, 2016

चोली-दामन का साथ रहा ललिता और ट्रेजडी का।

 -वीर विनोद छाबड़ा
करीब चौहत्तर साल पहले १९४२ की बात है। अंबिका स्टूडियो में जंगे आज़ादी का सेट लगा है। नायिका ललिता पवार है। मराठी और हिंदी फिल्मों की मशहूर नायिका है वो। बॉक्स ऑफिस पर तूती बोलती है।

एक छोटी सी महत्वपूर्ण भूमिका में हैं नवागंतुक भगवान। दो-तीन फिल्म का कैरियर है अभी तक। कोई ख़ास त्वजो नहीं छोड़ी है। जवान है। उसके अंदर आग भरी है। कुछ कर दिखाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है। इंतज़ार बस एक अदद मौके का है। उसे यकीन है यह मौका आज आ गया है। बता दूँ कि यह मामूली सा दिखने वाला अदाकार आगे चल कर भगवान दादा कहलाया, स्लो मोशन स्टेप-डांस का जनक। जिसे अमिताभ बच्चन ने कॉपी किया और लीजेंड हो गए। मिथुन और गोविंदा भी पीछे नहीं रहे। इन सबसे पहले तो दिलीप कुमार ने भी भगवान स्टाईल में ठुमके लगाये। 

बहरहाल, शॉट यों है कि नायिका ललिता को भगवान ने थप्पड़ मारना है। भगवान को इसी मौके का मानों इंतज़ार था। सोचा, कर दूं एक्टिंग में रीयल्टी पैदा।
 
इधर डायरेक्टर ने टेक के लिये 'एक्शन' बोला उधर भगवान ने पूरी ताकत और तेज़ी से हाथ घुमाया। इस ताक़त और तेज़ी की पूर्वोतर भनक तक ललिता पवार को नहीं लगने दी।

परिणाम यह हुआ कि तड़ाक...भगवान का ज़न्नाटेदार थप्पड़ ललिता के बाएं गाल से थोड़ा ऊपर आंख के पास जा चिपका। ललिता की आंख के सामने अंधेरा छा गया। वो कुछ पल के लिए तो बेहोश हो गयी। होश आया तो थप्पड़ की भयावता पता चली। बायीं आंख के आस-पास के हिस्से में सूजन आ गयी है।


डॉक्टर ने देखा। मामूली सूजन है। दो-चार दिन में ठीक हो जाएगी। मगर कोई असर नहीं हुआ। उलटे तकलीफ बढ़ जाती है।

दूसरे डॉक्टर को दिखाया। उसने बताया यह सूजन मामूली नहीं है। बायीं आंख वो वाला हिस्सा, जहां भगवान का जोरदार थप्पड़ चिपका था, आंशिक पैरालाइज़्ड हो गया है। लंबा ईलाज चलेगा। गारंटी नहीं कि कभी ठीक भी हो।

तीन साल तक लगातार ईलाज चला। इस दौरान ललिता पल-पल नारकीय यातना से गुज़री। ठीक होने के इंतज़ार में लाखों बार करवटें बदलीं। हिंदू, मुस्लिम सिख और ईसाई, हर किसी की इबादतगाह और दरगाह पर मत्था टेका।

और जैसे-तैसे ललिता ठीक हुई। मगर आईने ने डॉक्टर का संदेह पुख्ता कर दिया। नियति का फैसला अटल रहा। उसकी बायीं आंख हमेशा के लिये थोड़ी छोटी हो गई। अब वो नायिका नहीं बन सकती। वो जार-जार रोयी, विलाप किया। नवांगतुक अभिनेता भगवान को लाख-लाख गालियां सुनाई। और ऊपरवाले भगवान से पूछा - बता मेरी क्या गलती है?

