Friday, February 19, 2016

जब हम होंगे पांच हज़ारी।

- वीर विनोद छाबड़ा
सितंबर २०१३, फेस बुक पर मेरा पदार्पण हुआ। हम बहुत उत्साहित थे। पता चला कि पांच हज़ारी होना फख्र की बात होती है। ठीक वैसे ही जैसे बरसों पहले बिनाका/सिबाका गीत माला में १८ बार बजने वाला गाना सरताज बन जाता था।


हमने सोचा - पांच क्या, दस हज़ारी भी बन के दिखा दूंगा। बस चुटकी बजाने की देर है। लेकिन हमें न मालूम था कि यहां खुशियां हैं कम, बेशुमार हैं ग़म। बहुत दुश्वारियां पेश आईं। रोज़ना ढेर रिक्वेस्ट भेजते। और सारा-सारा दिन झांकते रहते कि शायद कोई आया है। ज़रा सी आहट होती तो  दिल सोचता कि कहीं ये वो तो नहीं। कोई आया, धड़कन कहती है। 
कई बार तो हफ़्ता भर गुज़र जाता। पत्ता तक न खड़कता। दो बार तो फेस बुक के मालिक ज़ुकेरबर्ग ने भी डांट दिया, चुपचाप बैठो वरना कान पकड़ कर बाहर कर दूंगा।

उन दिनों हमें अपनी किशोरवस्था के वो दिन याद आए जब हम शीशी में भटकती आत्मा, भुतही कोठी का जिन्न, ढक्कन वाली भूतनी, ज़हरीली चुड़ैल जैसी वाहियात भुतई कहानियां लिखते थे। इन्हें हम मुल्क की नामी पत्रिकाओं में भेजते थे। लेकिन न छपीं और न कभी लौट कर ही आयीं। हो सकता है कि संपादक महोदय डर गए हों। हमारा दूसरा पाठक हमारा एक मित्र होता था। वो चाय और सिगरेट की शर्त पर इन्हें सुनता था।

बहरहाल, डिप्रेशन के उस दौर में हम एक दिन गुनगुना रहे थे - आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें, कोई उनसे कह दे, हमें भूल जाये... तभी एक मित्र आये। उन्होंने हौंसला बढ़ाया फ़िक्र नहीं करो। बस क़लम चलाते रहो। छापने वाला संपादक भी मिलेगा और पाठक भी।

चूंकि हम सकारात्मकता हमारे डीएनए में रही है इसलिए अच्छे बच्चे की तरह हम अपना काम करते रहे और कारवां बढ़ता रहा। इस दौरान निज़ी ज़िंदगी में बहुत उठा-पटक देखीं। खुद को पुनः खोजा। परिमार्जित करता रहा। फेस बुक के मित्रों के दुःख-सुख को अपना समझने का अहसास किया। दुनिया में सुख है तो दुःख है और दुःख है तो सुख भी।

अब सफ़र तकरीबन पूरा होने को है। पिछले कई दिनों से हम पांच हज़ारी के आस-पास टहल रहे हैं। ढेर रिक्वेस्ट रखी हैं। रोज़ तीन-चार पर मोहर लगती है और इतने ही निष्क्रिय लोगों को बहुत दुःख के साथ बाहर होना पड़ता है। गाली-गलौज करने वालों और बीपी बढ़ाने वाले कुतर्कियों की सफ़ाई भी जारी है।


पांच हज़ारी बनने से डर भी लगता है। दिल कहता है - ऊंचाई छूने के बाद इस पर खड़े रहना और इस ऊंचाई की गरिमा को बनाये रखना ज्यादा ज़रूरी है। इसलिए अभी ठहरो, अपने में आत्मविश्वास पैदा करो कि फिर पांच हज़ारी का बटन दबाना। इसलिए रुका हूं।


ईमानदारी से बताऊं दुश्वारियों से भरे इस सफ़र को मैंने सिर्फ़ अपने बूते हासिल नहीं किया है। प्रमोद जोशी ने फेस बुक पर आने का न्यौता दिया। खुर्शीद अहमद ने मुझे कम्प्यूटर और फेसबुक का ककहरा पढ़ाया। चंचल सिंह, शंभूनाथ शुक्ल, देवेंद्र दुर्जन, मो.ज़ाहिद, शैलेंद्र प्रताप सिंह, शैलेंद्र सिंह, गंगा राम, रेनू खान, प्रकाश गोविंद, संदीप वर्मा जैसे साथियों ने जब-तब अपनी पोस्ट पर मेरा नाम लिया, हौंसला बढ़ाया तो दो-ढाई सौ रिक्वेस्ट एक दिन में आ गयीं। कहते हैं मित्रता में शुक्रिया का कोई काम नहीं होता। इसलिए दिल से आभार।
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19-02-2016 mob 7505663626
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