जहां चाह, वहां राह। एक हमदर्द ने ललिता को सलाह दी कि चरित्र भूमिकाएं करो। इसमें कोई बुराई नहीं है। प्रतिभा का लोहा ही तो मनवाना है। किरदार कैसा ही क्यों न हो। ललिता को बात जंच गयी।

अब एक आंख छोटी होने के कारण ललिता का लुक शातिराना हो गया। इस सच को भी पचाने में उसे कड़ा परिश्रम करना पड़ा।

मगर ललिता को यह नहीं मालूम था कि मुकद्दर में एक और बेहतरीन और कामयाब सफ़र का शुरू होना लिखा है। उन्हें मां, बहन आदि की सहायक भूमिकाओं के साथ-साथ खलनायिका की भूमिकायें भी प्राप्त होने लगीं।

मगर यहां भी उनके साथ इंसाफ़ नहीं हुआ। हुआ यह कि सहृदय मां की भूमिकाओं में अरसा तक पहली पसंद रहीं। दाग़ में नशेड़ी दिलीप कुमार की मां, राजकपूर की श्री ४२० केले बेचने वाली हरदिल अज़ीज गंगा माई और गुरूदत्त की मिस्टर एंड मिसेज़ ५५ में सीतादेवी की यादगार भूमिकाएं। इसके अलावा भी ढेर फिल्मों में उन्होंने हृदय स्पर्शी  रोल किये। ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनाड़ी' में वो ऊपर से कठोर परंतु दिल की नर्म मिसेज डिसूजा की भूमिका में थीं। इस रोल को बड़ी सहजता तथा मनायोग से उन्होंने जिया। लाखों दिल जीत लिये। सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरुस्कार भी मिला। लेकिन विडंबना देखिये कि उनकी इमेज स्थापित हुई कठोर सास, क्रूर ननद, षणयंत्रकारी जेठानी की। प्रचारित किया गया कि जब बुरी सास या मंथरा का किरदार गढ़ा जाता है तो उस समय सिर्फ और सिर्फ ललिता पवार ही ज़हन में होती है। इसमें दो राय नहीं कि ललिता पवार ने इन्हें जिया भी बखूबी।

ट्रेजडी और ललिता पवार का चोली-दामन का साथ तो शुरू से ही रहा। उनकी शादी कैरियर की शुरुआत में ही गणपत राव पवार से हुई। लेकिन जल्दी ही गणपत की दिलचस्पी ललिता की छोटी बहन में ज्यादा होने लगी। नाराज़ ललिता ने अंबिका स्टुडिओ के मालिक राज प्रकाश गुप्ता से शादी कर ली। मगर 'पवार' सरनेम नहीं छोड़ा क्योंकि इसी सरनेम से उनकी इंडस्ट्री में पहचान बनी हुई थी। 
सन १९९० में उनके जबड़े में कैंसर पाया गया था। उनकी पति, बेटा-बहु और पति के पुणे स्थित फ्लैट में हो गयी। ईलाज के दौरान रेडियाथेरेपी व कीमोथेरेपी के असहनीय दर्द से गुज़रना पड़ा। इसका उनकी याददाश्त पर भी असर पड़ा। वो कहती थीं - शायद मैंने खराब करेक्टर्स ज्यादा दिल से किये। इसी की सजा भुगत रही हूं।

उनके पति राज प्रकाश भी अस्वस्थ रहने लगे। बेटा-बहु उन्हें ईलाज के लिए मुंबई ले गए। ललिता को घर में अकेला छोड़ दिया। महानगरों में ऐसा होता रहता है। उनके पति ने मुंबई से उन्हें २६ फरवरी १९९८ को फ़ोन किया। लेकिन फ़ोन उठा नहीं। उन्हें संदेह हुआ। भागे हुए पुणे आये। दरवाज़ा खोला तो ललिता का दुर्गंधयुक्त निर्जीव शरीर मिला। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से पता चला कि वो तो दो दिन पहले अर्थात २४ फरवरी को ही दुनिया छोड़ चुकी थी। पर्दे पर बुरी सास के रूप में प्रसिद्ध लेकिन उससे कहीं बेहतर हमदर्द व नरम दिल मिसेज डिसुजा का किरदार जीने वाली ललिता पवार बेहद खामोशी के साथ अलविदा कह गयीं। उनकी उम्र ८८ साल थी और ७० साल के कैरियर में चार सौ से ज्यादा फ़िल्में कीं।
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नोट - नवोदय टाइम्स दिनांक २० फरवरी में प्रकाशित। 
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Lucknow - 226016
mob 7505663626


2 comments:

  1. बेहतरी,दिलचस्प,विस्तृत जानकारी वाली पोस्ट। धन्यवाद। पर इतनी बड़ी अदाकारा का दुखद अंत।

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  2. बेहतरी,दिलचस्प,विस्तृत जानकारी वाली पोस्ट। धन्यवाद। पर इतनी बड़ी अदाकारा का दुखद अंत।

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